हिन्दू पंचांग के अनुसार, इस साल मार्गशीर्ष माह की अमावस्या तिथि 1 दिसंबर, दिन रविवार को पड़ रही है। मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन जहां एक ओर भगवान शिव के पूजन से लेकर हवन-अनुष्ठान करने का विधान है तो वहीं, इस दिन राहु और केतु को मजबूत करने के लिए उनके स्तोत्र का पाठ करना भी शुभ माना जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन राहु-केतु के स्तोत्र का पाठ करने से कुंडली में उनकी स्थिति शुभ बनती है। राहु-केतु का दुष्प्रभाव कम होता जाता है और इनके स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति के जीवन एवं घर में पसरी नकारात्मकता भी दूर हो जाती है। ऐसे में ज्योतिषाचार्य राधाकांत वत्स से आइये जानते हैं मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन जपे जाने वाले राहु-केतु स्तोत्र के बारे में।
राहुर्दानवमंत्री च सिंहिकाचित्तनन्दन:।
अर्धकाय: सदा क्रोधी चन्द्रादित्य विमर्दन: ।।1।।
रौद्रो रूद्रप्रियो दैत्य: स्वर्भानु र्भानुभीतिद:।
ग्रहराज सुधापायी राकातिथ्यभिलाषुक: ।।2।।
कालदृष्टि: कालरूप: श्री कण्ठह्रदयाश्रय:।
बिधुंतुद: सैंहिकेयो घोररूपो महाबल: ।।3।।
ग्रहपीड़ाकरो दंष्टो रक्तनेत्रो महोदर:।
पंचविंशति नामानि स्म्रत्वा राहुं सदानर: ।।4।।
य: पठेन्महती पीड़ा तस्य नश्यति केवलम्।
आरोग्यं पुत्रमतुलां श्रियं धान्यं पशूंस्तथा ।।5।।
ददाति राहुस्तस्मै य: पठेत स्तोत्र मुत्तमम्।
सततं पठेत यस्तु जीवेद्वर्षशतं नर: ।।6।।
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अस्य श्रीराहुकवचस्तोत्रमंत्रस्य चंद्रमा ऋषि: । अनुष्टुप छन्द: । रां बीजं । नम: शक्ति: ।
स्वाहा कीलकम् । राहुप्रीत्यर्थं जपे विनियोग: ॥ प्रणमामि सदा राहुं शूर्पाकारं किरीटिन् ॥
सैन्हिकेयं करालास्यं लोकानाम भयप्रदम् ॥ 1 ॥
निलांबर: शिर: पातु ललाटं लोकवन्दित: ।
चक्षुषी पातु मे राहु: श्रोत्रे त्वर्धशरीरवान् ॥ 2 ॥
नासिकां मे धूम्रवर्ण: शूलपाणिर्मुखं मम ।
जिव्हां मे सिंहिकासूनु: कंठं मे कठिनांघ्रीक: ॥ 3 ॥
भुजङ्गेशो भुजौ पातु निलमाल्याम्बर: करौ ।
पातु वक्ष:स्थलं मंत्री पातु कुक्षिं विधुंतुद: ॥ 4 ॥
कटिं मे विकट: पातु ऊरु मे सुरपूजित: ।
स्वर्भानुर्जानुनी पातु जंघे मे पातु जाड्यहा ॥ 5 ॥
गुल्फ़ौ ग्रहपति: पातु पादौ मे भीषणाकृति: ।
सर्वाणि अंगानि मे पातु निलश्चंदनभूषण: ॥ 6 ॥
राहोरिदं कवचमृद्धिदवस्तुदं यो । भक्ता पठत्यनुदिनं नियत: शुचि: सन् ।
प्राप्नोति कीर्तिमतुलां श्रियमृद्धिमायु रारोग्यमात्मविजयं च हि तत्प्रसादात् ॥ 7 ॥
॥ इति श्रीमहाभारते धृतराष्ट्रसंजयसंवादे द्रोणपर्वणि राहुकवचं संपूर्णं ॥
केतु: काल: कलयिता धूम्रकेतुर्विवर्णक:।
लोककेतुर्महाकेतु: सर्वकेतुर्भयप्रद: ।।1।।
रौद्रो रूद्रप्रियो रूद्र: क्रूरकर्मा सुगन्ध्रक्।
फलाशधूमसंकाशश्चित्रयज्ञोपवीतधृक् ।।2।।
तारागणविमर्दो च जैमिनेयो ग्रहाधिप:।
पंचविंशति नामानि केतुर्य: सततं पठेत् ।।3।।
तस्य नश्यंति बाधाश्चसर्वा: केतुप्रसादत:।
धनधान्यपशूनां च भवेद् व्रद्विर्नसंशय: ।।4।।
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अस्य श्रीकेतुकवचस्तोत्रमंत्रस्य त्र्यंबक ऋषिः।
अनुष्टप् छन्दः। केतुर्देवता। कं बीजं। नमः शक्तिः।
केतुरिति कीलकम् I केतुप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः॥
केतु करालवदनं चित्रवर्णं किरीटिनम्।
प्रणमामि सदा केतुं ध्वजाकारं ग्रहेश्वरम् ॥1॥
चित्रवर्णः शिरः पातु भालं धूम्रसमद्युतिः।
पातु नेत्रे पिंगलाक्षः श्रुती मे रक्तलोचनः ॥2॥
घ्राणं पातु सुवर्णाभश्चिबुकं सिंहिकासुतः।
पातु कंठं च मे केतुः स्कंधौ पातु ग्रहाधिपः ॥3॥
हस्तौ पातु श्रेष्ठः कुक्षिं पातु महाग्रहः।
सिंहासनः कटिं पातु मध्यं पातु महासुरः ॥4॥
ऊरुं पातु महाशीर्षो जानुनी मेSतिकोपनः।
पातु पादौ च मे क्रूरः सर्वाङ्गं नरपिंगलः ॥5॥
य इदं कवचं दिव्यं सर्वरोगविनाशनम्।
सर्वशत्रुविनाशं च धारणाद्विजयि भवेत् ॥6॥
॥ इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे केतुकवचं सम्पूर्णम् ॥
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