'हां, तो आ जाइए सब एक साथ, होलिका दहन की मीटिंग हो रही है, सबको काम मिल बांटकर करना होगा,' शर्मा जी ने अपना काम करना शुरू कर दिया था। शर्मा जी वैसे तो सोसाइटी के प्रेसिडेंट नहीं थे, लेकिन होली के समय अचानक उनमें ना जाने क्या ताकत आ जाती थी। सबको पीछे करके सबसे पहले सारा इंतजाम खुद ही करना होता था। यहां शर्मा जी के लिए प्रोत्साहन यह भी होता था कि वो होली खेलने का इंतजाम खुद ही करवाते थे। वो इस तरह से होली का आयोजन करते थे कि हमेशा सभी पड़ोसी और पड़ोसने एक साथ होली के प्रांगण में मौजूद हों।
अब इसमें बेचारे शर्मा जी की कोई गलती नहीं, शुरुआत से ही हमारे देश में 'बुरा ना मानो होली है' वाली प्रथा चली आ रही है। अब इसे लेकर बेचारे शर्मा जी के मन में कुछ आ गया तो क्या। हर साल सभी पड़ोसियों को पता था कि शर्मा जी के सौजन्य से भांग का आयोजन भी होगा और पड़ोसियों को रंग लगाने का कॉम्पटीशन भी उन्हीं की तरफ से होगा।
गाहे-बगाहे कोई पड़ोसन शिकायत कर दे, तो हमेशा की तरह- बुरा ना मानो होली है वाला जुमला और फिर वही भांग के नशे में थे, वाली कहानी। साल भर शर्मा जी इस त्योहार का इंतजार करते थे। अब होली के दौरान भाभियां, चाचियां, दीदियां और पड़ोसनें, सभी एक साथ एक ही जगह पर आ जाती हैं।
इस बार कॉलोनी में नई पड़ोसन आई थी और शर्मा जी को होली का कुछ ज्यादा ही इंतजार था। हालांकि, किसी को ये आइडिया नहीं था कि इस होली उनके साथ क्या होने वाला है। ऐसा नहीं था कि शर्मा जी बुरे आदमी थे। उन्हें तो बस होली में थोड़ा बहुत मस्ती-मजाक करने की आदत थी। दरअसल, हमारे घरों में ये सिखाया ही नहीं जाता कि होली पर की गई ये मस्ती किसी को परेशान कर सकती है। शर्मा जी ने इस बार पहले से ही बेटी और पत्नी को इजाजत दे दी थी कि उन्हें होली की तैयारियों के दौरान परेशान ना किया जाए।
इस बार शर्मा जी ने अपने साथ कुछ दोस्तों को भी रख लिया था और होलिका दहन की तैयारियां शुरू कर दी थीं। कॉलोनी के लोगों में पहले से ही उत्साह था और महिला मंडल भी बातों में मशगूल था। 'इस बार तो और जोर-शोर से तैयारी कर रहे हैं शर्मा जी, ना जाने इस बार क्या करेंगे,' एक महिला ने बोला, 'क्यों हर बार क्या करते हैं?' नई पड़ोसन सीमा ने कहा। 'अरे इन्हें महिलाओं के साथ होली खेलने की बुरी आदत है, हर साल भांग पी लेते हैं फिर जुट जाते हैं रंग लगाने, अब इनके साथ कॉलोनी के मर्दों की टोली भी हो ली है। होली पर हम अलग खेलें, तो भी आकर सबको रंग लगाने की जिद करते हैं।' जब इसके बारे में सीमा को पता चला, तो उसे थोड़ अचंभा हुआ।
'आखिर कोई कुछ कहता क्यों नहीं?' सीमा ने पूछा। 'पूरे साल अच्छे से रहते हैं, और होली पर तो ये सब चलता ही रहता है, पर सच बताएं अच्छा नहीं लगता।' उस महिला ने सीधे कहा। 'इस बार तो सब तुम्हें रंग लगाने की तैयारी में हैं,' उन लोगों ने सीमा से मजाक करने की कोशिश की। सीमा को ये सब अच्छा नहीं लग रहा था। त्योहार के नाम पर ऐसा कौन करता है। पर शर्मा जी ने पहले से ही सीमा से बात-चीत करने और मेल-जोल बढ़ाने की कोशिश कर चुके थे। 'इस बार तो हम आपको होली पर रंग ही देंगे' जैसे शब्द भी उसने सुन लिए थे।
सभी को लग रहा था कि सीमा वैसी ही है जैसी बाकी पड़ोसनें, लेकिन उन्होंने ये सोचा भी नहीं था कि सीमा आगे क्या करने वाली है। सीमा ने सोचा कि इस बार वो खुद ही पूरे मोहल्ले को ये समझा देगी कि बुरा ना मानो होली है का मतलब क्या है।
आखिर होलिका दहन का दिन भी आ ही गया। सीमा ने अपने प्लान को अंजाम देना शुरू कर दिया। पूजा करने के बाद शर्मा जी और उनकी टोली मजाक-मजाक में ये कहने आ गई कि हम तो होली खेलेंगे आपके साथ।
बस यहीं सीमा ने तपाक से कह दिया, 'अरे अभी आपने होली देखी नहीं होगी। इस बार आप नहीं हम आपके साथ होली खेलेंगे,' सीमा का ये जवाब सुनकर सभी हैरान थे। आखिर उसके दिमाग में चल क्या रहा है। सुबह 7 बजे से ही सीमा तैयार हो गई थी और उसने मोहल्ले की दो-तीन महिलाओं को भी तैयार कर लिया था। इससे पहले की पुरुषों की टोली एक साथ होकर बाहर निकले, सीमा ने भांग ही गायब करवा दी। इस प्लान में मिसेज शर्मा भी सीमा के साथ थीं।
भांग के कंटेनर की जगह साधारण दूध वाली ठंडाई रख दी। इसके बाद सुबह-सुबह महिलाओं की टोली को उठाकर शर्मा जी के घर के अंदर सीधे धमाका कर दिया। बेचारे शर्मा जी उस वक्त अपना होली वाला कुर्ता भी नहीं पहन पाए थे। बनियान और पैजामे में खड़े शर्मा जी को सिर से लेकर पैर तक रंग दिया गया।
शर्मा जी ने सोचा भी नहीं था कि उनके साथ ऐसा होगा। सीमा और उसकी टोली ने चाय की फरमाइश भी रख दी और इससे पहले की शर्मा जी कुछ कह पाते, उन्हें ताने मारने शुरू कर दिए।
'क्या शर्मा जी, हमने तो सोचा था आप होली खेलते हैं, ऐसे क्या खड़े ही हुए हैं। चलिए थोड़ी और होली खेली जाए आपके साथ..' सीमा ने कहा। 'नहीं वो अभी होली शुरू नहीं हुई है ना, अभी तो समय...' शर्मा जी बोल पाते उससे पहले ही सीमा ने कहा, 'अरे अभी होली के दिन भी कोई समय देखता है क्या, हमने तो पी ली आपकी वाली भांग, देखिए ठंडाई खत्म होने आ गई।' सीमा ने कहा और शर्मा जी के कान खड़े हो गए। 'क्या, भांग पी ली?' शर्मा जी तुरंत कुर्ता पहन कर रंगे-रंगाए बाहर होली वाले वेन्यू की ओर निकले। वहां जाकर देखा तो सारी महिलाएं, भांग वाली ठंडाई को ही पी रही थीं। वो लगभग खत्म हो गई थी।
ये क्या था, होली की ठंडाई का ऐसा रूप। महिलाओं ने गलत ठंडाई पी ली। शर्मा ने मन में सोचते हुए अपने दोस्तों को बुलाने चले गए। सभी ने अपने-अपने घरों से निकलकर वहां आकर देखा तो माजरा बदल चुका था। इस बार महिलाएं बहक गई थीं।
सोसाइटी की महिलाएं एक-एक करके पुरुषों जैसी हरकतें करने लगी थीं। एक-एक पुरुष को पकड़ कर रंग लगाया जा रहा था। वैसे तो हर साल यही होता था, लेकिन इस बार उल्टा होते देखकर शर्मा जी और उनकी गैंग को थोड़ा अजीब लग रहा था। बेचारे तिवारी जी का तो भागते-भागते कुर्ता ही फट गया और महेश बाबू तो रंग और पानी के कारण फिसलकर गिर ही गए। महिलाएं इतनी तेज होती हैं किसी को पता ही नहीं था। शर्मा जी और बाकी लोग जैसे-तैसे एक साथ हुए। अब इस बार उनके पास भांग का बहाना नहीं था, इस बार तो भांग महिलाओं ने पी ली थी।
सभी महिलाएं डीजे की तेज धुन पर नाच रही थीं और सभी पुरुष साइड में खड़े होकर धीरे-धीरे कुछ ना कुछ खाए जा रहे थे। कुछ तो ये नजारा देखकर इतने भयभीत हो गए थे कि आगे निकले ही नहीं। उन्होंने घर की चार दीवारी में रहना पसंद किया।
देखते ही देखते 11 बज गए थे और महिलाएं रुकने का नाम नहीं ले रही थीं। अब तो आस-पड़ोस की कॉलोनी से भी वो आ गई थीं। शर्मा जी से उनके दोस्तों ने कहा कि इसे रोका जाए, बेचारे शर्मा जी वैसे ही सुबह से लाल-पीले हो चुके थे। अब वो किसी तरह से भांग के कंटेनर के पास पहुंचे और उन्होंने उसे वहां से हटाने की कोशिश की, लेकिन वो और उनके साथ गए दो और लोग इतनी बुरी तरह से महिलाओं के बीच फंस गए कि किसी को होश ही नहीं था।
महिलाओं ने उन्हें दोबारा इतना रंग दिया कि पहचानना मुश्किल हो गया।
सीमा इस बार डीजे वाले के साथ माइक लेकर खड़ी हो गई और जोर-जोर से चिल्लाकर शर्मा जी को स्टेज पर बुलाने लगी। शर्मा जी की ऐसी हालत देखकर उनके सभी दोस्त कन्नी काटने लगे। बेचारे शर्मा जी, हर साल खुद स्टेज पर चढ़कर एक-एक करके लोगों को बुलाते थे। आज उनकी ऐसी हालत कैसे हो गई। स्टेज पर चढ़े और सीमा ने उनसे गाना-गाने की फरमाइश कर दी। हर साल खुद शर्मा जी गाना गाते थे, अब सीमा के कहने पर उनके मुंह में बोल नहीं हो रहे थे। इस तरह वो हर साल मोहल्ले की महिलाओं को स्टेज पर बुलाया करते थे, लेकिन आज उनका खुद का हाल ऐसा हो गया था।
सीमा से बचते-बचाते वो पहुंच गए नीचे और फिर सारे पुरुषों ने अपने-अपने घर जाने का फैसला लिया। इस बार का त्योहार उनके लिए कुछ खास नहीं था। सबने सोचा कि एक बार महिलाओं की भांग का नशा उतरेगा तो वो लोग अच्छे से खबर लेंगे, लेकिन घर पर कुछ खाना नहीं बना था और खाने-पीने का सारा इंतजाम ही होली वेन्यू पर हो रखा था। सभी भूखे-प्यासे वहां आ ही गए।
अभी तक महिलाएं भी आपस में बात करते-करते थोड़ी ठंडी हो गई थीं। सबने तेजी से खाना शुरू किया और फिर पता नहीं कैसे महिलाओं को दोबारा जोश आ गया। सभी पुरुषों के पास जाकर ताने मारना, गाने गाना शुरू कर दिया, 'आज ना छोड़ेंगे बस हमजोली, खेलेंगे हम होली...' जैसे गाने शुरू हो गए। बेचारे पुरुषों का खाना खाना भी दूभर हो गया था। इतने में शर्मा जी को गुस्सा आया और अपनी पत्नी को चिल्लाकर बोले - चलो घर पर। क्या कर रही हो ये, ज्यादा चढ़ गई है क्या?
इतने में पत्नी ने कहा, 'वही कर रही हूं जो हर साल आप करते हैं,' शर्मा जी को ऐसे जवाब की उम्मीद नहीं थी।
मोहल्ले के सभी लोग अब शांत हो चुके थे। इतने में सीमा आए आई और उसने कहा, 'क्यों आप सभी मर्दों के साथ भी तो हर साल ऐसे ही होता है। भांग के नशे में चूर यही सब करते हैं आप लोग, एक साल आपके साथ ऐसा हो गया तो इतना गुस्सा क्यों?' सीमा के सवाल सभी को बुरी तरह से चुभ गए।
'आप और आपके सारे साथी, यहां जैसे बैठे हैं ना वहीं महिलाएं बैठी होती हैं, एक दिन में आप लोग जो हरकतें करते हैं वो साल भर उन्हें परेशान करती हैं, लेकिन आपको तो लगता है ये आपका हक है, कोई गुस्सा हो जाए तो बस यही कह दीजिए- बुरा ना मानो होली है।'
'आखिर क्यों बुरा ना माना जाए? बुरा मानेंगे हम।' सीमा ने कहा और सभी महिलाएं उसकी हां में हां मिलाने लगीं। 'हममे से किसी ने भी भांग नहीं पी है। आज से होली के दौरान कोई पिएगा भी नहीं, अगर आप सार्वजनिक तौर पर होली खेल रहे हैं, तो ये सब नहीं चलेगा। हमें भी त्योहार मनाने का उतना ही हक है जितना आपको है।' इस बार मिसेज शर्मा को बोलते सुन शर्मा जी की आंखें झुक गईं।
'बताएं, क्या अब हम कहें बुरा ना मानो होली है...' सीमा ने पूछा और सभी एक दूसरे की शक्ल देखने लगे।
ये वो साल था जब से सोसाइटी में होली के नाम पर 'बुरा मानने की रस्म' शुरू हो गई। अब कोई नहीं कहता, बुरा ना मानो होली है।
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