कामिका एकादशी का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है क्योंकि यह श्रावण मास के कृष्ण पक्ष में आती है और भगवान विष्णु को समर्पित है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है साथ ही यह मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला भी माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ तुलसी जी की पूजा का भी विशेष महत्व होता है। साल 2025 में कामिका एकादशी 21 जुलाई, सोमवार को मनाई जाएगी। ऐसे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं कामिका एकादशी की व्रत कथा।
कामिका एकादशी व्रत कथा
एक समय की बात है, रत्नापुर नाम का एक सुंदर नगर था। इस नगर पर राजा पुंडरीक का राज था। उनका राज्य बहुत समृद्ध था और वहां के लोग खुशी से रहते थे। राजा के दरबार में ललित नाम का एक बहुत ही गुणी गंधर्व था। ललित को उसकी पत्नी ललिता से बहुत प्रेम था जो कि एक सुंदर अप्सरा थी। वे दोनों एक-दूसरे के प्रति समर्पित थे और हमेशा संगीत और प्रेम में लीन रहते थे।
एक दिन ललित राजा के दरबार में अपनी कला का प्रदर्शन कर रहा था। लेकिन उसका मन अपनी पत्नी ललिता में अटका हुआ था। वह अपनी परफॉर्मेंस के दौरान ललिता को याद कर रहा था, जिसकी वजह से उसकी एकाग्रता भंग हो गई और उसके गायन में त्रुटि आ गई। राजा पुंडरीक, जो कला के पारखी थे, उन्होंने तुरंत ललित की गलती पकड़ ली। वह क्रोधित हो गए और ललित को राक्षस बनने का श्राप दे दिया। श्राप के कारण ललित का सुंदर रूप भयानक और डरावना हो गया।
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अपने प्रिय पति को इस भयानक रूप में देखकर ललिता बहुत दुखी हुई। उसका हृदय टूट गया। वह अपने पति को इस श्राप से मुक्ति दिलाने के लिए पहाड़ों, जंगलों और आश्रमों में भटकने लगी। वह हर जगह एक समाधान की तलाश में थी। भटकते-भटकते ललिता ऋषि श्रृंगी के आश्रम पहुंची। ऋषि को देखकर वह फूट-फूट कर रोने लगी और उनके चरणों में गिर गई। उसने अपनी सारी व्यथा ऋषि को सुनाई और अपने पति को श्राप से मुक्त करने का उपाय पूछा।
ऋषि श्रृंगी ने ललिता की बात ध्यान से सुनी और उसकी भक्ति तथा प्रेम से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने ललिता को कामिका एकादशी व्रत के महत्व के बारे में बताया। उन्होंने कहा, 'हे देवी चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली यह कामिका एकादशी बहुत ही पुण्यदायी होती है। यदि तुम इस व्रत को पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करो और इस व्रत का सारा पुण्य अपने पति ललित को समर्पित कर दो, तो वह अपने राक्षस रूप से मुक्त होकर फिर से गंधर्व रूप प्राप्त कर लेगा।'
ललिता ने ऋषि श्रृंगी की बात मान ली। उसने बताए गए विधान के अनुसार पूरी निष्ठा से कामिका एकादशी का व्रत रखा। उसने अन्न-जल त्यागकर भगवान विष्णु का ध्यान किया और पूरी रात जागरण किया। अगले दिन (द्वादशी को) जब उसने अपना व्रत पूर्ण किया, तो वह फिर से ऋषि श्रृंगी के पास गई और विनम्रतापूर्वक बोली 'हे ऋषि मेरे कामिका एकादशी व्रत के पुण्य से मेरे पति ललित को राक्षस योनि से मुक्ति मिले और वे अपना मूल गंधर्व रूप फिर से प्राप्त कर लें।'
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जैसे ही ललिता ने ये शब्द कहे ललित तुरंत अपने राक्षस रूप से मुक्त होकर अपने सुंदर गंधर्व रूप में आ गया। वह फिर से अपनी पत्नी के पास था। दोनों ने ऋषि श्रृंगी को प्रणाम किया और खुशी-खुशी अपने नगर लौट गए। यह कथा बताती है कि कामिका एकादशी का व्रत कितना शक्तिशाली है। इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है। उसे पिछले जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह व्रत मोक्ष प्राप्ति का भी एक मार्ग माना जाता है।
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Image credit: herzindagi
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