हिंदू धर्म में सावन का महीना देवों के देव महादेव को समर्पित है। इस माह में भगवान शिव की भक्ति पूरी श्रद्धा से करने से व्यक्ति को सभी परेशानियों से छुटकारा मिल सकता है। इतना ही नहीं, इस माह में कांवड़ यात्रा भी निकाली जाती है। भक्त बोल बम और हर हर महादेव का जयकारा लगाते हुए कांवड़ यात्रा निकालते हैं। भक्त अपनी सुविधा के अनुसार जल और दूध से भोलेनाथ का अभिषेक करते हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव का जलाभिषेक करने से वह शीघ्र प्रसन्न होते हैं। साथ ही अपने भक्तों पर कृपा भी बरसाते हैं। उनके कृपा से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। साथ ही भौतिक सुखों की भी प्राप्ति होती है। इसके अलावा जातक को ग्रह दोषों से भी छुटकारा मिल जाता है।
अब ऐसे में सावन माह में मंदिरों में भगवान की पूजा करने का विशेष महत्व है। वहीं एक ऐसा मंदिर भी है। जहां भगवान शिव के दर्शन मात्र से ही जातक को पितृदोष से छुटकारा मिल जाता है। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
दक्षेश्वर महादेव मंदिर कहां है?
भगवान शिव को समर्पित ये दक्षेश्वर महादेव मंदिर देवों की भूमि उत्तराखंड में स्थित है। उत्तराखंड में चार धाम के साथ-साथ कई प्रमुख तीर्थ स्थल भी हैं। इनमें से एक स्थल दक्षेश्वर महादेव मंदिर है। यह मंदिर हरिद्वार के कनखल में स्थित है। इस मंदिर का नाम माता सती के पिता के नाम पर रखा गया है। इतना ही नहीं भगवान शिव का ससुराल भी कनखल में ही है। यह मंदिर एक मात्र ऐसा है, जहां भगवान शिव के साथ-साथ दक्ष प्रजापति की भी पूजा-अर्चना की जाती है।
इस मंदिर का निर्माण 1810 में रानी धनकौर द्वारा करवाया गया है। मंदिर परिसर में मां गंगा का भी मंदिर है।
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दक्षेश्वर महादेव मंदिर की मान्यता क्या है?
दक्षेश्वर महादेव मंदिर को लेकर वहां के पंडितों कहना है कि इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति को पितृ दोष से छुटकारा मिल जाता है। साथ ही जीवन में चल रही परेशानियां भी दूर हो जाती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान भोलेनाथ का विवाह प्रजापति दक्ष की पुत्री सती से हुआ था। इस विवाह से राजा दक्ष प्रसन्न नहीं थे। जिसके कारण भगवान शिव और राजा दक्ष के बीच आपसी तालमेल ठीक नहीं रहता था। कई अवसर पर राजा दक्ष भगवान शिव की बातों से सहमत नहीं होते थे। भगवान शिव अपने ससुर राजा दक्ष के स्वभाव से भाली-भांति परिचित थे। वहीं विवाह के बाद भी शिव जी ससुराल अधिक नहीं जाते थे। हालांकि, माता सती के मन में मायके लिए हमेशा प्रेम रहता है। वहीं एक बार की बात है, जब राजा दक्ष ने कनखल में बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया था। इस यज्ञ में तीनों लोकों के सभी लोगों को आमंत्रित किया गया था, लेकिन भगवान शिव आमंत्रित नहीं थे। माता सती को पिता द्वारा किए गए जाने वाले यज्ञ के बारे में पता चला, तो माता सती भगवान शिव के साथ कनखल जाने की जिद करने लगी।
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भगवान शिव तो सबकुछ जानते ही थे कि राजा दक्ष द्वारा किए जा रहे यज्ञ में कोई न कोई अनहोनी जरूर होगी। उन्होंने माता सती को यज्ञ में जाने से मना कर दिया। हालांकि, मां सती मायके के प्रति सनेह के कारण भगवान शिव से अनुमति लेकर चलीं गई। जब माता सती अपने मायके गईं, तो उन्हें वहां पहले की तरह मान-सम्मान नहीं मिला। साथ ही यज्ञ के दौरान भगवान शिव के प्रति अपमानजनक शब्दों का भी प्रयोग राजा दक्ष ने किया। यह सब देख माता सती बेहद दुखी हुईं और उन्हें आत्मग्लानि होने लगी। उस समय माता सती को भगवान शिव की बात न मानने की भी ग्लानि हुई और जिसके बाद उन्होंने उसी यज्ञ कुंड में आत्मदाह कर लिया।
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