मैं ज्योति भारद्वाज हूं और दिल्ली में रहती हूं। मेरा जीवन बहुत ही साधारण, लेकिन प्रेरणा से भरपूर है। मैं काफी क्रिएटिव हूं और घूमने के साथ-साथ कविता आदि चीजें लिखने का भी शौक रखती हूं। ये कविता उन भक्तों के लिए जो हर साल जगन्नाथ मंदिर दर्शन के लिए जाते हैं।
जय जगन्नाथ तुम हो विधाता
हे जगन्नाथ तुम हो विधाता,
हर भक्त यही है गाता।
इच्छाओं की बांधी है मैंने कड़ी,
उम्मीदों का दीप जलाए तुमरे आगे हूँ खड़ी।
अपनी इच्छा से मुझे अपने पास बुलाया,
फिर बेटी की तरह पाल कर घर मुझे भिजवाया।
किसी भी भक्त से कभी ना किया तुमने किनारा,
हर किसी को तुमने है स्वीकारा।
उस रोती रात में तुमने दिखाया उजाला,
हे जगन्नाथ तुम बिन कोई ना है हमारा।
पुरी नगरी में बस कर तुमने उसे चार चाँद लगाएं,
तुमसे मिलने दुनिया भर के भक्त है आए।
भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ तुम हो विराजमान,
यहीं है तुम्हारी असली पहचान।
हर साल जब तुम्हारी रथ यात्रा है निकलती,
सबकी नज़रें तुम्हारे दर्शन को हैं तरसती।
तुम्हारी महिमा का एक ऐसा नज़ारा
मंदिर का ध्वज हवा के विपरीत है लहराता।
तुम्हारी कृपा को कोटि कोटि नमन,
जिस तरफ़ से देखो सुदर्शन चक्र के होते हैं दर्शन।
हर जीव ने तुम्हारे आगे हैं सर झुकाया,
मंदिर के ऊपर कोई पक्षी ना उड़ पाया।
तुम्हारे दर तक आकर हर किसी को मिलता है प्रसाद,
उसे ग्रहण कर हर कोई होता है आबाद।
तुम्हारे चमत्कार का करिश्मा तब दिखाया,
जब प्रसाद का सबसे ऊपर वाला मटका है पक जाता।
दूर से भी जब जब मैंने आँखें बंद कर तुम्हारे दर्शन हैं किये,
अंधेरे रास्तों पे तुमने ख़ुशियों के जलाए हैं दीये।
हर किसी की ज़रूरत तुमने की है पूरी,
चाहे कितनी भी हो दूरी।
चारों धामों में से एक उत्कल का है ये धाम,
यहां आकर मेरी ख़ुशियों का बढ़ गया है मान।
हे जगन्नाथ अपनी कृपा सदा हम पर बनाए रखना,
अपनी दया दृष्टि में सदा तुम हमें रखना।
हे जगन्नाथ तुम हो विधाता,
हर भक्त यही है गाता।
जय जगन्नाथ!
लेखक-ज्योति भारद्वाज
(ज्योति भारद्वाज जी एक कामकाजी महिला होने के साथ एक कवित्री भी हैं और सोशल मीडिया पर एक्टिव भी रहती हैं।)
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