हिंदू धर्म में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म उत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व को जन्माष्टमी कहा जाता है। जिस तरह से कृष्ण जन्माष्टमी का विशेष महत्व है उसी तरह से कृष्ण जन्म के छठे दिन लड्डू गोपाल की छठी मनाई जाती है। जिस तरह से बच्चे के जन्म के ठीक छठे दिन यह उत्सव धूम-धाम से मनाया जाता है उसी तरह कृष्ण के बाल स्वरुप लड्डू गोपाल की छठी को भी विधि-विधान के साथ मानाने की प्रथा सदियों पुरानी है। यही नहीं इस दिन कुछ विशेष चीजों का भोग लड्डू गोपाल को लगाया जाता है और और भोजन में भी वही चीजें बनाई जाती हैं। उन्हीं चीजों में से एक है कढ़ी। कृष्ण जी की छठी के दिन कढ़ी बनाने की परंपरा काफी समय से चली आ रही है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिन लड्डू गोपाल को कढ़ी का भोग लगाने से सदैव उनकी कृपा घर पर बनी रहती है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस दिन भोग के लिए कढ़ी क्यों बनाई जाती है? आखिर क्यों लड्डू गोपाल को कढ़ी चावल का भोग लगाया जाता है? आइए नई दिल्ली के पंडित अनिल चंद्र पराशर से जानें इस प्रथा के धार्मिक कारणों के बारे में विस्तार से।
भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव आनंद, भक्ति और कई पारंपरिक व्यंजनों के स्वाद से भरा उत्सव माना जाता है। यह पर्व सिर्फ कृष्ण जन्माष्टमी तक ही सीमित नहीं होता है बल्कि छठे दिन यानी छठी तक मनाया जाता है। इस साल कृष्ण जी की छठी 21 सितंबर, बृहस्पतिवार के दिन पड़ रही है। कृष्ण जी की छठी के दिन कढ़ी चावल बनाना और इसका भोग लड्डू गोपाल को लगाना न सिर्फ एक प्रथा है बल्कि ये पवित्रता का प्रतीक भी है। ऐसा माना जाता है कि कढ़ी दही और बेसन से बनती है, जिसे कम से कम मसालों के साथ बनाया जाता है, जबकि चावल भी एक मुख्य अनाज है जो कान्हा को अत्यंत प्रिय माना जाता है। कढ़ी और चावल दोनों मिलकर एक सात्विक भोजन का प्रतिनिधित्व करते हैं जो सादगी के मूल्यों के अनुरूप माने जाते हैं।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, कृष्ण जी की छठी वह दिन होता है जब भगवान कृष्ण के पालक माता-पिता यानी कि यशोदा और नंद बाबा, कृष्ण के जन्म और कल्याण का उत्सव मनाने के लिए अपने परिवार और समस्त गांव के लोगों के लिए एक साधारण भोज का आयोजन करते थे। इस दिन, वे अपनी सादगी भरी जीवनशैली के अनुरूप पौष्टिक और सादा भोजन तैयार करते थे और ग्रामीण जनों को परोसते थे। कढ़ी चावल, एक साधारण और पौष्टिक व्यंजन होने के कारण, कृष्ण जी के माता-पिता की विनम्रता और भक्ति का प्रतीक माना जाता था, इसी वजह से आज भी छठी के भोग के लिए आज भी कढ़ी चावल को ही चुना जाता है। यही नहीं इस दिन मंदिरों में भी कढ़ी चावल का वितरण भक्त जनों को किया जाता है।
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