दशहरा को लेकर यह मान्यता है कि यह पर्व बुराई पर अच्छाई और असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है। हिंदू धर्म में नवरात्रि के नव दिनों के पर्व के बाद दसवें दिन पूरे देश में दशहरा का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन को लेकर दो पौराणिक कथाएं हैं, एक भगवान श्री राम ने लंका में रावण का इस दिन वध किया था और दूसरा मां दुर्गा ने नव दिनों के युद्ध के बाद दसवें दिन यानी विजयदशमी के दिन महिषासुर का संघार किया था। विजय के प्रतीक इस त्यौहार के दिन शस्त्र पूजन की भी पुरानी परंपरा चली आ रही है।
बहुत से घरों में पुराने जमाने के अस्त्र और शस्त्र रखे हुए होते हैं, जिसकी पूजन दशहरा के दिन ही बहुत धूमधाम से की जाती है। बहुत से लोगों को शस्त्र पूजन के बारे में नहीं पता है, वे लोग नहीं जानते हैं, कि यह पूजन क्यों किया जाता है और इसका क्या महत्व और नियम है। ऐसे में आज हम आपको इस लेख की मदद से शस्त्र पूजन से जुड़ी कुछ जानकारी देंगे।
शस्त्र पूजन की परंपरा क्या है
दशहरा हिंदुओं के मुख्य त्यौहार में से एक है। इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था और भगवान श्री राम ने रावण का वध कर माता सीताको लंका के कैद से मुक्त किया था। यह दोनों ही कथा विजय को चिन्हित करती है। पहले के समय में जब राजा महाराजा युद्ध के लिए जाते थे तो विजय प्राप्ति के लिए शस्त्रों की पूजा करते थे। तभी से यह शस्त्र पूजन की परंपरा का विधान शुरू हुआ और आजतक सभी क्षत्रियों द्वारा शस्त्र पूजन किया जाता है। इसके अलावा इसी दिन ब्राह्मण विद्या प्राप्त करने के लिए चुने जाते थे।
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शस्त्र में होता है कुल देवी-देवता का वास
आज भी राजपूत, ठाकुर और क्षत्रिय परिवार में शस्त्र पूजन की परंपरा निभाई जा रही है। हिंदुओं और क्षत्रियों के लिए दशहरा का दिन बहुत शुभ और बड़ा माना गया है। दशहरा के दिन ही बहुत से क्षत्रिय परिवारों के द्वारा अपने कुल देवी-देवता का सम्मान कर उन्हें बली और प्रसाद चढ़ाते हैं। बहुत से क्षत्रिय परिवारों का मानना है कि उनके घरों में पूजा के स्थान पर रखे पुराने अस्त्र और शस्त्र में ही उनके कुल देवी और देवता का वास है, जिसे दशहरा के दिन साफ सफाई कर उनकी पूजा की जाती है, फिर उसी तलवार या शस्त्र से बली देकर प्रसाद या नेवज का भोग लगाया जाता है।
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