Guru Purnima Vrat Katha 2024: गुरु पूर्णिमा पर पढ़ें ये व्रत कथा, तरक्की के खुल सकते हैं रास्ते

शास्त्रों के अनुसार, एक बार ऋषि वेदव्यास जी ने अपनी माता सत्यवती से भगवान के दर्शन की इच्छा जताई, लेकिन माता ने ऋषि वेदव्यास को समझाया कि उन्हें भगवान को खुद ही प्राप्त करना होगा। इसके बाद ऋषि वेदव्यास जी वन चले गए और घोर तपस्या में लीन हो गए।  
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गुरु पूर्णिमा 2024 व्रत कथा

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शास्त्रों के अनुसार, एक बार ऋषि वेदव्यास जी ने अपनी माता सत्यवती से भगवान के दर्शन की इच्छा जताई, लेकिन माता ने ऋषि वेदव्यास को समझाया कि उन्हें भगवान को खुद ही प्राप्त करना होगा। इसके बाद ऋषि वेदव्यास जी वन चले गए और घोर तपस्या में लीन हो गए।

जब ऋषि वेदव्यास की तपस्या पूर्ण हुई तब उन्हें भगवान शिव ने दर्शन दिए और उन्हें ब्रह्म ज्ञान का सार समझाया। साथ ही, भगवान शिव ने उन्हें इस ज्ञान को सभी तक पहुंचाने का जिम्मा भी सौंपा। ऋषि वेदव्यास ने इस ज्ञान के आधार पर चारों वेदों और कई गूढ़ ग्रंथों की रचना की।

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इसके बाद ऋषि वेदव्यास जी ने एक आश्रम का निर्माण किया जहां उन्होंने कई अन्य ऋषियों को ब्रह्म ज्ञान दिया। उन ऋषियों ने ऋषि वेदव्यास जी को अपना गुरु मानकर उनकी पूजा की। इसके बाद से ही गुरु-शिष्य की परंपरा की स्थापना हुई और आश्रम में शिक्षा की शुरुआत हुई।

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हालांकि गुरु पूर्णिमा का पर्व उस दिन से मनाना शुरू हुआ था जब ऋषि वेदव्यास जी ने गणेश जी को महाभारत लिखने के लिए आग्रह किया था और गणेश जी ने महाभारत लिखना शुरू करने से पहले आषाढ़ पूर्णिमा के दिन वेदव्यास जी को गुरु मानकर उनकी पूजा-अर्चना की थी।

आप भी इस लेख में दी गई जानकारी के माध्यम से गुरु पूर्णिमा की व्रत कथा के बारे में जान सकते हैं। अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो वो आप हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।

image credit: herzindagi

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FAQ

  • गुरु पूर्णिमा क्यों मनाते हैं? 

    गुरु पूर्णिमा गुरुओं के प्रति आभार और सम्मान व्यक्त करने का पर्व है। यह महर्षि वेद व्यास की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है, जिन्होंने वेदों का संकलन किया था।
  • गुरु पूर्णिमा का दूसरा नाम क्या है?

    गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। इसे व्यास पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इस दिन महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था।