सदियों से ही वट सावित्री का उपवास महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए रखती आई हैं। आज भी ऐसा माना जाता है कि यह उपवास रखने से आपके जीवन में सौभाग्य बढ़ता है और वैवाहिक जीवन में मधुरता बनी रहती है। वट सावित्री के दिन वट वृक्ष की पूजा की जाती है और उन्हें श्रृंगार की सामग्रियों के साथ उनकी प्रिय वस्तुएं अर्पित की जाती हैं। इस दिन महिलाऐं सोलह श्रृंगार करती हैं और वट वृक्ष पर सूत लपेटकर विधि-विधान से परिक्रमा करती हैं। ऐसी मान्यता है कि पूजा जितनी विधि-विधान से की जाती है, जीवन में उतने ही शुभ फल प्राप्त होते हैं। इस पूजा के लिए सही तरीके सेपूजन के साथ सत्यवान-सावित्री की व्रत कथा पढ़ना या सुननाभी सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि यदि आप पूजा के साथ इस कथा का पाठ नहीं करती हैं, या किसी भी रूप में यह कथा नहीं सुनती हैं तो पूजा अधूरी मानी जाती है और इसका पूर्ण फल भी नहीं मिलता है। वट सावित्री पूजा के लिए पूजन सामग्री से कहीं अधिक महत्व इस कथा का होता है। आइए, ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से वट सावित्री की पूरी कथा और सत्यवान-सावित्री के जीवन की कहानी के बारे में विस्तार से जानते हैं।
वट सावित्री व्रत कथा
एक समय की बात है भद्र देश के एक राजा थे, जिनका नाम अश्वपति था। राजा अश्वपति की कोई संतान नहीं थी। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए कई उपाय किए, यज्ञ में अनगिनत आहुतियां दीं, मंत्रोच्चारण किए और ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए कई जतन किए। राजा अश्वपति का अठारह वर्षों तक यह क्रम जारी रहा।इसके बाद सावित्री देवी प्रकट हुईं और उन्होंने राजा को यह आशीर्वाद दिया कि राजा के घर में जल्द ही एक तेजस्वी कन्या का जन्म होगा। चूंकि कन्या की प्राप्ति सावित्री देवी के आशीर्वाद से हुई इस वजह से राजा ने कन्या का नाम भी सावित्री रख दिया।
कन्या धीरे-धीरे बड़ी होने लगी और अत्यंत रूपवान हुई। इतना सुंदर स्वरूप होने के बाद भी सावित्री के लिए योग्य वर न मिलने की वजह से उनके पिता दुखी थे। इसलिए उन्होंने कन्या को स्वयं ही वर तलाशने को कहा।
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सुयोग्य वर की तलाश में सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहां साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे। उस समय उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। राजा के पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री उन पर मोहित हो गईं और उन्होंने पति के रूप में सत्यवान का वरण किया।
उसी समय नारद मुनि को जब यह बात पता चली तो वह राजा अश्वपति के पास पहुंचे और कहा कि हे राजन! सत्यवान अल्पायु तक ही जीवित रहेंगे। आज से ठीक एक वर्ष बाद ही उनकी मृत्यु हो जाएगी। नारद मुनि की बात सुनकर राजा चिंता में पड़ गए। सावित्री ने उनसे इस चिंता का कारण पूछा, तो राजा ने कहा, पुत्री तुमने जिस राजकुमार को अपने वर के रूप में चुना है वह अल्पायु हैं। तुम्हे किसी और को अपना जीवन साथी बनाना चाहिए।
इस पर सावित्री ने कहा कि पिताजी, आर्य कन्या अपने पति का वरणएक बार ही करती हैं और मैं इससे अलग नहीं हूं। राजा भी एक बार ही आज्ञा देता है और पंडित एक बार ही प्रतिज्ञा करते हैं और कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है। सावित्री हठ करने लगीं और उन्होंने राजा से कहा कि वो सत्यवान से ही विवाह करेंगी। इस बात पर पुत्री की हाथ के सामने राजा अश्वपति नतमस्तक हो गए और उन्हें सावित्री का विवाह सत्यवान से ही कर दिया।
धीरे-धीरे समय बीतता चला गया और वो दिन भी करीब आने लगा जो नारद मुनि ने सावित्री के पति सत्यवान की मृत्यु के लिए निर्धारित बताया था। जैसे-जैसे समय निकट आ रहा था सावित्री अधीर होती जा रही थीं और उन्होंने तीन दिन पहले से ही उपवास रखना शुरू कर दिया। नारद मुनि द्वारा कथित निश्चित तिथि पर सावित्री ने पितरों का पूजन किया।
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उस दिन भी रोज की तरह सत्यवान लकड़ी काटने जंगल चले गए और साथ में सावित्री भी गईं। जंगल में पहुंचकर सत्यवान लकड़ी काटने के लिए एक पेड़ पर चढ़ गए। उसी समय उनके सिर में तेज दर्द होने लगा, सत्यवान तुरंत ही पेड़ से नीचे उतर गए और सावित्री चिंतित हो गईं। सत्यवान के सिर को गोद में रखकर सावित्री सत्यवान का सिर सहलाने लगीं। उसी समय वहां यमराज आते दिखे। यमराज अपने साथ सत्यवान को ले जाने लगे। सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चल पड़ीं। यमराज ने सावित्री को समझाने की कोशिश की कि यही विधि का विधान है। लेकिन सावित्री नहीं मात्र और यमराज का पीछा करती रहीं। सावित्री की निष्ठा और पतिव्रतता को देखकर यमराज ने सावित्री से कहा कि हे देवी, तुम धन्य हो। तुम मुझसे कोई भी तीन वरदान मांगो।
यमराज की बात पर सावित्री ने पहले वरदान के रूप में अपने सास-ससुर की आंखों की दृष्टि मांग ली। यमराज ने तथास्तु कहकर वरदान दे दिया।
दूसरे वरदान के रूप में सावित्री ने अपने सास-ससुर का छिना हुआ राज्य मांग लिया और यमराज ने यह वरदान भी दे दिया।
उसके बाद यमराज ने सावित्री को तीसरा वरदान मांगने को कहा। इस पर सावित्री ने 100 संतानों और सौभाग्य का वरदान मांगा। यमराज ने यह वरदान भी सावित्री को दे दिया। इस वरदान पर सावित्री ने यमराज से कहा कि प्रभु मैं एक पतिव्रता स्त्री हूं और आपने मुझे 100 संतानों का आशीर्वाद दिया है, लेकिन यदि आप मेरे पति को ही ले जाएंगे तो मेरे पुत्र कैसे होंगे। यह सुनकर यमराज सावित्री के सामने झुक गए और उन्होंने सत्यवान के प्राण वापस कर दिए।
सत्यवान जीवित हो गए और दोनों खुशी-खुशी अपने राज्य की ओर चल पड़े। दोनों जब घर पहुंचे तो देखा कि माता-पिता को ज्योति प्राप्त हो गई है। इस प्रकार सावित्री-सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे।
आज भी वट सावित्री व्रत के दिन इसी कथा का पाठ करके पूजा को पूर्ण माना जाता है और सुहागिन महिलाएं माता सावित्री और वट वृक्ष से अटल सौभाग्य का आशीर्वाद लेती हैं।
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