शास्त्रों में कई ऐसी बातें बताई जाती हैं जिनका हमारे जीवन से गहरा संबंध होता है। ऐसा माना जाता है कि यदि आप इन सभी बातों का पालन करते हैं तो आपके जीवन में खुशहाली बनी रहती है। ऐसे ही आपको भोजन करने और इसे बनाने के भी कई नियमों के बारे में बताया जाता है और यदि आप इन्हीं नियमों से खाना बनाती हैं तो आपके जीवन में सदैव सकारात्मक प्रभाव होते हैं।
शास्त्रों में ऐसा बताया गया है कि कुछ विशेष दिशाओं को खाना बनाने के लिए प्रयोग में नहीं लाना चाहिए। मुख्य रूप से ऐसा दक्षिण दिशा के लिए कहा जाता है और इस दिशा की तरफ मुख करके भोजन करने से आपको मना किया जाता है।
दक्षिण दिशा को यम की दिशा कहा जाता है और यदि आप इस दिशा में मुख करके खाना बनाती हैं तो आपके जीवन में इसके नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं। आइए वास्तु एक्सपर्ट मधु कोटिया से जानें इसके कारणों के बारे में।
ऐसा माना जाता है कि इस दिशा की ओर मुख करके खाना बनाने से भोजन का पोषण कम हो जाता है। इसके अलावा, दक्षिण दिशा को भोजन बनाने के लिए कई अन्य कारणों से भी उपयुक्त नहीं माना जाता है। मान्यता है कि दक्षिण दिशा में खाना बनाने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, जिससे परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
दक्षिण दिशा को अग्नि तत्व माना जाता है और रसोई में पहले से ही आग का तत्व प्रबल होता है। जब आप दक्षिण दिशा में खाना बनाते हैं, तो आग का तत्व अधिक बढ़ जाता है, जिससे घर में तनाव और अशांति का माहौल बन सकता है। इसके अलावा, दक्षिण दिशा में खाना बनाने से घर में आर्थिक समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं, क्योंकि यह दिशा आर्थिक दृष्टि से कमजोर मानी जाती है।
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यदि हम वास्तु की मानें तो दक्षिण दिशा अग्नि तत्व से शासित होती है, जो गर्मी और आग के उपयोग के कारण खाना पकाने की गतिविधियों में भी पहले से स्वाभाविक रूप से ही मौजूद होती है। यदि हम दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके खाना बनाते हैं तो अग्नि तत्व ज्यादा बढ़ सकता है, जिससे तात्विक असंतुलन हो सकता है। यह घर के निवासियों के बीच बढ़ती आक्रामकता, बेचैनी और यहां तक कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के रूप में प्रकट हो सकता है।
यदि आप दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके खाना बनाती हैं तो अग्नि तत्व अधिक गर्मी का कारण बन सकता है और पाचन संबंधी कई विकारों से संबंधित समस्याएं पैदा कर सकता है। यह असंतुलन घर के समग्र सद्भाव और कल्याण को बाधित कर सकता है। यदि खाना बनाते समय अग्नि तत्व की अधिकता हो जाती है तो उसका असर भोजन के पोषण में भी होने लगता है जिससे भोजन सुपाच्य नहीं होता है और इसका प्रभाव भोजन ग्रहण करने वालों के शरीर पर पड़ता है।
वास्तु शास्त्र किसी भी स्थान के भीतर प्राण के प्रवाह के महत्व पर जोर देता है। मान्यता है कि यदि आप दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके खाना बनाते हैं तो उस भोजन में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होने लगता है।
दक्षिण दिशा को घनी और तीव्र ऊर्जा वाला माना क्षेत्र जाता है जो खाना पकाने के लिए आदर्श शांत और पोषण वाले वातावरण के लिए अनुकूल नहीं होता है। इससे आपकी रसोई में तनावपूर्ण माहौल हो सकता है जो परिवार के लोगों की मानसिक और शारीरिक सेहत को प्रभावित कर सकता है। इससे सकारात्मक ऊर्जा का प्राकृतिक प्रवाह बाधित हो सकता है, जिससे रसोई घर पोषण और आराम के बजाय तनाव का क्षेत्र बन जाता है।
ऐसा माना जाता है कि आपका किचन हमेशा उस स्थान पर होना चाहिए जहां पूर्ण रूप से प्रकाश आता हो और सूर्य की रोशनी का प्रवेश भी होता हो, जिससे किचन के भीतर प्रकाश और वेंटिलेशन बना रहे, लेकिन दक्षिण दिशा एक ऐसा स्थान है जहां प्रकाश और वेंटिलेशन ठीक से नहीं आता है, इसी वजह से आपको हमेशा दक्षिण दिशा की तरफ भोजन बनाने से मना किया जाता है।
इसके साथ ही यदि आप पूर्व या उत्तर-पूर्व जैसी दिशाओं की तरफ मुख करके भोजन बनाती हैं तो आपको इसका पूरा लाभ मिल सकता है क्योंकि यहां उचित रोशनी के साथ वेंटिलेशन भी मिलता है। दक्षिण मुखी रसोई में पर्याप्त वेंटिलेशन और रोशनी की कमी हो सकती है, जो स्वच्छ और सुखद खाना पकाने के माहौल के लिए आवश्यक है।
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पूर्व दिशा को भोजन के लिए सबसे उपयुक्त दिशा माना जाता है। पूर्व दिशा उगते सूरज से जुड़ी है, जो नई शुरुआत और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक है। पूर्व दिशा की ओर मुख करके खाना पकाने से यह सुनिश्चित होता है कि खाना पकाने वाले को लाभकारी सौर ऊर्जा प्राप्त होती है, जो स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देती है। इसके अलावा उत्तर पूर्व दिशा को भी भोजन के लिए उपयुक्त माना जाता है। पूर्व और उत्तर दोनों की लाभकारी ऊर्जाओं का संयोजन, उत्तर-पूर्व दिशा घर के भीतर समृद्धि, स्वास्थ्य और सद्भाव को बढ़ाती है।
शास्त्रों और वास्तु दोनों के अनुसार भोजन हमेशा उचित दिशा में खड़े होकर ही बनाना चाहिए जिससे आपकी इसके पूरे लाभ मिल सकें।
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