Varuthini Ekadashi Vrat Katha: हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत महत्व माना जाता है। पंचांग के अनुसार, साल में कुल 24 एकादशी तिथियां पड़ती हैं। इन्हीं में से एक है वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की वरुथिनी एकादशी जिसे पुण्यों की प्राप्ति के लिए जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने और व्रत रखने से 1000 यज्ञों के बराबर पुण्यों की प्राप्ति होती है। ऐसे में सेलिब्रिटी एस्ट्रोलॉजर प्रदुमन सूरीसे आइये जानते हैं वरुथिनी एकादशी की व्रत कथा के बारे में।
वरुथिनी एकादशी व्रत कथा (Varuthini Ekadashi Vrat Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय था जब नर्मदा नदी के तट पर राजा मांधाता का राज्य हुआ करता था। राजा मांधाता न सिर्फ एक कुशल शासक थे बल्कि बहुत दानी और धर्मात्मा भी थे।
एक बार राजा ने जंगल की ओर प्रस्थान किया और तपस्या में लीन हो गए। तपस्या के दौरान तभी वहां अचानक एक भालू आ गया। उस भालू ने राजा का पैर चबाना शुरू कर दिया था।
अन्नदान और कन्यादान के जितना पुण्य देती वरूथिनी एकादशी
चार मई को वरूथिनी एकादशी है। वरूथिनी एकादशी पर विष्णु के पांचवे अवतार वामन की पूजा की जाती है। वैदिक कैलेंडर माह में बढ़ते (शुक्ल पक्ष) और घटते (कृष्ण पक्ष) चंद्र चक्र का ग्यारहवां चंद्र दिवस (तिथि) है। श्रीहरि ने वरदान दिया था कि एकादषी सभी तीर्थों की यात्रा करने से ज्यादा पुण्य देने वाली होगी। तब से एकादशी का व्रत रखने पर श्रीहरि अपने भक्तों की हर मनोकामनाएं पूरी करते हैं। वरुथिनी एकादशी पर इन सभी नियमों का पालन करने से व्यक्ति को समाज में समृद्धि और प्रसिद्धि मिलती है। कहा जाता है कि इस व्रत को करने से अन्नदान और कन्यादान के जितना पुण्य मिलता है।
इस दिन व्यक्ति को उपवास के दौरान एक समय भोजन करना चाहिए। वह भी इस एकादषी से एक दिन पहले (दसवें चंद्र दिवस - दशमी ) को यज्ञ (अग्नि बलिदान) में चढ़ाया गया हविष्यान्न भोजन (मसाले, नमक और तेल के बिना उबला हुआ भोजन) इस व्रत का पालन करने वाले लोगों को खाना चाहिए।
श्रीहरि के शरीर से जो कन्या निकली, वह कहलाई एकादशी
सतयुग में मुर नाम का दैत्य था। उसने अपने अत्याचारों से देव लोक को भी भयभीत कर दिया था और स्वागत के राजा इंद्र से उसका सिंहासन छीन लिया था।
सभी देवता इसके बाद महादेव के पास पहुंचे और उनसे मदद की प्रार्थना की। भगवान शिव ने देवताओं से मुर से मुक्ति पाने के लिए श्रीहरि के पास जाने को कहा। इस पर देवताओं ने श्रीहरि से मदद मांगी।
मुर का वध करने श्रीहरि चंद्रावतीपुरी नगर गए और वहां कई दैत्यों का वध किया। बाद में विश्राम करने वह बद्रिका आश्रम की 12 योजन लंबी गुफा में चले गए। इस बीच मुर ने श्रीहरि को मारने का जैसे ही विचार किया, वैसे ही श्रीहरि विष्णु के शरीर से एक कन्या निकली और उसने मुर दैत्य का वध कर दिया। श्रीहरि ने जागने पर एकादशी की सराहना की और कहा कि आज से एकादशी सभी तीर्थों की यात्रा करने से ज्यादा पुण्य देने वाली मानी जाएगी। मृत्युलोक में तब से एकादशी को व्रत रखने की परंपरा आरंभ हुई।
इस दिन व्रत करने पर उड़द की दाल, चना, शहद, सुपारी, पान और पालक नहीं खाना चाहिए। इसके साथ ही बेल धातु के बर्तन में भोजन करना तथा दूसरे के घर में भोजन करना भी वर्जित माना गया है।
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राजा तपस्या में इतने लीन थे कि उन्हें कुछ आभास ही नहीं हुआ। जब भालू ने देखा कि राजा हिलडुल नहीं रहा है तो वह राजा को घसीटते हुए जंगल के और भी भीतर ले गया।
जब भालू राजा को भोजन समझ कर खाने लगा तब वहां एक तेज उत्पन्न हुआ। उस तेज में से भगवान विष्णु वराह अवतार में प्रकट हुए और उन्होंने राजा के प्राणों की रक्षा की।
भगवान विष्णु के पुकारने पर राजा जागे। राजा ने जब भगवान विष्णु को अपने सामने देखा तब वह भाव विभोर होकर रोने लगे। यह घटना वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर हुई।
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इसी कारण से इस एकादशी का नाम वरुथिनी एकादशी पड़ गया। शास्त्रों में बताया गया है कि इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु के वराह अवतार की पूजा करने का विधान है।
ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु के अवराह अवतार की पूजा करने से भय का नाश होता है और पुण्यों की प्राप्ति होती है।
आप भी इस लेख में दी गई जानकारी के माध्यम से वरुथिनी एकादशी की व्रत कथा के बारे में अजान सकते हैं। अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो वो आप हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
image credit: herzindagi
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