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आइए जानते हैं हिंदू विवाह के 8 पारंपरिक रूप के बारे में

अच्छा अगर आपसे यह सवाल किया जाए कि हिन्दू विवाह के कितने रूप होते हैं तो आपका जवाब क्या हो सकता है? शायद आप बोलें कि हम तो सिर्फ विवाह के बारे में जानते हैं जो हमारे यहां होती है। लेकिन आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हिंदू विवाह के 8 पारंपरिक रूप होते हैं। अगर आप हिंदू विवाह के 8 पारंपरिक रूप के बारे में जानकारी चाहते हैं तो आपको भी इस लेख को ज़रूर पढ़ना चाहिए। आइए जानते हैं।  

Sahitya Maurya

Editorial

Updated:- 25 Mar 2022, 13:03 IST

गंधर्व विवाह

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गंधर्व विवाह को देवताओं से जोड़कर देखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि गंधर्व विवाह में वर-वधु के राजी होने पर किसी स्थानीय ब्राह्मण के घर से लाई अग्नि से हवन होता था। हवन होने के बाद दोनों ही हवन कुंड के तीन फेरे लेते थे और इस प्रकार वर और वधू का विवाह संपन्न मान लिया जाता था। कहा जाता है कि गंधर्व विवाह आज भी भारत के कई राज्यों में फॉलो किया जाता है।

 

ब्रह्म विवाह

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भारत में अगर विवाह की कोई परंपरा सबसे अधिक प्रचलित है तो उसका नाम है ब्रह्म विवाह। हिन्दू धर्म में इसे श्रेष्ठ किस्म का विवाह माना जाता है। इस विवाह में वर पक्ष और कन्या, दोनों पक्ष की सहमति के बाद विवाह सुनिश्चित होता है। इस विवाह में दक्षिणा एवं उपहार आदि देकर वर के साथ कन्या को सुबह के आसपास विदा कर दिया जाता है। (आगरा में वेडिंग शॉपिंग के लिए बेस्ट जगहें)

प्राजापत्य विवाह

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आपने कभी न कभी बाल विवाह के बारे में ज़रूर सुना होगा। अगर हां, तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि प्राजापत्य विवाह को ही बाल विवाह कहा जाता है। कहा जाता है कि प्राजापत्य विवाह में दोनों का छोटी आयु में ही उनकी आज्ञा के बिना विवाह करा दिया जाता था।

पैशाच विवाह

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शादी के कई तरीकों का जिक्र हिंदू धर्म ग्रंथों में किया गया है। इन्हीं में से एक है पैशाच विवाह। कहा जाता है कि जबरन या बेहोशी की हालात में कन्या की शादी करना पैशाच विवाह कहा गया है। कई लोगों का यह मानना है कि पैशाच विवाह का जिक्र मनुस्मृति में भी किया गया है।

आर्ष विवाह

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हिंदू विवाह के 8 पारंपरिक रूप में से आर्ष/आर्श विवाह भी एक विवाह है। कहा जाता है कि आर्ष विवाह में वर पक्ष के लोग कन्या को अपने घर ले जाते समय कन्या के घर वालों को गाय या बैल का एक जोड़ा उपहार में देते थे। गाय या बैल का जोड़ा देने के बाद ही विवाह को संम्पन माना जाता था। (कब से शुरू हो रहा है हिंदू नव वर्ष?)

असुर विवाह

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हालांकि, यह विवाह बहुत पहले निर्धन परिवारों की कन्याओं के साथ ज्यादा होता था। कहा जाता है कि इस विवाह में कन्या पक्ष के लोग वर पक्ष के लोग से एक निश्चित मूल्य लेकर कन्या दान कर देते थें। कहा जाता है कि प्राचीन काल में इसका प्रचलन सबसे अधिक था और एक तरह से इस विवाह में कन्या का सौदा होता था।

राक्षस विवाह

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हालांकि, अब यह विवाह प्रचलन में नहीं है। लेकिन प्राचीन काल में कहा जाता था कि राक्षस विवाह में किसी कन्या को बलपूर्वक, डरा-धमकाकर विवाह किया जाता था जिसे राक्षस विवाह करते हैं। इस विवाह में छल, कपट, बाहुबल का भी प्रयोग किया जाता था।

देव विवाह

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कहा जाता है देव/दैव विवाह ब्रह्म विवाह का ही रूप है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में देव विवाह में कोई धार्मिक अनुष्ठान इत्यादि नहीं होता था। कहा जाता है कि देव विवाह किसी विशेष परिस्थितियों में ही किया जाता था।

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