इस संसार में जो भी जन्म लेता है, उसे एक दिन मृत्यु को भी स्वीकार करना पड़ता है। यह प्रकृति का अटल नियम है। जब कोई नया जीवन आता है, तो परिवार में खुशियां छा जाती हैं, लेकिन किसी अपने के जाने का गम दिल को गहरा दुख देता है। पर क्या आपने कभी सोचा है कि जब मृत्यु करीब आती है, तो व्यक्ति कैसा महसूस करता है?
मृत्यु के समय का अनुभव
गरुड़ पुराण के अनुसार, जब मृत्यु नजदीक होती है, तो व्यक्ति को यमराज और यमदूत दिखाई देने लगते हैं। उसकी सोचने-समझने की क्षमता धीरे-धीरे क्षीण होने लगती है। बोलने की कोशिश करने पर भी आवाज नहीं निकलती और आसपास की ध्वनियां सुनाई देना बंद हो जाती हैं। मृत्यु के अंतिम क्षणों में, व्यक्ति को अपने जीवन की धुंधली यादें नजर आने लगती हैं। अंततः, यमराज उसके शरीर से आत्मा को निकालकर यमलोक ले जाते हैं।
यमलोक में आत्मा का सफर
गरुड़ पुराण के अनुसार, यमलोक में हर आत्मा के जीवन का पूरा लेखा-जोखा मौजूद होता है। जब आत्मा वहां पहुंचती है, तो उसके अच्छे और बुरे कर्मों का मूल्यांकन किया जाता है। इसी के आधार पर तय किया जाता है कि उसे स्वर्ग भेजा जाएगा या नरक। मृत्यु के बाद आत्मा को लंबी यात्रा करनी पड़ती है, जिसमें यमलोक तक का रास्ता लगभग 99 हजार योजन लंबा होता है। इस दौरान, यमदूत आत्मा को विभिन्न परीक्षाओं और सजाओं से गुजरने के लिए मजबूर करते हैं।
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पिंडदान और मोक्ष का महत्व
गरुड़ पुराण के अनुसार, यदि मृत आत्मा का पिंडदान नहीं किया जाता, तो वह प्रेत योनि में चली जाती है और भटकती रहती है। इसलिए, मृत्यु के बाद 10 दिनों तक पिंडदान करने की परंपरा बनाई गई है, ताकि आत्मा को शांति और मोक्ष प्राप्त हो सके। शव जलाने के बाद, मृत शरीर से एक सूक्ष्म शरीर (जीवात्मा) उत्पन्न होता है, जो अगले 12 दिनों तक इस संसार में घूमता रहता है। 13वें दिन, यमदूत उसे पकड़कर यमलोक ले जाते हैं।
अकाल मृत्यु का प्रभाव
अकाल मृत्यु का अर्थ है समय से पहले किसी व्यक्ति का जीवन समाप्त हो जाना। यह दुर्घटना, बीमारी या किसी अप्राकृतिक घटना के कारण हो सकता है। गरुड़ पुराण के अनुसार, यदि किसी की हत्या होती है, तो उसे ब्रह्म दोष लगता है, और यदि कोई स्वयं अपना जीवन समाप्त करता है, तो यह बहुत बड़ा अपराध माना जाता है। आत्महत्या करने वाली आत्माओं को लंबे समय तक कष्ट सहना पड़ता है।
अकाल मृत्यु की श्रेणियां
गरुड़ पुराण के अनुसार, निम्नलिखित स्थितियों में हुई मृत्यु को अकाल मृत्यु माना जाता है:
- भूख से तड़पकर मरना
- हिंसा या हत्या का शिकार होना
- फांसी लगाकर मरना
- आग में जलकर मरना
- सांप के काटने से मरना
- जहर खाकर मरना
जो लोग अपनी जान ले लेते हैं, उन्हें अगले जन्म में मनुष्य शरीर प्राप्त नहीं होता। ऐसे लोगों की आत्मा को सात नरकों में से किसी एक में भेजा जाता है, जहां उन्हें लगभग 60 हजार वर्षों तक दंड भुगतना पड़ता है।
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आत्मा के पुनर्जन्म का समय
गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत्यु के तीन दिन बाद आत्मा दूसरे शरीर में प्रवेश कर सकती है। कुछ आत्माएं 10 दिन, कुछ 13 दिन, और कुछ को 37 से 40 दिनों में नया शरीर मिल जाता है। इसलिए, हिंदू परंपराओं में दशगात्र (दसवां दिन) और तेरहवीं (तेरहवां दिन) का आयोजन किया जाता है। परंतु, आत्महत्या करने वाली आत्माएं अधर में लटक जाती हैं और जब तक उनका निर्धारित समय पूरा नहीं होता, वे भटकती रहती हैं। जिन आत्माओं को शरीर नहीं मिलता, वे प्रेत योनि में चली जाती हैं।
मोक्ष प्राप्ति का मार्ग
जो आत्माएं प्रेत योनि में फंस जाती हैं, उनके लिए श्राद्ध, बरसी और विशेष रूप से गया में पिंडदान किया जाता है, ताकि वे मोक्ष प्राप्त कर सकें। गरुड़ पुराण के अनुसार, आत्मा की मुक्ति के लिए परिवारजन को मृत्यु के बाद के धार्मिक अनुष्ठानों को पूरा करना चाहिए।
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Image Credit- jagran, wikipedia
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