हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चार महीनों का पवित्र समय होता है चातुर्मास। इस दौरान भगवान शिव सृष्टि का संचालन करते हैं और भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। धार्मिक ग्रंथों में चातुर्मास का समय बहुत महत्वपूर्ण माना गया है क्योंकि इस दौरान कई ऐसे काम हैं जिन्हें करने से जीवन में आध्यात्मिक उन्नति होती है, पुण्यों में वृद्धि होती है और भगवान शिव एवं भगवान विष्णु की साक्षात कृपा मिलती है। इसी कड़ी में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें बताया कि चातुर्मास के दौरान भगवद गीता का पाठ अवश्य करना चाहिए। इससे कई लाभ मिलते हैं, आइये जानते हैं इस बारे में विस्तार से।
चातुर्मास में भगवद्गीता का पाठ करने के लाभ
भगवद्गीता आत्मा के स्वरूप, परमात्मा से उसके संबंध और जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझाती है। चातुर्मास के दौरान इसका नियमित पाठ करने से व्यक्ति को अपने भीतर झांकने का अवसर मिलता है। वह समझ पाता है कि सुख-दुख, लाभ-हानि जैसी परिस्थितियां अस्थायी हैं और आत्मा अमर है। यह ज्ञान उसे मानसिक अशांति से मुक्ति दिलाता है और गहरी आंतरिक शांति प्रदान करता है।
गीता मन की चंचलता को नियंत्रित करने के तरीके बताती है। चातुर्मास में जब बाहरी गतिविधियां कम होती हैं, तब मन को एकाग्र करना आसान हो जाता है। गीता के उपदेशों का पालन करने से व्यक्ति अपने विचारों और भावनाओं को नियंत्रित करना सीखता है, जिससे वह भय, चिंता और क्रोध जैसी नकारात्मक भावनाओं से मुक्त होता है। यह उसे जीवन में अधिक स्थिर और शांत बनाता है।
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भगवद्गीता हमें निष्काम कर्म करने की प्रेरणा देती है। यह सिखाती है कि हमें फल की चिंता किए बिना अपना कर्तव्य निभाना चाहिए। चातुर्मास के दौरान जब मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं तब व्यक्ति अपने दैनिक कार्यों को भी एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देख सकता है। गीता का पाठ उसे अपने कर्मों को सही दिशा देने और उन्हें ईश्वर को समर्पित करने में मदद करता है जिससे वह मोह और आसक्ति से मुक्त होता है।
चातुर्मास को तपस्या और साधना का समय कहा जाता है। भगवद्गीता का पाठ इस अवधि में की गई साधना को और भी अधिक प्रभावी बनाता है। गीता के सिद्धांतों का अभ्यास करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति मिलती है और वह मोक्ष के मार्ग पर आगे बढ़ता है। यह उसे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है।
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गीता हमें विनम्रता, सहनशीलता, करुणा, क्षमा जैसे अनेक सद्गुणों को अपनाने की प्रेरणा देती है। चातुर्मास में संयमित जीवनशैली और गीता के पाठ से व्यक्ति इन गुणों को अपने भीतर विकसित कर पाता है। इससे उसका व्यक्तित्व निखरता है और वह समाज में एक बेहतर इंसान के रूप में स्थापित होता है।
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