Jitiya Vrat  date shubh muhurat and significance ()

Jitiya Vrat 2024 Kab Hai: जीवित्पुत्रिका व्रत कब रखा जाएगा, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्व

जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत माताएं अपनी संतान की रक्षा और उनकी सुख-शांति के लिए रखते हैं। यह व्रत निर्जला रूप से रखा जाता है। आइए इस लेख में जितिया व्रत के बारे में विस्तार से जानते हैं। 
Editorial
Updated:- 2024-09-05, 14:51 IST

सनातन धर्म में सभी व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। वहीं जीवित्पुत्रिका व्रत संतान की दीर्घायु और स्वस्थ जीवन के लिए रखा जाता है।  ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से संतान को किसी भी प्रकार का रोग नहीं लगता और उनका जीवन स्वस्थ और सुखमय रहता है। यह व्रत माताएं अपने बच्चों की सुरक्षा और लंबी उम्र के लिए रखती हैं। यह व्रत खासकर माताओं की आस्था और भक्ति का प्रतीक है। पंचांग के अनुसार यह व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। अब ऐसे में इस साल जीवित्पुत्रिका व्रत कब रखा जाएगा, पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है और जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व क्या है। इसके बारे में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं। 

जीवित्पुत्रिका व्रत कब रखा जाएगा? 

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वैदिक पंचांग के अनुसार, जितिया व्रत आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाएगा। वहीं इस साल यह व्रत का आरंभ 24 सितंबर मंगलवार को दोपहर 23 बजकर 34 मिनट से होगा और इस व्रत का समापन 25 सितंबर बुधवार को दोपहर 12 बजकर 10 मिनट पर होगा। इसलिए उदयातिथि के आधार पर जितिया व्रत 25 सितंबर को रखा जाएगा। 

जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त कब है? 

जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत माताओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। वहीं इस दिन लाभ उन्नति मुहूर्त और अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त है। इस मुहूर्त में भगवान जीमूतवाहन की पूजा विधिवत रूप से किया जाता है। 

  • लाभ-उन्नति मुहूर्त - सुबह 06:11 बजे से 07:41 बजे तक है। 
  • अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त- सुबह 07:41 बजे से सुबह 09:12 बजे तक है। 

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जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व क्या है? 

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जीवित्पुत्रिका व्रत या जितिया व्रत रखने से सुख-समृद्धि और संपन्नता के लिए रखा जाता है। इस दिन माताएं निर्जला व्रत रखती हैं और संतान के सुखी जीवन के लिए कामना करती हैं। ऐसी मान्यता है कि जो मां इस दिन व्रत रखती हैं, उन्हें कभी संतान का वियोग नहीं सहना पड़ता है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से संतान को किसी भी प्रकार का रोग नहीं लगता और उनका जीवन स्वस्थ और सुखमय रहता है। यह व्रत माता के त्याग और संतान के प्रति प्रेम का प्रतीक है।

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Image Credit- HerZindagi

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