Krishna Chhathi Vrat Katha 2025: संतान की अच्छी सेहत और भविष्य के लिए कृष्ण छठी पर पढ़ें ये व्रत कथा

Krishna Chhathi Vrat ki Kahani 2025: ऐसा माना जाता है कि जिन महिलाओं को संतान सुख नहीं मिलता है या फिर जिनकी संतान बहुत बीमार रहती है या जिन्हें अपनी संतान के भविष्य की बहुत अधिक चिंता होती है, उन महिलओं को कृष्ण छठी के व्रत रखते हुए ये 2 कथाएं अवश्य पढ़नी चाहिए। 
krishna chhathi vrat katha

कृष्ण छठी का पर्व जन्माष्टमी के छह दिन बाद मनाया जाता है जो हिंदू धर्म में नवजात शिशु के जन्म के बाद छठी मनाने की परंपरा के समान है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण के बाल स्वरूप लड्डू गोपाल की पूजा-अर्चना की जाती है। यह पर्व भगवान के बाल रूप को पूजने और उनके जीवन से जुड़ी लीलाओं को याद करने का अवसर है।

इस दिन विशेष रूप से लड्डू गोपाल को कढ़ी-चावल का भोग लगाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि माता यशोदा ने भी लाल की छठी पर यही भोग बनाया था और तभी से ये परंपरा चली आ रही है। इस साल कृष्ण छठी 21 अगस्त को मनाई जाएगी। ऐसे में वृंदावन के ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स ने हमें कृष्ण छठी की व्रत कथा सुनाई।

कृष्ण छठी की पहली व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, जब श्री कृष्ण का जन्म हुआ, तब उनके मामा कंस को एक आकाशवाणी से पता चला कि उनका वध देवकी के आठवें पुत्र द्वारा किया जाएगा। कंस ने अपनी बहन देवकी और उनके पति वासुदेव को कारागार में डाल दिया और उनके सभी बच्चों को मार दिया।

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जब श्री कृष्ण का जन्म हुआ, तो वासुदेव उन्हें चुपके से गोकुल में नंद बाबा के घर छोड़ आए और वहां से यशोदा की नवजात पुत्री को मथुरा वापस ले गए। कंस ने उस कन्या को मारने की कोशिश की, लेकिन वह देवी का रूप लेकर आकाश में उड़ गई और तारणहार के गोकुल में होने की बात कही।

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यह सुनकर कंस बहुत क्रोधित हुआ और उसने पूतना नामक राक्षसी को गोकुल भेजा। पूतना ने एक सुंदर स्त्री का रूप धारण किया और नवजात शिशुओं को अपना विषैला दूध पिलाकर मारने लगी। जब वह माता यशोदा के पास पहुंची, तो उसने श्री कृष्ण को दूध पिलाने का प्रयास किया।

हालांकि श्री कृष्ण ने पूतना के प्राण ही हर लिए। कहा जाता है कि पूतना का वध कृष्ण के जन्म के पांचवें दिन हुआ था और अगले दिन उनकी छठी मनाई गई। इस दिन यशोदा माता ने बाल कृष्ण की सुरक्षा के लिए षष्ठी देवी की पूजा की थी और 21 दिनों का कठोर व्रत भी रखा था।

कृष्ण छठी की दूसरी व्रत कथा

कृष्ण छठी को लेकर एक और व्रत कथा भी बहुत प्रचलित है जिसके अनुसार, वृन्दावन में एक गोपी थी जो कान्हा से बहुत प्रेम करती थी और उसे ही अपना पुत्र मानती थी। कान्हा के प्रति उस गोपी के मन में इतना प्रेम था कि वह अपने बालक की ओर देखती भी नहीं थी और न ही उसे प्रेम करती।

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एक बार बालक की तबियत खराब होने से उसकी मृत्यु हो गई, लेकिन गोपी को इस बात से कोई फर्क ही नहीं पड़ा। वह तो बस कान्हा को खिलाने के लिए दौड़ी-दौड़ी नंद बाबा के घर पहुंच जाया करती थी। यह देख कान्हा बहुत दुखी हुआ और उसने गोपी को उसके अगले जन्म में दंड दिया।

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अपने नए जन्म में भी वह गोपी बहुत पूजा-पाठ करती थी, लेकिन विवाह के कई सालों बाद भी उसे संतान नहीं हुई। तब उसने 6 माह तक बिना खाए-पिए व्रत रखने का संकल्प लिया। बीच व्रत में ही कान्हा ने गोपी को दर्शाने दिए और उसे उसके पूर्व जन्म की गलती का एहसास कराया।

जब गोपी को आभास हुआ तो उसने कान्हा से क्षमा मांगते हुए संतान प्राप्ति की इच्छा जताई। कान्हा ने भी गोपी की इच्छा पूरी करते हुए न सिर्फ उसे संतान सुख का वरदान दिया बल्कि संतान के अच्छे स्वास्थ्य और उसके उज्ज्वल भविष्य का भी आशीर्वाद प्रदान किया।

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image credit: herzindagi

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FAQ

  • कृष्ण छठी के दिन क्या दान करें? 

    कृष्ण छठी के दिन गाय के लिए सेवा दान देना या फिर गाय को भोजन दान करना शुभ माना जाता है। 
  • कृष्ण छठी के दिन कौन से मंत्र का जाप करें?  

    कृष्ण छठी के दिन लड्डू गोपाल के मंत्र 'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं देवकीसुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः।' का जाप करें।