Radha Krishna love story

राधा-कृष्ण के दिव्य प्रेम और ग्रहों का रहस्य, जन्माष्टमी पर पंडित जी से जानें

राधा कृष्ण के दिव्य प्रेम के बारे में हर कोई जानता है। लेकिन ग्रहों के रहस्यों की जानकारी भी जरूरी होती है। आइए पंडित जी से इस जन्माष्टमी राधा और कृष्ण भगवान से जुड़ी इस जानकारी के बारे में विस्तार से जानते हैं।
Editorial
Updated:- 2025-08-14, 18:53 IST

रात का समय है, मथुरा नगरी में हर घर दीपों से जगमगा रहा है, मंदिरों में झूलते झूले पर नंदलाल विराजमान हैं, और भजन गूंज रहा है। राधे-राधे, श्याम मिलादे सुनाई दे रही हैं। जन्माष्टमी केवल भगवान कृष्ण के अवतरण का दिन नहीं, बल्कि उस प्रेम की याद है, जो समय और संसार की सीमाओं से परे है। श्रीराधा और श्रीकृष्ण का प्रेम पर क्या आप जानते हैं, इस प्रेम की जड़ें सिर्फ भावनाओं में नहीं, बल्कि उनकी जन्म कुंडलियों में भी गहराई से जुड़ी हैं? एस्ट्रोलोजर सिद्धार्थ एस कुमार ने इसके बारे में विस्तार से जानकारी साझा की।

सूर्य का सिंह में मिलना का क्या अर्थ होता है?

दोनों की कुंडलियों में सूर्य सिंह राशि में जैसे दो अलग-अलग दीपक, पर एक ही लौ। सिंह का सूर्य केवल राजा नहीं बनाता, वह आपको आत्मविश्वास, स्पष्टता और दिव्यता देता है। शायद यही कारण है कि राधा और कृष्ण, दोनों अपने-अपने तरीके से नेतृत्व के प्रतीक बने—कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में गीता का उपदेश दिया, और राधा ने भक्ति को प्रेम का सबसे ऊंचा रूप बना दिया।

तुला में शुक्र में आने का क्या होता है?

Astrological kundali matching radha krishan

दोनों के शुक्र तुला में यह मानो प्रेम की तराजू में बराबर के दो पलड़े हों। तुला का शुक्र केवल आकर्षण नहीं, बल्कि संतुलन और बराबरी का संदेश देता है। इसलिए उनके रिश्ते में किसी तरह का कोई अधिकार नजर नहीं आया है। इसलिए वह दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे माने गए थे। यही कारण है कि आज भी राधा का नाम कृष्ण के बिना अधूरा लगता है, और कृष्ण का नाम राधा के बिना।

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चन्द्र का रहस्य क्या है?

कृष्ण का चन्द्र वृषभ में उच्च, स्थिर और मधुर भावनाओं का प्रतीक। राधा का चन्द्र वृश्चिक में गहरा, तीव्र और रहस्यमयी। वृषभ और वृश्चिक एक-दूसरे से सप्तम भाव में होते हैं यानी जीवनसाथी का भाव। यह दर्शाता है कि कृष्ण के शांत प्रेम को राधा की गहरी भावनाओं ने पूरा किया।

राहु-केतु का जन्म-जन्मांतर के बंधन का क्या अर्थ है?

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राधा रानी का राहु, भगवान कृष्ण के केतु पर है, और राधा रानी का केतु, भगवान कृष्ण के राहु पर। ज्योतिष में इसे राहु-केतु अक्ष का सुपरइम्पोजिशन कहते हैं, एक अत्यंत दुर्लभ और गहरा कर्मिक योग। इसका मतलब? यह केवल इस जन्म का रिश्ता नहीं। उनकी आत्माएं जन्म-जन्मांतर में एक-दूसरे के अधूरे सफर को पूरा करने के लिए मिलती रही हैं।

जब आप इस जन्माष्टमी को झूले पर बैठे नन्हें कान्हा को देखें, तो याद रखिए, उनका प्रेम सिर्फ राधा के साथ नहीं, बल्कि आपके अंदर की आत्मा के साथ भी है। जैसे उनके सूर्य, शुक्र, चन्द्र और राहु-केतु का मेल दिव्य था, वैसे ही आपका भी किसी आत्मा के साथ अदृश्य रिश्ता हो सकता है। इस जन्माष्टमी, सिर्फ कान्हा का जन्म न मनाएं, बल्कि उस दिव्यता को भी महसूस करें, जो प्रेम को अमर बना देती है।

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Image Credit- Freepik

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