जगन्नाथ मंदिर का प्रसाद जिसे 'प्रसादम' कहा जाता है, विश्व का सबसे प्रसिद्ध प्रसाद माना जाता है। जगन्नाथ मंदिर का महाप्रसाद सिर्फ एक भोजन नहीं, बल्कि भगवान जगन्नाथ का साक्षात् आशीर्वाद माना जाता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह प्रसाद जब बनता है तब स्वयं मां लक्ष्मी गुप्त रूप से रसोई में स्थित होकर इस प्रसाद को अपनी निगरानी में रखती हैं। मान्यता है कि चाहे कितने भी भक्त क्यों न आएं, यह प्रसाद कभी कम नहीं पड़ता और कभी बर्बाद भी नहीं होता। इस प्रसाद को पाने वाले व्यक्ति को रोगों-दोषों से छुटकारा मिल जाता है। ऐसे में जगन्नाथ रथ यात्रा जो कि 27 जून से शुरू हो रही है, उसके पवित्र अवसर पर ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं कि जगन्नाथ मंदिर के महाप्रसाद से जुड़े रहस्य।
जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ का भोग, जिसे 'महाप्रसाद' कहा जाता है, पुरी के जगन्नाथ मंदिर के भीतर ही एक बहुत विशाल रसोईघर में तैयार किया जाता है। यह रसोईघर दुनिया की सबसे बड़ी रसोई मानी जाती है और अपने आप में एक अजूबा है।
यहां 500 से ज़्यादा रसोइए और सैकड़ों सहायक मिलकर हर दिन लाखों भक्तों के लिए भोजन तैयार करते हैं। रथ यात्रा के दौरान इसका महत्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि इस समय देश-विदेश से भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
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सारा भोजन मिट्टी के बर्तनों में और लकड़ी की आग पर ही पकाया जाता है। आधुनिक गैस या बिजली का उपयोग नहीं होता। खाना पकाने का तरीका भी बहुत अनोखा है। सात मिट्टी के बर्तनों को एक के ऊपर एक रखकर खाना पकाया जाता है। हैरान करने वाली बात यह है कि सबसे ऊपर रखा बर्तन पहले पकता है और फिर धीरे-धीरे नीचे के बर्तन पकते जाते हैं। यह एक ऐसा रहस्य है जिसे आज तक वैज्ञानिक भी नहीं समझ पाए हैं। भगवान को प्रतिदिन 56 प्रकार के व्यंजन अर्पित किए जाते हैं।
यह माना जाता है कि चाहे कितने भी श्रद्धालु क्यों न आएं, महाप्रसाद कभी कम नहीं पड़ता और न ही बर्बाद होता है। यह आखिरी भक्त तक पहुंचता है। रथ यात्रा के दिन भगवान को विशेष रूप से मालपुआ का भोग लगाया जाता है, जिसे छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले से विशेष रूप से लाया जाता है। रथ यात्रा के दौरान जब भगवान अपनी मौसी के यहां गुंडीचा मंदिर जाते हैं तो मौसी मां मंदिर के पास भी कुछ भोग ग्रहण करते हैं खासकर 'पोड़ा पीठा' उनका बहुत प्रिय माना जाता है।
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यह महाप्रसाद केवल भोजन नहीं, बल्कि भक्तों के लिए एक पवित्र अनुभव है। इसे खाने से सभी पाप दूर होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। भोग बनने के बाद इसे मंदिर परिसर में स्थित 'आनंद बाजार' में भक्तों को वितरित किया जाता है जहां वे इसे ग्रहण कर सकते हैं।
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