हिंदू धर्म में, सूर्य देव को पंचदेवों में से एक माना गया है और उनका विशेष स्थान है। उन्हें प्रत्यक्ष देवता के रूप में पूजा जाता है, क्योंकि वे ही इस सृष्टि को प्रकाश, ऊर्जा और जीवन प्रदान करते हैं। सूर्य चालीसा भगवान सूर्य को समर्पित एक शक्तिशाली स्तुति है, जिसका पाठ करने से व्यक्ति को उत्तम परिणाम मिल सकते हैं। सूर्यदेव को आरोग्य का देवता माना जाता है। नियमित रूप से सूर्य चालीसा का पाठ करने से शारीरिक बीमारियों, विशेषकर आंखों और त्वचा संबंधी समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य कमजोर स्थिति में हो, तो उसे जीवन में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. सूर्य चालीसा का पाठ करने से सूर्य ग्रह के नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सकता है। अब ऐसे में आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से सूर्य चालीसा का पाठ करने के बारे में और उसके नियम के बारे में जानते हैं।
अगर आप सूर्य चालीसा का पाठ कर रहे हैं तो रविवार के दिन इसका पाठ करना सबसे उत्तम माना जाता है। इससे व्यक्ति की सभी परेशानियां दूर हो सकती है और मनोकामनाएं पूरी हो सकती है।
कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग।
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥
जय सविता जय जयति दिवाकर!। सहस्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर॥
भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!। सविता हंस! सुनूर विभाकर॥
विवस्वान! आदित्य! विकर्तन। मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥
अम्बरमणि! खग! रवि कहलाते। वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥
सहस्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि। मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि॥
अरुण सदृश सारथी मनोहर। हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥
मंडल की महिमा अति न्यारी। तेज रूप केरी बलिहारी॥
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते। देखि पुरन्दर लज्जित होते॥
मित्र मरीचि भानु अरुण भास्कर। सविता सूर्य अर्क खग कलिकर॥
पूषा रवि आदित्य नाम लै। हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै॥
द्वादस नाम प्रेम सों गावैं। मस्तक बारह बार नवावैं॥
चार पदारथ सो जन पावै। दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै॥
नमस्कार को चमत्कार यह। विधि हरिहर कौ कृपासार यह॥
सेवै भानु तुमहिं मन लाई। अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई॥
बारह नाम उच्चारन करते। सहस जनम के पातक टरते॥
उपाख्यान जो करते तवजन। रिपु सों जमलहते सोतेहि छन॥
अस जोजजन अपने न माहीं। भय जग बीज करहुं तेहि नाहीं॥
दरिद्र कुष्ट तेहिं कबहुं न व्यापै। जोजन याको मन मंह जापै॥
अंधकार जग का जो हरता। नव प्रकाश से आनन्द भरता॥
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही। कोटि बार मैं प्रनवौं ताही॥
मंद सदृश सुत जग में जाके। धर्मराज सम अद्भुत बाके॥
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा। किया करत सुरमुनि नर सेवा॥
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों। दूर हटतसो भवके भ्रम सों॥
परम धन्य सो नर तन धारी। है प्रसन्न जेहि परतम् हारी॥
अरुण माघ महसूर फाल्गुन। मध्य वेदांग नाम रवि गुन॥
भानु उदय वैशाख गिनावे। जेष्ठ इंद्र आषाढ़ रवि गावे॥
यम भादो आश्विन हिम रेता। कार्तिक होत दिवाकर नेता॥
अगहन भिन्न विष्णु है पू सही। पुरुष नाम रवि है मलमा सही॥
जय दिवाकर जय दिवाकर जय दिवाकर जय दिवाकर॥
भानु चालीसा प्रेम युत गावही। जे नर नित्य॥
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Image Credit- HerZindagi
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