हिंदू धर्म में सावन का महीना बहुत खास होता है। इस पूरे महीने में शिव भक्त विधि विधान से शिव परिवार की पूजा करते हैं। सावन में पार्थिव शिवलिंग और रूद्राभिषेक का खास महत्व है। सावन मास में पार्थिव शिवलिंग की पूजा और रूद्राभिषेक करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्ति की सारी मनोकामना पूरी करते हैं। सावन के महीने में शिवालय और शिव मंदिरों में अलग ही रौनक और उत्साह देखने को मिलती है। भक्त भगवान के मंदिर को बहुत सूंदर तरीके के से सजाते हैं और रोजाना कृतन एवं भजन संध्या आयोजन किया जाता है। वैसे तो भारत में भगवान शिव की कई मंदिर हैं, लेकिन इन मंदिरों में कुछ मंदिर बेहद प्रसिद्ध है। इसी में से एक है द्वारका स्थित नागेश्वर मंदिर, चलिए इस मंदिर के बारे में विस्तार से जानते हैं।
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग की कथा
नागेश्वर ज्योतिर्लिंग को लेकर यह कथा विख्यात है कि एक दारूका नामक एक राक्षसी कन्या थी। दारूका मां पार्वतीकी तपस्या कर उन्हें प्रसन्न करती है और उनसे एक वरदान मांगती है। दारूका मां पार्वती से कहती है कि मैं वन नहीं जा सकती हूं, वहां कई तरह के दैवीय औषधियां हैं। ऐसे में मेरी विनती है कि आप हम राक्षसों को भी उस वन में सतकर्म के लिए जाने की अनुमति दें। मां पार्वती दारूका को वरदान स्वरूप उस वन में जाने की अनुमति देती है।
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दारूका वन में जाने लगी और वहां जाकर बहुत उत्पात मचाया और देवी-देवताओं से उस वन में जाने का अधिकार छीन लिया। इसके अलावा दारूका शिव भक्त सुप्रिया को बंदी बना लिया। दारूका के अत्याचार से परेशान होकर सुप्रिया भगवान शिव की तपस्या शुरू कर दी। भगवान शिव सुप्रिया के तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए, भगवान शिव के साथ एक बहुत सुंदर मदिंर भी प्रकट हुआ, जिसमें एक ज्योतिर्लिंग प्रकाशित हो रहा था। सुप्रिया भगवान शिव से राक्षसों का नाश मांगा और उन्हें उसी जगह पर स्थित होने को कहा। शिव जी ने दारूका समेत सभी राक्षसों का नाश किया और नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में वहीं स्थापित हुए।
क्यों प्रसिद्ध है नागेश्वर मंदिर
गुजरात के द्वारका नाथ धाम से यह नागेश्वर मंदिर 17 किलोमीटर दूर है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इश मंदिर में पार्वती और महादेव नाग-नागिन के रूप में प्रकट हुए थे, इसलिए इसे नागेश्वर मंदिर कहा जाता है। भारत में भगवान शिव के कुल 12 ज्योतिर्लिंग हैं, उसमें दारुक वन में स्थित यह ज्योतिर्लिंग 10 वें स्थान पर है।
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