गंगा दशहरा के दिन क्यों होती है 10 दिशाओं की पूजा?

गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान और दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है। साथ ही, ऐसी मान्यता है कि गंगा दशहरा के दिन दसों दिशाओं की पूजा करनी चाहिए, इससे व्यक्ति को कई लाभ मिलते हैं। 
rules of worshipping ten directions on ganga dussehra

गंगा दशहरा का त्योहार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन मां गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान और दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि गंगा दशहरा के दिन दसों दिशाओं की पूजा करनी चाहिए, इससे व्यक्ति को कई लाभ मिलते हैं। ऐसे में आइये जानते हैं ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से कि गंगा दशहरा के दिन कौन सी 10 दिशाओं की पूजा करनी चाहिए और क्या हैं उससे मिलने वाले लाभ।

गंगा दशहरा के दिन 10 दिशाओं की पूजा करने से क्या होता है?

ganga dussehra ke din 10 dishaon ki puja karne se kya hota hai

पूर्व दिशा (इंद्र देव): पूर्व दिशा के स्वामी इंद्र देव हैं और यह सूर्योदय की दिशा है, जो नई शुरुआत, ऊर्जा और जीवन शक्ति का प्रतीक है। इस दिशा की पूजा करने से व्यक्ति को मान-सम्मान, यश और अच्छी सेहत मिलती है। यह नेतृत्व क्षमता को बढ़ाती है।

आग्नेय दिशा (अग्नि देव): यह दक्षिण-पूर्व दिशा होती है और इसके स्वामी अग्नि देव हैं। अग्नि जीवन में ऊर्जा, पाचन और रूपांतरण का प्रतीक है। इस दिशा की पूजा करने से घर में धन-संपदा आती है, भोजन का स्वाद बढ़ता है और परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य में सुधार होता है खासकर महिलाओं के लिए शुभ होती है।

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दक्षिण दिशा (यमराज): दक्षिण दिशा के स्वामी यमराज हैं, जो न्याय और मृत्यु के देवता हैं। इस दिशा की पूजा करने से व्यक्ति को लंबी आयु मिलती है, शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और जीवन में स्थिरता आती है। यह दुर्घटनाओं से बचाव में भी सहायक होती है।

नैऋत्य दिशा (निरुति देव): यह दक्षिण-पश्चिम दिशा होती है और इसके स्वामी निरुति देव हैं। यह दिशा स्थिरता, पृथ्वी तत्व और संबंधों को नियंत्रित करती है। इस दिशा की पूजा करने से रिश्ते मजबूत होते हैं, बेवजह के विवादों से मुक्ति मिलती है और जीवन में स्थिरता आती है। यह भूमि संबंधी मामलों में भी लाभकारी होती है।

पश्चिम दिशा (वरुण देव): पश्चिम दिशा के स्वामी वरुण देव हैं, जो जल के देवता हैं। जल जीवन का आधार है और यह तरलता, भावनाएं और प्रवाह का प्रतीक है। इस दिशा की पूजा करने से धन का आगमन सुचारु रूप से होता है, भाग्य चमकता है और जीवन में सहजता आती है। यह व्यक्ति को यात्राओं से भी लाभ दिलाती है।

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वायव्य दिशा (वायु देव): यह उत्तर-पश्चिम दिशा होती है और इसके स्वामी वायु देव हैं। वायु गति, संचार और लचीलेपन का प्रतीक है। इस दिशा की पूजा करने से व्यक्ति को सामाजिक संबंध बनाने में मदद मिलती है, यात्राएं सफल होती हैं और जीवन में बदलावों को स्वीकार करने की शक्ति आती है। यह मानसिक शांति भी प्रदान करती है।

उत्तर दिशा (कुबेर देव): उत्तर दिशा के स्वामी कुबेर देव हैं, जो धन के देवता हैं। यह दिशा धन, समृद्धि और अवसरों को नियंत्रित करती है। इस दिशा की पूजा करने से आर्थिक स्थिति मजबूत होती है, व्यापार में वृद्धि होती है और नए आय के स्रोत खुलते हैं। यह करियर में सफलता दिलाने में भी सहायक है।

ईशान दिशा (ईशान देव/भगवान शिव): यह उत्तर-पूर्व दिशा होती है और इसके स्वामी ईशान देव जो भगवान शिव का एक रूप हैं। यह दिशा ज्ञान, विवेक, आध्यात्मिकता और शांति का प्रतीक है। इस दिशा की पूजा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, मानसिक शांति मिलती है, बच्चों की पढ़ाई में उन्नति होती है और आध्यात्मिक प्रगति होती है। इसे घर का सबसे पवित्र कोना माना जाता है।

ऊर्ध्व दिशा (ब्रह्मा जी/आकाश): ऊर्ध्व दिशा यानी ऊपर की ओर आकाश। इसके स्वामी ब्रह्मा जी माने जाते हैं। यह दिशा विस्तार, आध्यात्मिकता और उच्च चेतना से संबंधित है। इस दिशा की पूजा करने से व्यक्ति को उच्च ज्ञान प्राप्त होता है, आत्मिक उन्नति होती है और जीवन में सही मार्गदर्शन मिलता है। यह ब्रह्मांडीय ऊर्जा से जुड़ने में सहायक होती है।

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अधो दिशा यानी नीचे की ओर पृथ्वी। इसके स्वामी शेषनाग या पृथ्वी देवी मानी जाती हैं। यह दिशा स्थिरता, आधार और मौलिकता से संबंधित है। इस दिशा की पूजा करने से व्यक्ति को जीवन में स्थिरता मिलती है, जमीन-जायदाद से संबंधित मामलों में लाभ होता है और मजबूत नींव बनती है। यह व्यक्ति को जड़ों से जुड़े रहने में मदद करती है।

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image credit: herzindagi

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FAQ

  • गंगा दशहरा के दिन मां गंगा को कौन से फूल चढ़ाएं?

    गंगा दशहरा के दिन मां गंगा को सफेद रंग के फूल चढ़ाने चाहिए।