Gupt Navratri 2024: दस महाविद्या की देवी मां तारा की उत्पत्ति कैसे हुई थी? जानें

दस महाविद्याओं में देवी तारा की उत्पत्ति के कई पुराणों और शास्त्रों में अलग-अलग कथाएँ मिलती हैं। देवी तारा को हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म दोनों में प्रमुखता दी गई है।

 
What is the origin story of Tara

गुप्त नवरात्रि के दुसरे दिन दस महाविद्या की देवी तारा की पूजा-आराधना की जाती है। तारा देवी को श्मशान की देवी भी कहा जाता है, साथ ही उन्हें मुक्तिदात्री भी कहा जाता है। हिंदू ही नहीं बौद्ध धर्म में भी तारा देवी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार भगवान बुद्ध ने तारा मां की आराधना की थी, बुद्ध देव के अलावा गुरु वशिष्ठ ने भी पूर्णता प्राप्त करने के लिए देवी तारा का आराधना की थी।

हिन्दू धर्म में तारा की उत्पत्ति:

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यह मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय जब अमृत प्राप्त हुआ, तब दैत्यों और देवताओं के बीच इसे प्राप्त करने के लिए संघर्ष हुआ। इसी संघर्ष के दौरान जब विष्णु भगवानमोहिनी रूप धारण कर रहे थे, तभी तारा देवी प्रकट हुईं। उन्हें आदि शक्ति का स्वरूप माना गया है, जो सृष्टि के प्रत्येक तत्व में व्याप्त है।

महाशक्तियों में एक तारा देवी दस महाविद्याओं में देवी तारा को महासरस्वती और महासिद्धि का रूप माना जाता है। कथाओं के अनुसार यह कहा जाता है कि जब सृष्टि का विनाश हो रहा था और चारों ओर अंधकार सा छा गया था, तब तारा देवी अपने शक्तिशाली रूप में प्रकट होकर ब्रह्माण्ड को नष्ट होने से बचाया और सृष्टि का पुनः सृजन किया था।

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देवी तारा से जुड़ी दूसरी कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार , देवी तारा की उत्पत्ति उस वक्त हुई थी, जब समुद्र मंथन से विष निकला, जिसे भोलेनाथ ने ग्रहण किया था। विष के ग्रहण करते ही शिव जी के शरीर में बहुत ज्यादा जलन और पीड़ा होने लगी। भगवान शिव के शरीर से विष के ताप को कम करने मां काली ने दूसरा रूप धारण किया और भगवान शिवके बाल स्वरूप को स्तनपान करवाया, जिसके बाद भोलेनाथ के शरीर की जलन कम हुई और तभी से मां काली के इस दूसरे रूप को मां तारा के नाम से जाना गया।

अवलोकितेश्वर के आँसुओं से हुई देवी तारा की उत्पत्ति

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बौद्ध धर्म में, तारा की उत्पत्ति अवलोकितेश्वर (बोधिसत्व) के आँसुओं से मानी गई है। एक कथा के अनुसार, अवलोकितेश्वर ने संसार के दुखों को देखकर आंसू बहाए थे और उन आँसुओं से एक कमल का पुष्प प्रकट हुआ। कहा जाता है कि इस फूल से ही देवी तारा का जन्म हुआ। तारा देवी ने प्रतिज्ञा की कि वो सदैव संसार के प्राणियों की रक्षा करेंगी और उन्हें मुक्ति दिलाएंगी।

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मां तारा को बौद्ध धर्म में 'तारिणी' (संसार के बंधनों से मुक्त कराने वाली) के रूप में भी पूजा जाता है। तारा देवी ने अवलोकितेश्वर से यह प्रतिज्ञा की थी कि वे न केवल बुद्ध बनेंगी, बल्कि संसार के सभी प्राणियों की सहायता भी करेंगी। तारा का यह रूप उनके करुणा और दया के लिए जाना जाता है।

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Image Credit: Freepik

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