हिंदू धर्म में पितृपक्ष को शुभ और उत्तम फलदायी माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि पिततृपक्ष में पितरों की विधिवत पूजा-अर्चना किया जाए, तो व्यक्ति को सुख-समृद्धि की प्राप्ति हो सकती है। पितृपक्ष में पितरों के निमित्त तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
आपको बता दें, पितृपक्ष में कई ऐसे काम होते हैं, जिन्हें करना शुभ नहीं माना जाता है। वहीं कुछ ऐसेभी काम होते हैं, जिसे करने से व्यक्ति को शुभ परिणाम भी मिलते हैं। अब ऐसे में अगर पितृपक्ष में किसी भी व्यक्ति की मृत्यु हो जाए, तो इसके क्या संकेत होते हैं। गुरु पुराण के अनुसार इसका अर्थ क्या है। इसके बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
पितृपक्ष में मृत्यु होने का अर्थ क्या है?
पितृपक्ष में किसी भी व्यक्ति का आकस्मित मृत्यु हो जाए, तो इसे बेहद शुभ माना जाता है। इस दौरान अंतिम संस्कार के विधि-विधान में भी कोई बदलाव नहीं होता है। ऐसा माना जाता है कि ऐसा व्यक्ति का स्वागत स्वर्ग में किया जाता है। वहीं अगर पितृपक्ष में किसी व्यक्ति की अकाल मृत्यु हो जाए, जैसे कि दुर्घटना, आत्महत्या या फिर कोई और कारण हो, तो ऐसी स्थिति में घर पर श्राद्ध, तर्पण बिल्कुल नहीं करना चाहिए। आप इस दौरान पिंडदान बिहार के गया जाकर विष्णुपद मंदिर में कर सकते हैं। वहीं तर्पण और श्राद्ध फल्गु नदी के किनारे करें। इससे आत्मा को शांति मिलती है।
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पितरों का मिलता है आशीर्वाद
पितृपक्ष में मृत्यु होने से पितरों की घर-परिवार पर कृपा बनी रहती है। गरुड़ पुराण के अनुसार, ऐसा कहा गया है कि अगर पितृपक्ष में किसी भी जातक की मृत्यु हो जाए, तो इससे पितरों का आशीर्वाद घर-परिवार पर बना रहता है। साथ ही मृत आत्मा को स्वर्ग में स्थान मिलता है।
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पितृपक्ष में मृत्यु होना सौभाग्य का है प्रतीक
पितृपक्ष में अगर किसी जातक की मृत्यु हो जाती हैं, तो उसे बेहद सौभाग्यशाली माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि पितृपक्ष में मृत्यु होने से उस मृत परिवार वालों को सुख-संपन्नता की प्राप्ति होती है। कहते हैं, उस जातक जातक के कर्म अच्छे थे। जिसके कारण व्यक्ति की मृत्यु पितृपक्ष में हुई है। इसलिए इसे बेहद शुभ और सौभाग्यशाली माना गया है।
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Image Credit- HerZindagi
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