Women Success Story:'लड़की हो, इतना पढ़कर क्या करोगी?'- ये वो वाक्य था, जिसे मैंने बचपन से न जाने कितनी बार सुना था। मोहल्ले की आंटियां, रिश्तेदार, यहां तक कि घर के कुछ बड़े भी ऐसा बोल देते थे। लेकिन मेरे लिए पढ़ाई सिर्फ नौकरी पाने का जरिया नहीं, बल्कि ये मेरी आजादी की चाबी थी। हर बार इस वाक्य को सुनकर जवाब मेरे पास तो नहीं होता था, पर मेरे इरादों में जरूर था।
समाज की दकियानूसी सोच हमेशा लड़कियों की उड़ान पर सवाल उठाती है, लेकिन जब एक लड़की हायर एजुकेशन लेकर खुद के पैरों पर खड़ी होती है, अपना खर्च उठाती है, अपने फैसले खुद लेती है.. तब वही समाज चुपचाप उसकी सफलता को देखता है।मेरे लिए हायर एजुकेशन सिर्फ एक डिग्री नहीं थी, वो मेरा आत्मविश्वास था, मेरी पहचान थी। यही वजह है कि आज जब मैं आर्थिक रूप से स्वतंत्र हूं, तो वही लोग जो कभी कहते थे कि 'इतना पढ़कर क्या फायदा?', अब मुझसे सलाह मांगते हैं।
मैं अलिशा पाठक, फिलहाल पीएचडी स्कॉलर हूं और मैं मास्टर्स में गोल्ड मेडलिस्ट होने के साथ-साथ जेआरएफ रैंक होल्डर भी हूं। इस आर्टिकल में मैं आपको बताऊंगी कि कैसे मैंने हायर एजुकेशन के साथ समाज की सोच को चुनौती देकर खुद को एक नई ऊंचाई और फाइनेंशियली इंडिपेंडेंट होने में सफल रही।
फर्स्ट अटेम्प्ट में हो गई थी फेल
मास्टर्स की पढ़ाई के बाद, जब मैं जेआरएफ की तैयारी कर रही थी, तब फर्स्ट अटेम्प्ट में मैं सिर्फ नेट ही क्वालिफाई कर पाई थी। हालांकि, मेरा सपना जेआरएफ क्लियर करना था। इस बार फेल होने के बाद, मैंने दोबारा से प्रिपरेशन करना शुरू कर दी। इस बीच दिमाग में कई सवाल और समाज की कही वो हर एक बातें चलती रहती थी। मेरा फ्रस्टेशन इतना बढ़ गया था कि में डिप्रेश रहने लगी थी। बस एक कमरे में बंद हमेशा सोचती थी कि अब क्या, आगे क्या होगा, क्या मैं जेआरएफ क्लियर कर पाऊंगी या फिर मुझे ऐसे ही पीएचडी में एडमिशन ले लेनी चाहिए.. ऐसे न जाने के कितने सवालों के बीच मैं पूरे एक साल तक परेशान रही।
समाज की दकियानूसी सोच का करना पड़ा सामना
मैं अपने सपने और खुद से एक लड़ाई लड़ रही थी। दोबारा से प्रिपरेशन करके जेआरएफ करने के पीछे पागलों की तरह लगी रहती थी। तब इस समाज के लोग तारीफ की बजाय यही कहते थे कि 'अब बस करो! शादी की तैयारी करो। लड़कियां ज्यादा पढ़ जाएं तो प्रॉब्लम होती है।' लेकिन मेरे माता-पिता ने मेरी पढ़ाई के लिए फुल सपोर्ट दिया। उन्होंने कहा,'तुम पढ़ो, खुद के पैरों पर खड़ी हो, ताकि किसी पर निर्भर न रहना पड़े।' कहीं न कहीं यह भी वो बात थी, जो मुझे हर बार मोटिवेट रखने का काम करती थी।
हायर एजुकेशन ने कुछ इस तरह बदल दी मेरी जिंदगी
पढ़ाई के दौरान फेल होने के बाद समाज के ताने सुनना और फिर से उसी जोश के साथ आगे बढ़ने में थोड़ी मुश्किलें तो आती हैं, पर मैंने समाज की हर बातों को अनसुना करके उसी जोश के साथ पढ़ने का मन बना लिया था। लगातार अपनी प्रिपरेशन में लगी रही और फिर वही हुआ, जो मैं चाहती थी। आखिरकार, मैंने जेआरएफ क्लियर कर ही लिया। मुझे वो रैंक मिली, जिसके लिए मैं बेसब्री से इंतजार कर रही थी। फिर, मैंने पीएचडी में एडमिशन लिया और मैं अब फाइनेंशियली इंडिपेंडेंट हूं। इसके बाद, मेरा आत्मविश्वास मजबूत हो गया और मैंने महसूस किया कि शिक्षा ही वो रास्ता है, जो मुझे अपने जीवन के फैसले खुद लेने की ताकत देगा। जब मुझे पहली सैलरी मिली, तो वो मेरे लिए सिर्फ पैसे नहीं थे। उन पैसों ने मुझे अपनी पहचान दी, अपनी आजादी मिली, मैंने अपने खर्च खुद उठाने शुरू किए, पेरेंट्स की मदद की और धीरे-धीरे सेविंग्स भी शुरू कर दी।
अब मैं एक मिसाल हूं, कोई सवाल नहीं
आज जब वही लोग पूछते हैं कि कहां तक पढ़ाई की? तो गर्व से बताती हूं कि मैंने हायर एजुकेशन से डिग्री हासिल नहीं की है, बल्कि अपनी जिंदगी खुद बनाने की क्षमता भी रखती हूं। अब वही लोग अपनी बेटियों को मेरे जैसे बनने की सलाह देते हैं। हालांकि, अब भी समाज में कई ऐसे लोग हैं, जो आज भी बेटियों को ज्यादा पढ़ाने से झिझकते हैं। हायर एजुकेशन तो बहुत दूर की बात है, उन्हें शायद 10वीं तक पढ़ने का भी मौका नहीं मिल पाता है।
महिलाओं के लिए मेरा संदेश
अगर आप भी पढ़ाई करना चाहती हैं, पर समाज की वजह से कहीं दब कर रह रही हैं, तो याद रखिए- पढ़ाई ही आपकी ताकत है। यह आपको समाज के हर पुराने विचार से लड़ने की हिम्मत देती है। चाहे मुश्किलें कितनी भी हों, हार नहीं माननी चाहिए। इस समाज में लड़कियों को हायर एजुकेशन तक पहुंचना और फाइनेंशियली इंडिपेंडेंट होना ही बड़ी बात होती है। मुझे इस बात पर गर्व है कि मैंने यह कर दिखाया है। यकीन मानिए अगर आप भी समाज के निगेटिव कमेंट्स को अनसुना करके आगे पढ़ेंगी, तो एक दिन आपकी कहानी भी किसी और लड़की के लिए प्रेरणा बनेगी।
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Image credit- Alisha Pathak
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