हर साल आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व मनाया जाता है। यह दिन गुरु और शिष्य के पवित्र रिश्ते को समर्पित है। भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान भगवान से भी ऊपर माना गया है, क्योंकि गुरु ही हमें अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाते हैं। वे हमें शिक्षा देते हैं और जीवन जीने की सही राह भी दिखाते हैं। इस तरह कहा जाता है कि गुरु ही हमारे व्यक्तित्व को गढ़ते हैं। ऐसे में, इस पवित्र दिन, महर्षि वेद व्यास का जन्मोत्सव भी मनाया जाता है, जिन्हें हिंदू धर्म के महानतम गुरुओं में से एक माना जाता है। महर्षि वेद व्यास ने वेदों का संकलन किया और महाभारत जैसे महाकाव्य की रचना की। इसलिए उनके जन्म के दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में विशेष तौर पर मनाया जाता है। यह खास अवसर गुरुओं का सम्मान करने के साथ उनकी कृपा और ज्ञान को अपने जीवन में आत्मसात करने का भी होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन गुरुओं का आशीर्वाद विशेष फलदायी होता है और सच्ची श्रद्धा से की गई पूजा और व्रत हमें जीवन में तरक्की और सफलता के नए रास्ते दिखाते हैं।
गुरु पूर्णिमा पर कई व्रत कथाएं भी पढ़ी जाती हैं, जो गुरु-शिष्य परंपरा के महत्व और उनके आशीर्वाद से होने वाले चमत्कारों को दर्शाती हैं। माना जाता है कि इन कथाओं को पढ़ने और सुनने से मन को शांति मिलती है, जीवन में सही दिशा मिलती है और तरक्की के नए द्वार खुलते हैं। तो आइए, गुरु पूर्णिमा के इस पावन अवसर पर एक ऐसी ही व्रत कथा पढ़ते हैं, जो आपको जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा दे सकती है। गुरू पूर्णिमा व्रत कथाज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्ससे आइए जानते हैं।
गुरु पूर्णिमा 2024 व्रत कथा
शास्त्रों के अनुसार, एक बार ऋषि वेदव्यास जी ने अपनी माता सत्यवती से भगवान के दर्शन की इच्छा जताई, लेकिन माता ने ऋषि वेदव्यास को समझाया कि उन्हें भगवान को खुद ही प्राप्त करना होगा। इसके बाद ऋषि वेदव्यास जी वन चले गए और घोर तपस्या में लीन हो गए।
जब ऋषि वेदव्यास की तपस्या पूर्ण हुई तब उन्हें भगवान शिव ने दर्शन दिए और उन्हें ब्रह्म ज्ञान का सार समझाया। साथ ही, भगवान शिव ने उन्हें इस ज्ञान को सभी तक पहुंचाने का जिम्मा भी सौंपा। ऋषि वेदव्यास ने इस ज्ञान के आधार पर चारों वेदों और कई गूढ़ ग्रंथों की रचना की।
इसके बाद ऋषि वेदव्यास जी ने एक आश्रम का निर्माण किया जहां उन्होंने कई अन्य ऋषियों को ब्रह्म ज्ञान दिया। उन ऋषियों ने ऋषि वेदव्यास जी को अपना गुरु मानकर उनकी पूजा की। इसके बाद से ही गुरु-शिष्य की परंपरा की स्थापना हुई और आश्रम में शिक्षा की शुरुआत हुई।
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हालांकि गुरु पूर्णिमा का पर्व उस दिन से मनाना शुरू हुआ था जब ऋषि वेदव्यास जी ने गणेश जी को महाभारत लिखने के लिए आग्रह किया था और गणेश जी ने महाभारत लिखना शुरू करने से पहले आषाढ़ पूर्णिमा के दिन वेदव्यास जी को गुरु मानकर उनकी पूजा-अर्चना की थी।
आप भी इस लेख में दी गई जानकारी के माध्यम से गुरु पूर्णिमा की व्रत कथा के बारे में जान सकते हैं। अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो वो आप हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
image credit: herzindagi
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