18 सितंबर 2025, गुरुवार के दिन अश्विन माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि है। यह तिथि पितृ पक्ष में आती है और इसका विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन उन सभी पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु द्वादशी तिथि को हुई हो। एमपी, छिंदवाड़ा के ज्योतिषाचार्य पंडित सौरभ त्रिपाठी ने ये भी बताया कि इस तिथि को संन्यासियों और साधु-संतों का श्राद्ध करने के लिए भी बहुत शुभ माना जाता है। पंचांग के अनुसार, इस दिन पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र, शुक्ल योग और कौलव करण रहेगा। गुरुवार होने के कारण यह दिन भगवान विष्णु की पूजा के लिए भी विशेष फलदायी है। इस तरह, यह तिथि श्राद्ध कर्म, धार्मिक अनुष्ठान और पितरों को प्रसन्न करने के लिए बहुत ही शुभ मानी जाती है।
तिथि | नक्षत्र | दिन/वार | योग | करण |
अश्विन कृष्ण द्वादशी | पूर्वा भाद्रपद | गुरुवार | शुक्ल | बालव |
प्रहर | समय |
सूर्योदय | सुबह 06:17 बजे |
सूर्यास्त | शाम 06:24 बजे |
चंद्रोदय | रात 03:00 बजे |
चंद्रास्त | शाम 04:59 बजे, अगले दिन |
मुहूर्त नाम | मुहूर्त समय |
ब्रह्म मुहूर्त | सुबह 04:33 बजे से 05:20 बजे तक |
अभिजीत मुहूर्त | दोपहर 11:58 बजे से 12:47 बजे तक |
अमृत काल | सुबह 04:09 बजे से 05:43 बजे तक |
गुरु पुष्य योग | सुबह 06:07 बजे से 06:32 बजे तक |
अमृत सिद्धि योग | सुबह 06:07 बजे से 06:45 बजे तक |
सर्वार्थ सिद्धि योग | सुबह 06:20 से 08:45 बजे तक |
मुहूर्त नाम | मुहूर्त समय |
राहु काल | दोपहर 01:43 बजे से 03:15 बजे तक |
गुलिक काल | सुबह 09:21 बजे से 10:53 बजे तक |
यमगंड | सुबह 06:17 बजे से 07:49 बजे तक |
18 सितंबर 2025 का दिन हिंदू धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह पितृ पक्ष का समय है। पितृ पक्ष वह 16 दिनों की अवधि है जब हम अपने उन पूर्वजों को याद करते हैं जो अब इस दुनिया में नहीं हैं। इन दिनों में उनका श्राद्ध और तर्पण करने का विधान है ताकि उनकी आत्मा को शांति और मोक्ष मिल सके। इस दिन का मुख्य महत्व श्राद्ध से ही जुड़ा है।
इस दिन का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार द्वादशी श्राद्ध है। यह श्राद्ध उन सभी पितरों के लिए किया जाता है जिनकी मृत्यु किसी भी महीने के कृष्ण पक्ष या शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को हुई हो। माना जाता है कि इस तिथि पर किया गया श्राद्ध सीधे उन पितरों तक पहुँचता है और उनकी आत्मा को तृप्ति मिलती है। इस श्राद्ध में विधि-विधान से पूजा करके पितरों को भोजन, जल और अन्य सामग्री अर्पित की जाती है।
इसके साथ ही, इस दिन को संन्यासी श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिन्होंने अपने जीवन में संन्यास ले लिया था या जो साधु-संत बन गए थे। अगर किसी को अपने संन्यासी पितरों की मृत्यु की तिथि पता न हो, तो उनका श्राद्ध भी द्वादशी के दिन करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इस तरह, यह दिन अपने सभी पितरों को सम्मान देने और उनका आशीर्वाद पाने का एक खास मौका देता है।
18 सितंबर 2025 का दिन पितृ पक्ष का होने की वजह से बहुत ही खास है। यह दिन पितरों को याद करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए सबसे शुभ माना जाता है। इस दिन कुछ खास उपाय करने से पितृ दोष दूर होता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। ये उपाय बहुत ही सरल हैं और आप इन्हें आसानी से कर सकते हैं।
इस दिन सुबह स्नान के बाद पितरों के लिए तर्पण जरूर करें। इसके लिए, एक तांबे के लोटे में पानी लें। इसमें थोड़े से काले तिल, गंगाजल और दूध की कुछ बूंदें मिलाएं। इसके बाद दक्षिण दिशा की ओर मुख करके अपने पितरों का ध्यान करें और धीरे-धीरे यह जल धरती पर गिराएं। आप इस दौरान 'ॐ पितृभ्यो नमः' मंत्र का जाप भी कर सकते हैं। यह उपाय पितरों की आत्मा को शांति देता है और उनका आशीर्वाद आपके पूरे परिवार को मिलता है।
अगर आपके जीवन में धन से जुड़ी परेशानियाँ हैं, तो इस दिन शाम को सूर्यास्त के बाद एक पीपल के पेड़ के पास जाएँ। वहाँ एक सरसों के तेल का दीपक जलाएं और पेड़ की परिक्रमा करें। ऐसा करने से पितर और शनिदेव दोनों प्रसन्न होते हैं। पीपल का पेड़ पितरों का वास माना जाता है और गुरुवार होने के कारण यह उपाय और भी अधिक फलदायी हो जाता है। यह उपाय आपके जीवन से पैसों की तंगी को दूर कर सकता है।
इस दिन किया गया दान बहुत पुण्य देता है। आप अपनी क्षमता के अनुसार किसी गरीब या जरूरतमंद व्यक्ति को भोजन करा सकते हैं। इसके अलावा, गाय, कौवे और कुत्ते को भोजन खिलाना भी बहुत शुभ माना जाता है। खासकर कौवों को भोजन खिलाना सीधे पितरों तक भोजन पहुंचाने जैसा माना जाता है। ऐसा करने से पितर बहुत प्रसन्न होते हैं और आपकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। यह सरल उपाय आपके जीवन में आ रही सभी बाधाओं को दूर कर सकता है।
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image credit: herzindagi
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