गणेश जी की प्रचलित कथा है कि माता पार्वती के मैल से उनका जन्म हुआ था। फिर भगवान शिव को माता पार्वती से मिलने से रोकने के कारण भगवान शिव ने गणेश जी का शीश धढ़ से अलग कर दिया था। माता पार्वती को जब पता चला तो वह क्रोध में आ गईं और रौद्र रूप धर लिया, तब सृष्टि को उनके कोप से बचाने के लिए भगवान शिव ने गज मुख यानी कि हाथी का मुंह लगाकर गणेश जी को पुनः जीवित किया।
इस कथा के कारण लोगों को ऐसा लगता है कि गणेश जी का नाम गजानन पड़ा, लेकिन असल में गजानन कहलाए जाने के पीछे की कथा कुछ और ही है। गजानन नाम गणेश जी का तब पड़ा था जब उन्होंने एक राक्षस का वध करने के लिए 100 गजमुख उत्पन्न किये थे। कौन था वो राक्षस और क्यों गणेश जी ने लिया था ये अनोख रूप, आइये जानते हैं इस रोचक कथा के बारे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से विस्तार में।
गणेश जी के गजानन कहलाने के पीछे एक पौराणिक कथा है जिसका संबंध गजासुर नामक राक्षस से है। गजासुर एक बहुत शक्तिशाली और अहंकारी राक्षस था जिसने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की।
गजासुर की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। गजासुर ने वरदान मांगा कि वह इतना शक्तिशाली हो जाए कि कोई भी देवता, दानव या मनुष्य उसे युद्ध में पराजित न कर सके।
उसने यह भी वरदान मांगा कि भगवान शिव खुद उसके पेट में निवास करें। शिव जी ने उसे यह वरदान दे दिया। वरदान मिलते ही गजासुर का अहंकार और बढ़ गया। वह तीनों लोकों में हाहाकार मचाने लगा और देवताओं को परेशान करने लगा।
गजासुर के अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए और उनसे मदद मांगी। विष्णु जी ने उन्हें बताया कि गजासुर को केवल शिव जी का पुत्र ही मार सकता है। तब माता पार्वती ने गणेश जी को युद्ध के लिए भेजा।
गजासुर ने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करके कई गज मुख उत्पन्न किए ताकि गणेश जी को हरा सके। लेकिन गणेश जी ने भी अपनी शक्तियों से 100 गज मुख उत्पन्न किए और उन सभी को हरा दिया। अंत में गणेश जी ने गजासुर का वध कर दिया।
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गजासुर का वध करने के बाद, गणेश जी 100 गज मुखों के साथ मूषक पर सवार होकर माता पार्वती और भगवान शिव के सामने पहुंचे। तब शिव जी ने उनके इस स्वरूप का नाम गजानन रख दिया। गजानन स्वरूप की पूजा से व्यक्ति की हर संकट से रक्षा होती है।
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