मैं शुभांगी शर्मा हमेशा से ही स्कूल फ्रेंड के साथ घूमने का सपना लेकर रोज दिन काट रही थी। हालांकि,प्लान बनते तो थे लेकिन तारीख हमेशा कुछ दिन आगे-पीछे हो जाती थी। मैं वर्किंग हूं, इसलिए डेट्स मैच करना मुश्किल होता है।
एक दिन अचानक से मेरी दोस्त रेहाना ने मुझे फोन करके पूछा कि तू फ्री है ऋषिकेश चलें? मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था, क्योंकि मैं हमेशा से ही इस दिन का इंतजार कर रही थी। इस समय मेरी मम्मी गांव गई हुई थी तो मेरा घूमना थोड़ा आसान था।
जाने के 2-3 दिन पहले मैनें अपनी मम्मी से पूछा कि मैं घूमने जाऊं तो उन्होनें बिना किसी सवाल जवाब के हां कह दी। मुझे लगा था कि मम्मी अभी ताने देंगी कि काम तुमसे होता नहीं, घूमने के लिए हमेशा तैयार रहती हो। मैं मम्मी का यह जवाब सुन दंग रह गई थी क्योंकि आज से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ कि मेरे एक कहने पर मम्मी घूमने के लिए हां कह दें। कुछ देर के लिए मेरे घर की रीत बदल गई थी और मैं सांतवे आसमान पर थी।
मैनें अपने ऑफिस में वर्क फ्रॉम होम की बात कर ली थी। हालांकि, इसके लिए मुझे झूठ बोलना पड़ा था। ऑफिस का काम करके मैं वीरवार की रात अपने दोस्त के घर पहुंच गई। हमने कश्मीरी गेट की बस पकड़ी और निकल पड़े नए सफर पर।
सुबह करीब 6 बजे हम ऋषिकेश पहुंच चुके थे। इस दौरान लक्ष्मण झूला बंद था क्योंकि उस पर काम चल रहा था। इसलिए हमें करीब 2 घंटे इंतजार करना पड़ा ताकि बोट चले और हम उस पार पहुंचे। हमने अपना रूम पहले से ही बुक किया हुआ था। हम वहां पहुंचे, मैनें वहां जाकर भी काम किया और उसके बाद हम रीवर राफटिंग के लिए चल गए। हम रिवर राफ्टिंग करके बेहद थक गए थे। इसके बाद हम गंगा किनारे बैठ जहां एक लड़का हाथों में गिटार लिए गाने गा रहा था। उसकी आवाज इतनी मधुर थी कि मेरे शरीर की सारी थकान दूर हो गई।
ऋषिकेश में मैनें 3 दिन बिताएं और मैं तीनों दिन सोई नहीं। मेरी तीनों राते बिल्कुल अलग थी। मैनें रातों को सड़क पर कुछ लोगों के साथ घूम रही थी। रात भर गंगा किनारे बैठ गाने सुनने का मजा ही अलग है।
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