(ganesh chaturthi) कोई भी शुभ काम करने से पहले भगवान गणेश की पूजा करने का विधि-विधान है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है। इसलिए कोई भी मांगलिक कार्य शुरू होने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है, ताकि सभी काम बिना किसी बाधा के संपन्न हो सके। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव और श्रीहरि विष्णु ने भी अपना काम पूरा करने के लिए भगवान गणेश की पूजा की थी।
भगवान गणेश को मोदक बेहद प्रिय है और दूर्वा भी बेहद पसंद है, ऐसे में सवाल यह है कि सभी देवी-देवताओं की पूजा में तुलसी दल को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इसके बिना भोग अधूरी मानी जाती है, लेकिन भगवान गणेश के भोग में आखिर तुलसी दल का प्रयोग क्यों नहीं किया जाता है। तो आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं।
पढ़ें ये पौराणिक कथा (Mythological Significance)
पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि एक दिन भगवान गणेश गंगा किनारे तपस्या में लीन थे। उस समय कन्या तुलसी भी गंगा तट पर अपने विवाह हेतु तीर्थ करते-करते वहां पहुंच गई। इस दौरान तपस्या में लीन भगवान गणेश रत्नजड़ित सिंहासन पर बैठे थे। उनके शरीर में चंदम का लेप और रत्न से जड़े हुए हार थे। जो बेहद मनमोहक दिख रहे थे। तभी अचानक तुलसी की नजर उनपर पड़ी और वह भगवान गणेश के प्रति बेहद आकर्षित हो गई।
ऐसे में तुलसी जी ने भगवान गणेश को तपस्या से भंग कर दिया और उन्हें विवाह का प्रस्ताव दिया। तपस्या भंग होने पर भगवान गणेश बेहद क्रोधित हुए और उनके विवाह के प्रस्ताव को ठुकरा दिया। उसके बाद भगवान गणेश के ठुकराए प्रस्ताव से क्रोधित होकर तुलसी जी ने उन्हें श्राप दिया।
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उन्होंने कहा कि आपको दो विवाह होंगे। उसके बाद गजानन ने भी तुलसी को श्राप दिया कि उनका विवाह एक असुर से होगा। तभी इस श्राप को सुनते ही तुलसी (तुलसी उपाय) जी मांफी मांगने लगीं। उसके बाद बप्पा ने तुलसी जी से कहा कि तुम्हारा विवाह शंखचूर्ण नामक राक्षस से होगा और इसके बाद तुम पौधे का रूप धारण कर लोगी।
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उन्होंने यह भी कहा कि कलयुग में तुलसी मोक्ष और जीवन देने वाली साबित होगी, लेकिन मेरी पूजा में तुम्हारा प्रयोग नहीं होगा। इसलिए भगवान गणेश (भगवान गणेश मंत्र) की पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं होता है। हिंदू धर्म में तुलसी सबसे पवित्र मानी जाती हैं और इसका इस्तामल भी पूजा सामग्री में किया जाता है। वहीं भगवान विष्णु को तुलसी बेहद प्रिय हैं, उनकी पूजा बिना तुलसी के अधूरी मानी जाती हैं।
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