पितृ पक्ष, जो इस वर्ष 7 सितंबर से आरंभ हो रहे हैं, यह हिंदू धर्म में एक अत्यंत पावन और महत्वपूर्ण काल माना जाता है। इस अवधि में लोग अपने पूर्वजों की स्मृति में श्राद्ध कर्म करते हैं। मान्यता है कि पितृ पक्ष के दौरान हमारे पितर पृथ्वी पर अपने वंशजों से संपर्क करने आते हैं। ऐसे में वे किसी भी स्वरूप में आपके सामने प्रकट हो सकते हैं और यदि उनका उचित सम्मान नहीं किया गया, तो वे अप्रसन्न होकर नाराज भी हो सकते हैं, जिससे परिवार पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। इसी कारण पितृ पक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध करना न केवल धार्मिक, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी अनिवार्य माना जाता है।
इस समय लोग पिंडदान भी करते हैं, जो पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान है। अक्सर लोग पिंडदान और श्राद्ध को एक ही समझ लेते हैं, जबकि दोनों के बीच स्पष्ट अंतर होता है। इस विषय में हमने छिंदवाड़ा के विद्वान पंडित सौरभ त्रिपाठी से बातचीत की, जिन्होंने पिंडदान की विस्तृत जानकारी साझा की।
पंडित सौरभ जी के अनुसार, पिंडदान का अर्थ है, अपने पूर्वजों को पितृ लोक में उचित स्थान देना, उन्हें पितृगण में सम्मिलित करना। यह एक महत्वपूर्ण कर्म है, जिसे प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए। भारत के कई तीर्थ स्थलों, जैसे गया, प्रयाग, हरिद्वार आदि में पिंडदान की विशेष परंपरा है। एक बार विधिवत पिंडदान कर देने के पश्चात श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि यह प्रक्रिया पूर्वजों की आत्मा को पूर्णतः संतोष और शांति प्रदान करती है।
रना और परिवार में सुख-शांति बनाए रखना है। इसलिए पितृ पक्ष के दौरान पिंडदान और श्राद्ध दोनों का विधिपूर्वक पालन करना चाहिए ताकि पूर्वज प्रसन्न हों और उनके आशीर्वाद से परिवार में समृद्धि बनी रहे।
मृत्यु के बाद जब किसी व्यक्ति की आत्मा को पितृों में शामिल किया जाता है, तब उसके लिए श्राद्ध किया जाता है। इसके बाद पिंडदान किया जा सकता है। पिंडदान एक ऐसा धार्मिक अनुष्ठान है, जिसके बाद हर साल बार-बार श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती। पिंडदान के बाद केवल अभिजीत मुहूर्त में तर्पण करना पर्याप्त माना जाता है।
पिंडदान और तर्पण में थोड़ा फर्क होता है। तर्पण में जल से ही पूर्वजों को तर्पित किया जाता है, जबकि पिंडदान में मिट्टी या आटे के बने पिंड (छोटे गोले) बनाकर उनका दान किया जाता है। पंडित जी के अनुसार, पिंडदान की प्रक्रिया सिर्फ पितृ पक्ष के दौरान ही सीमित नहीं है, बल्कि इसे साल के किसी भी समय किया जा सकता है।
पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। साथ ही, इससे प्रत्येक वर्ष श्राद्ध कर्म की आवश्यकता भी समाप्त हो जाती है। इसलिए पिंडदान को हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे सही विधि और श्रद्धा के साथ करना चाहिए।
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पिंडदान करना एक पवित्र और महत्वपूर्ण धार्मिक कार्य है, जो पूर्वजों की आत्मा को शांति देने के लिए किया जाता है। इसे सही विधि से करने पर इसका पूरा फल मिलता है। पंडित जी पिंडदान करने की आसान और सही प्रक्रिया बता रहे हैं:
सबसे पहले स्नान करके साफ-सुथरे और शुद्ध वस्त्र पहनें। पूजा स्थल को साफ करें और पूजा के लिए थाली, मिट्टी, जल, गेहूं या चावल का आटा, और आवश्यक सामग्री तैयार रखें।
मिट्टी या आटे को हल्का गीला करें और छोटे-छोटे गोले बनाएं, जिन्हें पिंड कहते हैं। ये पिंड पूर्वजों के प्रतीक होते हैं।
पूजा की थाली में पिंड रखें, साथ ही फूल, रोली, चावल, सुपारी, दही, मिश्री, और जल भी रखें। इन चीजों का इस्तेमाल पिंडदान के दौरान किया जाता है।
पंडित या स्वयं मंत्रजाप करते हुए "ॐ पितृभ्यो नमः" या अन्य शास्त्रों में बताए गए पितृ मंत्रों का जाप करें। इससे पूर्वजों को सम्मान और श्रद्धा व्यक्त होती है।
मंत्र जाप के बाद पिंड को हाथ में लेकर गंगा जल या किसी पवित्र जल में विसर्जित करें। यदि नदी के किनारे हो तो नदी में विसर्जित करें।
पिंडदान के बाद तर्पण की प्रक्रिया भी करें। तर्पण में जल में कुछ चावल डालकर पूर्वजों को अर्पित किया जाता है, जिससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
पूजा समाप्ति के बाद प्रसाद का वितरण करें और सभी को तिलक लगाकर सम्मान दें।
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अंत में मन में पूर्वजों की आत्मा की शांति और परिवार की खुशहाली की प्रार्थना करें। अपने परिवार के कल्याण का संकल्प लें।
पिंडदान की विधि क्षेत्र और परंपरा अनुसार थोड़ी भिन्न हो सकती है, इसलिए पंडित से सलाह लेकर ही अनुष्ठान करना उत्तम होता है। इस प्रकार, पिंडदान विधि से पूर्वजों को श्रद्धांजलि अर्पित कर उनकी आत्मा को शांति दी जाती है और परिवार में सुख-शांति बनी रहती है। यह जानकारी आपको पसंद आई हो तो इस लेख को शेयर और लाइक करें।
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