
सनातन धर्म में यज्ञ और अनुष्ठानों को जीवन की शुद्धि, वातावरण की पवित्रता और देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करने का सर्वोत्तम मार्ग माना गया है। सीताराम महायज्ञ इन्हीं अनुष्ठानों में से एक है जिसे अत्यंत महत्वपूर्ण और फलदायी माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, केवल एक बार इस महायज्ञ को करने का पुण्यफल दस हजार सामान्य अनुष्ठानों के बराबर होता है। यह यज्ञ भगवान राम और माता सीता के नाम और स्वरूप की सामूहिक आराधना है जो घर में सुख-शांति, समृद्धि और सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति प्रदान करता है। इसे श्रद्धा और सही विधि से करने पर भक्त को न केवल आध्यात्मिक लाभ मिलता है बल्कि उसके भौतिक जीवन की बाधाएं भी दूर होती हैं। ऐसे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं कि घर में सीताराम महायज्ञ करने की सही विधि और लाभ क्या हैं?
सीताराम महायज्ञ को इतना शक्तिशाली इसलिए माना जाता है क्योंकि इसमें स्वयं भगवान राम और माता सीता की एक साथ आराधना की जाती है। इस यज्ञ से पति-पत्नी के बीच मधुर संबंध बनते हैं और घर में अखंड सौभाग्य और पारिवारिक शांति का वास होता है।

इस महायज्ञ में सम्मिलित होने से जाने-अनजाने में किए गए सभी पापों का नाश होता है और व्यक्ति मोक्ष की ओर अग्रसर होता है। माता सीता को धन और पृथ्वी की देवी माना जाता है, इसलिए यह यज्ञ घर में धन-धान्य और समृद्धि लाता है। भगवान राम की कृपा से सभी प्रकार के भय, रोग और शत्रु बाधाएं दूर होती हैं।
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घर में एक पवित्र और साफ-सुथरी जगह चुनें, जहां हवन कुंड या वेदी स्थापित की जा सके। राम-सीता की मूर्ति या चित्र, हवन सामग्री जैसे जौ, तिल, चावल, घी, शक्कर, चंदन, आम की लकड़ी, गंगाजल, पंचामृत, रोली, अक्षत, धूप, दीप, और प्रसाद की व्यवस्था करें।
यज्ञ शुरू करने से पहले, हाथ में जल लेकर यजमान अपनी इच्छा बोलते हुए संकल्प लेता है। सबसे पहले भगवान गणेश का आह्वान और पूजन करें ताकि अनुष्ठान निर्विघ्न संपन्न हो। वेदी की स्थापना करें और उसमें अग्नि प्रज्वलित करें।

इसके बाद भगवान राम, माता सीता, हनुमान जी और अन्य देवी-देवताओं का विधिवत आह्वान करें। यज्ञ का मुख्य भाग 'श्री राम जय राम जय जय राम' या 'ॐ जानकी वल्लभाय नमः' जैसे राम मंत्रों का जाप करते हुए हवन कुंड में आहुतियां देना है।
पंडित जी द्वारा दिए गए मंत्रों का उच्चारण करते हुए श्रद्धापूर्वक घी और सामग्री अर्पित करें। निर्धारित संख्या में आहुतियां पूरी होने पर, सभी सामग्री और नारियल के साथ पूर्णाहुति दी जाती है।
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यज्ञ संपन्न होने पर भगवान राम और माता सीता की आरती की जाती है और किसी भी त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थना की जाती है। अंत में, सभी भक्तों को प्रसाद वितरित किया जाता है और पंडितों और गरीबों को भोजन कराना अत्यंत शुभ माना जाता है।
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