कोई भी काम मुश्किल नहीं होता है। वो कहते हैं न मन में जुनून और कुछ करने का जज्बा हो तो आप कुछ भी कर सकते हैं। तो कुछ ऐसी ही मेरी कहानी है। मैं बात कर रही हैं मेहंदी सीखने की। हालांकि, कई लोग इस सीखने के लिए स्पेशल क्लासेज भी लेते हैं। पर, मेरी कहानी इन सब से थोड़ी अलग और आपके लिए रोचक जरूर हो सकती है।
दरअसल, एकबार बचपन में मुझे एक मामुली सी बच्ची समझकर मोहल्ले की एक दीदी ने मेहंदी लगाने से मना कर दिया था। तब मैं सिर्फ 7 साल की ही थी। उनके डांटने और मेरे हाथों पर मेहंदी न लगाने वाली बात को सुनकर मैं रोने भी लगी थी। फिर कुछ ही महीने बाद मैंने यू हीं बिना किसी ओकेजन के अपने हाथों पर मेहंदी लगा ली। घर वालों ने जमकर तारीफ की और इसी तरह अपने हाथों पर प्रैक्टिस करके मैंने मेहंदी लगाना शुरू कर दिया। अब, होम टाउन में मेरा काफी नाम है।
बचपन में मेहंदी के लिए पड़ी थी डांट
मेरे से हर कोई पूछते थे कि तुमने क्लास कहां से ली है और मै हर बार लोगों से कहती थी जरूरी नहीं की कुछ सीखने के लिए हरबार क्लास की ही जरूरत पड़े। कभी-कभी आप कुछ करने की ठान लेने से भी चीजें सीख जाती हैं।
दरअसल, एकबार मैं अपने मोहल्ले में मेहंदी लगाने वाली एक दीदी के पास गई थी, तब मैं सिर्फ 7 साल की ही थी। मुझे भी अपने हाथों पर सुंदर मेहंदी देखने का शौक था। इसी उम्मीद के साथ मैं पड़ोस के घर गई थी। पर, मुझे छोटी बच्ची समझकर वहां से भगा दिया गया और इसके लिए मुझे उनकी मां से डांट भी सुननी पड़ी थी। इसके बाद मैं घर आकर अकेले कमरे में बैठकर रोने लगी और रोते रोते सो गई। शाम का समय था और मेरे घर इस बारे में किसी को कुछ पता भी नहीं था। बाद में, मेरी मम्मी को पता चला फिर उन्होंने रात में मेरे हाथों पर खुद ही मेहंदी लगा दी। सुबह उठकर अपने हाथों को देख मैं काफी खुश हो गई थी।
कैसे सीखी मेहंदी लगाना?
पड़ोस की दीदी के घर से डांट मिलने के कारण मुझे बहुत गुस्सा आया था। कुछ ही महीने बाद मुझे मैंने अपने घर में पड़े मेहंदी का कोन देखा, जिसे देखकर मेरे मन में ख्याल आया कि इसे मैं भी तो कर सकती हूं। आपको हैरानी हो सकती है, महज 7 साल के उम्र में मेरे मन में ऐसा जज्बा हुआ कि मैं उस दिन बिना कुछ देखे और बिना सोचे-समझे अपने हाथों पर मेहंदी लगा ली। लगाने के बाद मेरी दीदी और घर वालों से बहुत तारीफ मिली। दीदी ने मुझे ऐसे ही कोशिश करने की सलाह दी। फिर क्या मैं तो जब भी मेरे हाथों से मेहंदी के रंग जाते थे हर बार मैं कुछ अलग, उल्टा-सीधा अपने ही हाथों पर ट्राई करते रहती थी। एक समय ऐसा आया कि मैं मेहंदी लगाने में एक्सपर्ट हो गई। खास बात यह है कि मैं 7 से 8 साल की उम्र में ही पड़ोस वाली दीदी से ज्यादा अच्छा मेहंदी लगाना सीख गई। उसके बाद से पड़ोस की दीदी की मां, जिन्होंने मुझे कभी डांट लगाई थी। उन्हें मेरे सिवा किसी की मेहंदी पसंद ही नहीं आती है।
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कैसे बनी मेहंदी आर्टिस्ट ?
मैंने तो बचपन में ही खुद की प्रैक्टिस से मेहंदी सीख ली थी। पर, तब ये बात सिर्फ मेरे घर वाले और कुछ पड़ोस वाले ही जानते थे। फिर, धीरे-धीरे दोस्तों को खबर हुई और सब ने मिलकर मेरी जमकर तारीफें की। हालांकि, मेरे पापा को ये पसंद नहीं था कि मैं किसी के घर जाकर उन्हें मेहंदी लगाऊं। इसलिए मैं कहीं जाती नहीं थी। सबलोग मेरे पास आकर ही लगवाते थे। इस तरह से आज मेरे होम टाउन में मेरी हर जगह डिमांड हो गई।
मैं यह कह सकती हूं कि कहीं न कहीं मुझे मेहंदी सीखने के पीछे उस पड़ोस वाली दीदी का ही हाथ है। इसके साथ ही मन में कुछ करने का चाहत और जुनून भी मेरी इस कला की वजह है। इसलिए, मैं सभी से हमेशा कहती हूं कि अगर आप कुछ करने की ठान लें तो कोई भी काम इतना मुश्किल नहीं होता है। जैसे मैं इतने कम उम्र में ऐसी कला को खुद सिर्फ प्रैक्टिस से सीख सकती हूं, वैसे ही आप भी किसी भी कला को आसानी से सीख सकते हैं।
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Image credit- Shanu Shivani
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