हिंदू धर्म में किसी भी अन्य तिथि की ही तरह प्रदोष व्रत का भी विशेष महत्व है। यह व्रत पूर्ण रूप से भगवान शिव को समर्पित है और इसमें शिव जी का पूजन विधि-विधान से किया जाता है। किसी भी महीने के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है। इस तरह हिंदू पंचांग के अनुसार प्रदोष व्रत हर महीने 2 बार होता है और साल में 24 प्रदोष व्रत होता है।
किसी भी प्रदोष व्रत में पूजन करने की विशेष विधि होती है और पूजा का विशेष फल मिलता है। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति इस व्रत का पालन श्रद्धा भाव से करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
प्रदोष व्रत कई तरह के होते हैं जैसे रविवार को होने वाले प्रदोष को रवि प्रदोष, सोमवार को पड़ने वाले व्रत को सोम प्रदोष, शनिवार को पड़ने वाले व्रत को शनि प्रदोष के नाम से जाना जाता है। यदि आप प्रदोष व्रत का पालन करती हैं तो आपके लिए इसका शुभ मुहूर्त और पूजा विधि जानना जरूरी है। आइए ज्योतिर्विद पंडित रमेश भोजराज द्विवेदी से जानें सितंबर महीने में कब रखे जाएंगे प्रदोष व्रत और इसकी पूजा की सही विधि क्या है?
सितंबर 2024 का पहला प्रदोष व्रत कब है?
हिंदू पंचांग के अनुसार सितंबर महीने का पहला प्रदोष व्रत 15 सितंबर, रविवार को रखा जाएगा। रविवार को पड़ने की वजह से इस दिन को रवि प्रदोष के नाम से जाना जाएगा। यदि आप इस दिन भगवान शिव की पूजा के साथ माता पार्वती का भी पूजन करते हैं तो आपको इसके विशेष लाभ होते हैं।
सितंबर 2024 पहले प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त क्या है?
- सितंबर महीने में भाद्रपद शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 15 सितंबर, रविवार को सायं 6 बजकर 12 मिनट पर हो रही है।
- त्रयोदशी तिथि का समापन- 16 सितंबर, सोमवार को दोपहर 3 बजकर 16 मिनट पर होगा।
- ऐसे में यदि हम उदया तिथि की मानें तो त्रयोदशी तिथि 16 सितंबर को है, लेकिन इस दिन प्रदोष काल नहीं है और 15 सितंबर को पूजा के लिए प्रदोष काल का शुभ मुहूर्त मिल रहा है।
- इसी वजह से सितंबर का पहला प्रदोष व्रत 15 सितंबर को रखना फलदायी होगी। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त शाम को 6 बजकर 25 मिनट से लेकर रात्रि 8 बजकर 45 मिनट तक रहेगा।
- यदि आप प्रदोष काल में विधि-विधान से पूजा करते हैं तो आपको व्रत का दोगुना फल मिल सकता है।
सितंबर पहले प्रदोष व्रत की पूजा विधि
- इस दिन व्रत करने वाले को प्रदोष व्रत के दिन प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान आदि से मुक्त होकर साफ़ वस्त्र धारण करने चाहिए।
- इसके बाद उन्हें व्रत का संकल्प लेना चाहिए और फलाहार का पालन करना चाहिए।
- प्रदोष व्रत के दिन कुछ लोग निर्जला व्रत का पालन भी करते हैं और कुछ लोग दिनभर फलाहार का सेवन करते हैं।
- इस व्रत के दिन मुख्य रूप से पूजन प्रदोष काल में किया जाता है ।
- यदि संभव हो, तो प्रदोष व्रत के दिन शाम को शिव मंदिर जाएं और भगवान शिव का अभिषेक करें।
- यदि आप मंदिर नहीं जा रहे हैं तो शिवलिंग का पूजन घर पर ही करें।
- प्रदोष काल सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और 45 मिनट बाद तक का समय माना जाता है। इस दौरान आप शिवलिंग का अभिषेक गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद और चीनी के पंचामृत से करें। फिर शुद्ध जल से शिवलिंग को स्नान कराएं।
- अभिषेक के बाद भगवान शिव को दूर्वा, बेलपत्र, सफेद फूल, धतूरा और भांग अर्पित करें।
- बेलपत्र अर्पित करते समय इस बात का ध्यान रखें कि उसकी पत्तियां कटी-फटी न हों।
- भगवान शिव को धूप-दीप अर्पित करें और शिव मंत्रों का जाप करें। भगवान शिव के अभिषेक और पूजन के बाद धूप-दीप जलाकर आरती करें।
- शिव मंत्र जैसे 'ॐ नमः शिवाय' का जप कम से कम 108 बार करें।
- इस दिन प्रदोष व्रत की कथा सुनना विशेष माना जाता है और इसके शुभ लाभ भी होते हैं। इससे व्रत करने वाले व्यक्ति को शिव जी की कृपा प्राप्त होती है।
- पूजा के समापन पर शिव जी की आरती जरूर करें और उनसे सुख समृद्धि की कामना करें।
- भोग में यदि आप शिव जी को प्रिय खीर अर्पित करें और स्वयं भी ग्रहण करें तो विशेष फलदायी होता है।
- अगले दिन प्रातः स्नान आदि से मुक्त होकर व्रत का पारण करें।
सितंबर 2024 का दूसरा प्रदोष व्रत कब है?
हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि यानी कि सितंबर महीने का दूसरा प्रदोष व्रत 29 सितंबर, रविवार के दिन है। यह प्रदोष व्रत भी रविवार के दिन रखा जाएगा, इसलिए इसे रवि प्रदोष व्रत कहा जाएगा।
सितंबर 2024 दूसरे प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त क्या है?
- आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि का आरंभ 29 सितंबर, शाम 04:47 बजे से
- त्रयोदशी तिथि का समापन- 30 सितंबर, सोमवार, शाम 07:06 बजे।
- उदया तिथि के अनुसार त्रयोदशी तिथि 30 सितंबर को है, लेकिन प्रदोष काल 29 सितंबर को मिल रहा है, इसलिए इसी दिन प्रदोष का व्रत रखा जाएगा।
सितंबर महीने में रखे जाने वाले प्रदोष व्रत का महत्व
सितंबर महीने में दोनों प्रदोष व्रत रविवार के दिन पड़ रहे हैं और ये दोनों रविप्रदोष के रूप में मनाए जाएंगे। रविवार का दिन होने की वजह से इन व्रतों का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है। इस व्रत को करने से संतान की सेहत अच्छी बनी रहती है, भगवान शिव की विशेष कृपा दृष्टि प्राप्त होती है।
अगर आपकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है तब भी यह व्रत करना फलदायी माना जाता है। व्रत करने वाले व्यक्ति के जीवन में सदैव खुशहाली बनी रहती है और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
व्रत के दौरान उपवास रखा जाता है और शिवजी की पूजा शाम के समय प्रदोष काल में की जाती है, जो सूर्यास्त के बाद का समय होता है। इस व्रत को करने से शिवजी का आशीर्वाद सदैव जीवन में बना रहता है और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। प्रदोष व्रत की पूजा विधि के विशेष नियम होते हैं और इसे करने से जीवन में शुभ फल मिलता है। इस व्रत को रखने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है और वह शिव जी की कृपा से दीर्घायु और स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद प्राप्त करता है।
यदि आप भी यहां बताई विधि से प्रदोष की पूजा करती हैं और शिव जी से समृद्धि का आशीर्वाद लेती हैं तो जीवन खुशहाल बना रहता है। आपको यह स्टोरी अच्छी लगी हो तो इसे फेसबुक पर शेयर और लाइक जरूर करें। इसी तरह और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए जुड़े रहें हरजिंदगी से। अपने विचार हमें कमेंट बॉक्स में जरूर भेजें।
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