ज्योतिष शास्त्र में यह बताया गया है कि हर ग्रह का हमारे जीवन एवं हमारे शरीर पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जहां एक ओर ग्रहों की दिशा और दशा जीवन की शुभ-अशुभ घटनाओं को दर्शाती हैं तो वहीं, दूसरी ओर ग्रहों का शरीर पर प्रभाव मानसिक और आत्मिक संकेतों एवं बदलावों को दिखाता है। हालांकि, जो लोग ग्रहों या फिर ज्योतिष को मात्र एक अंधविश्वास समझते हैं, वह इसे नहीं मानते हैं, लेकिन ज्योतिष शास्त्र में बताई गई इस बात का वैज्ञानिक तथ्य भी मौजूद है जिसे हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथों में कई हजार साल पहले ही वर्णित किया जा चुका है। ऐसे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आज हम जानेंगे कि चंद्रमा का हमारे शरीर पर कब और कैसा प्रभाव पड़ता है।
कैसे चंद्रमा हमारे शरीर को करता है प्रभावित?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, चंद्रमा को मन का कारक माना गया है। ऐसा कहते हैं कि चंद्रमा अगर कुंडली में मजबूत हो तो मानसिक बल मिलता है और तनाव से छुटकारा मिल जाता है। चंद्रमा अगर कुंडली में मजबूत हो तो बुद्धि ठीक से काम करती रहती है जिसके चलते निर्णय लेने की क्षमता भी व्यक्ति में बढ़ती है।
अब इस बात का वैज्ञानिक आधार समझते हैं। साइंस के मुताबिक, पृथ्वी पर 70% पानी है और 30% भूमि है। ठीक ऐसे ही हमारे शरीर में भी 70% पानी है और 30% मास है। इसके अलावा, हमारे दिमाग में 90% पानी मौजूद है। वहीं, ओशनिक वॉटर का परसेंटेज लगभग हमारे शरीर में जितना स्लिने ब्लड है उसके बराबर ही है।
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विज्ञान आज इस बात को मानता है कि चंद्रमा में जब मूवमेंट होता है तो समुद्र में ज्वारभाटा यानी कि टाइड आता है। यानी कि चंद्रमा में मूवमेंट होने पर समुद्र के जल पर इसका प्रभाव पड़ता है। यहां तक कि चंद्रमा की रौशनी में समुद्र सबसे ज्यादा शीतल और औषधिक भी हो जाता है जो पूर्ण रूप से वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित है।
हमारे ऋषियों-मुनियों को इस बात का ज्ञान प्राचीन काल से ही था और इसी के आधार पर ज्योतिष में बताया गया कि चंद्रमा की गति का प्रभाव जब समुद्र के पानी पर पड़ता है तो मनुष्य शरीर में मौजूद पानी पर इसका प्रभाव क्यों न पड़े। ज्योतिष के अनुसार, चंद्रमा का हमारे शरीर पर शुभ जब प्रभाव पड़ता है तो व्यक्ति का मन और मस्तिष्क शांत हो जाता है।
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इसी कारण से ऐसा बोला जाता है कि अगर मानसिक शांति और बल चाहिए तो चंद्रमा से जुड़े उपाय करें या फिर चंद्रमा की पूजा करें। यहां तक कि शरीर को स्वस्थ बनाये रखने के लिए चंद्रमा की रौशनी में रात भर जल रखें और फिर उसे अगले दिन सुबह पिएं, विशेष रूप से पूर्णिमा के दिन क्योंकि तब चंद्रमा अपने संपूर्ण शक्ति के साथ आकाश में सज्ज होता है।
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