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Dahi Handi 2025: क्यों मनाया जाता है श्रीकृष्ण के बाल रूप की माखन लीलाओं का प्रतीक दही हांडी का पर्व, जानिए तिथि, इतिहास और महत्व

हिंदू धर्म में हर एक पर्व को बड़े ही श्रद्धा भाव से मनाया जाता है और सबका विशेष महत्व है। ऐसे ही जन्माष्टमी के पर्व के साथ दही हांडी का भी प्रचलन है। आइए जानें इस पर्व का महत्व, इतिहास और इससे जुड़ी अन्य बातें।
Editorial
Updated:- 2025-08-15, 09:19 IST

दही हांडी का पर्व हर साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन पूरे उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गुजरात और देश के अन्य हिस्सों में बेहद लोकप्रिय है। कुछ स्थानों पर इसे गोविंदा उत्सव के नाम से भी जाना जाता है। ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी बताते हैं कि इस दिन युवा एकत्र होकर पिरामिड बनाकर ऊंचाई पर लटकी हुई दही की हांडी फोड़ते हैं, जो भगवान श्रीकृष्ण की माखन चोरी और बाल लीलाओं का प्रतीक माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि श्री कृष्ण बाल अवस्था में इसी तरह से गोपियों की माखन और दही की हांडी तोड़ते थे और उससे माखन और दही चुराकर खाया करते थे। इस साल यह पर्व जन्माष्टमी के अगले दिन यानी कि 16 अगस्त 2025, शनिवार को मनाया जाएगा। इस दिन पूरे देश में गोविंदा आला रे की गूंज रहती है और भक्ति में डूबे श्रद्धालु इस उत्सव का पूरा मजा उठाते हैं, लेकिन आपके लिए इस बात की जानकारी लेना भी जरूरी है कि यह पर्व क्यों मनाया जाता है, इसका इतिहास क्या है और इस साल की सही तिथि क्या है?

दही हांडी 2025 की तिथि

  • इस वर्ष दही हांडी का पर्व 16 अगस्त, शनिवार को मनाया जाएगा।  
  • हिंदू कैलेंडर के अनुसार, भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का आरंभ-15 अगस्त रात्रि 11:49 बजे
  • अष्टमी तिथि का समापन- 16 अगस्त को रात 9:34 बजे
  • चूंकि अष्टमी तिथि 16 अगस्त को ही रात में समाप्त हो रही है, इसलिए इस साल दही हांडी का पर्व इसी दिन मनाने की सलाह दी जा रही है।
  • वहीं उदया तिथि के अनुसार जन्माष्टमी की तिथि: 16 अगस्त 2025, शनिवार ही है।

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dahi handi ka itihas

दही हांडी का इतिहास और पौराणिक कथा

दही हांडी का संबंध भगवान श्री कृष्ण के बाल्यकाल की लीलाओं से है। ऐसा माना जाता है कि वृंदावन में बचपन के दिनों में कृष्ण जी को माखन बेहद प्रिय था, लेकिन उनकी माता यशोदा और गोकुल की गोपियां माखन की सुरक्षा के लिए इसे ऊंचाई पर लटका देती थीं जिससे नटखट कान्हा उसे चुरा न पाएं।
लेकिन श्रीकृष्ण अपने दोस्तों के साथ एक के ऊपर एक चढ़कर पिरामिड का आकार बनाकर ऊंचाई पर लटकी हांडी तक पहुंचते और माखन चुराकर सबके साथ बांटकर उसका आनंद उठाते थे। यही परंपरा आगे चलकर दही हांडी उत्सव के रूप में बदल गई और आज भी पूरे देश में यह उत्सव मनाया जाता है।

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dahi handi kab hai

दही हांडी का धार्मिक महत्व

दही हांडी के पर्व को भक्ति और उत्साह का संगम माना जाता है।  यह केवल एक खेल नहीं है बल्कि भक्ति और आनंद का उत्सव भी माना जाता है। इस दिन एक पिरामिड बनाकर हांडी फोड़ना टीमवर्क और एकता का प्रतीक माना जाता है। यह उत्सव श्री कृष्ण की नटखट और प्रेममयी छवि को जीवंत करता है।
ऐसा माना जाता है कि इस उत्सव में शामिल होने से जीवन में उत्साह, साहस और सौभाग्य बढ़ता है। इस आयोजन में कई आकर्षक पुरस्कार वाली प्रतियोगियों का आयोजन  होता है। इससे लोगों के बीच प्रेम भाव बढ़ता है और उत्सव का मजा भी कई गुना बढ़ जाता है।

दही हांडी सिर्फ एक पर्व नहीं है बल्कि भक्ति और आनंद का अद्भुत संगम भी है। यह श्री कृष्ण की माखन चोरी की प्यारी यादों को ताजा करता है और समाज में एकता और सहयोग की भावना को बढ़ाता है।

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