अभी भाद्रपद का महीना चल रहा है। बता दें कि इस महीने कई त्यौहार आते हैं, जिनमें से एक है गणेश चतुर्थी। इस साल 27 अगस्त को गणेश जी का ये पावन त्योहार मनाया गया। इस दिन गणेश जी को घर लेकर आते हैं और फिर 3,5,7 या 11 दिन उन्हें अपने घर में रखकर विसर्जित करते हैं। ऐसे में भाद्रपद के महीने में गणेश जी की विशेष कृपा होती है। अगर आप इस महीने भगवान गणेश को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उन्हें नल और दमयंती की कहानी जरूर सुनाएं। जानते हैं, वृंदावन के आचार्य अनंतदास जी से इस कहानी के बारे में...
प्राचीन समय की बात है। एक प्रतापी राजा था, जिसका नाम नल था। उसकी पत्नी का नाम रूपवती था। वे दोनों प्रजा की खूब सेवा करते थे और बेहद सुख से रहते थे। उन्हें किसी भी प्रकार का दुख नहीं था।
पर किसी श्राप के कारण राजा नल पर विपत्तियों की बहार आ गई। उन पर इतनी विपत्तियां आईं कि जिनकी कोई गिनती नहीं की जा सकती थी। वे नहीं जानते थे कि उनकी समस्याओं का हल गणेश जी के पास है।
उनके हाथीखाने में अनेक मदमस्त हाथी थे, जिन्हें चोर चुरा ले गए। घोड़े भी चोर ले गए। डाकू ने उनके महल पर कब्जा कर लिया और उनका सबकुछ लूट कर ले गए। जो बचा हुआ था, वो भी सब खत्म हो गया। बाकी राजा जुआ में हार गए। जब विपत्तियां खत्म ही नहीं हो रही थीं, तब राजा रानी नगर को छोड़कर चले गए और वे एक जंगल में पहुंचे। वे दोनों एक तेली के यहां पहुंचे। तेली ने दोनों को रहने के लिए आश्रय दिया।
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तब तक तेली को नहीं पता था कि नर और दमयंती राजा-रानी हैं। उसने राजा को बैल से हल जोतने का काम सौंपा और दमयंती को सरसों को साफ करने के लिए दिया। राजा रानी ने ये कार्य कभी नहीं किए थे। ऐसे में वे बहुत जल्दी थक जाते थे और तेली के कड़वे बोल का शिकार हो जाते थे। राजा काम की तलाश के लिए कई जान पहचान वालों की जगह पर गए पर श्राप के कारण हर स्थान पर उन्हें अपमान मिला।
एक दिन जंगल में राजा रानी एक दूसरे से बिछड़ गए। दोनों अलग-अलग भटकने लगे। दमयंती जंगल में अकेली रह गई। वे पति वियोग की अग्नि से नहीं बच पाई। एक दिन रानी की भेंट ऋषि शरभंग से हुई। तब दमयंती ने उनसे अपनी विपत्तियों का हल पूछा तो उन्होंने बताया कि गणेश जी की पूजा करो उन्हें लड्डू का भोग लगाकर अपनी इच्छा बोलों। रानी ने ऐसा ही किया। गणेश जी की पूजा अर्चना करने से न केवल रानी को उसका पति मिल गया बल्कि पति को खोया हुआ राज्य भी मिल गया।
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