शायद...दो साल पुरानी बात है, मैं डिप्रेशन में जा रही थी या यूं कहें कि चली ही गई थी। अजीब-सी कैफियत हो गई थी मुझे.... ना कुछ करती, ना कुछ लिखती, ना किसी से बात करती। हालांकि, मेरी ज़िंदगी में कोई ज़ाती मसला नहीं था पर फिर भी।
ज्यादातर लोगों को ये भ्रम है कि जिनकी ज़िंदगी में कोई मसला नहीं होता वो डिप्रेशन में नहीं जाते। पर हस्सास होना अपने आप में एक बड़ा मसला बन है। कभी-कभी आसपास का माहौल हमें इतना इफेक्ट करता है कि हम उदासी में धंसते जाते हैं। मैं भी धंसती जा रही थी। लिखना बंद कर दिया था बिल्कुल जो कि मेरे सुकून की बड़ी वजह रही है।
पर इस दौरान मैंने गर कुछ सीखा तो वो था इमोशनली स्ट्रॉन्ग..। अगर आप इमोशनली स्ट्रॉन्ग रहेंगे, तो न सिर्फ खुदको समझ पाएंगे बल्कि खुश भी रहेंगे। पता है कि इंसान की सिफ़त ये है कि वो आने वाले कल और गुज़रे हुए कल में उलझा रहता है। ये कल हमें आज नहीं जीने देता।
हम सब मैनेज नहीं कर सकते हैं, हम सब कुछ ठीक भी नहीं कर सकते..... हम सबको खुश भी नहीं कर सकते.. हम ये बात जितनी जल्दी समझ कर एक्सेप्ट कर लें.... ज़िंदगी हमारे लिए काफ़ी हद तक आसान हो जाएगी। ज़िंदगी को उसकी रौ में बहने दें। कभी-कभी वक्त और कुदरत बहुत कुछ तय कर देते हैं और हमें वहां पहुंचा देते हैं जो हमारे लिए बेहतर होगा।
ऐसे में सामने वाला व्यक्ति चाहे खुश हो या ना हो, लेकिन उसे pleased करने के चक्कर हमारी खुद की खुशी कहीं गायब हो जाती है। इसलिए बेहतर होगा कि आप अपनी सीमाओं को स्मार्ट तरीके से सेट करें ताकि उनका प्रभाव आपके जीवन पर कम से कम हों और उन्हें भी आपके व्यवहार से किसी प्रकार का दुख ना हो।
इमोशनल अटैचमेंट कई बार खुद के लिए स्टैंड लेना मुश्किल कर देता है। लोगों के प्रति सेंसिटिव होना अच्छा है, पर जब लोग अपनी सीमा पार करके आपकी जिन्दगी में जरूरत से ज्यादा दखलअंदाजी करने लगेंगे, तो उन्हें ना कहना सीखना भी बेहद जरूरी है।
जब आप नहीं कहना सीख जाती हैं, तो आप अपना काम आसान कर देती हैं। हालांकि, यह थोड़ा मुश्किल है पर यकीन मानिए शुरुआत में आपको थोड़ी दिक्कत होगी, पर बाद में राहें आसान हो जाएंगी।
जब हम जरूरत से ज्यादा खुल जाते हैं, तो सामने वाला हमारी कमियां और खूबियों को अच्छी तरह से जानने लगता है। आगे चलकर यह हमारी परेशानी का सबब बन जाता है। इसलिए दूसरों के लिए सीमा तय करने के लिए पहले खुद पर नियंत्रण रखना सीखें।
जहां पर जितना जरूरी हो, उतना ही बोलें। इससे पहले कि आप दूसरों के लिए एक खुली किताब बनें, पहले आप उन्हें अपने जीवन में वह स्थान अर्जित करने दें। सिर्फ दोस्ती होने पर ही पूरी तरह दिल खोलकर रख देना सही नहीं है।
इमोशनल इंसान जरूरत से ज्यादा सोचता है और हमेशा परेशान रहता है। हम यही सोचते रहते हैं कि सामने वाले को बुरा न लग जाए...या हम ऐसा कुछ ना कह दें जो हमारे रिश्ते खराब करें।
अगर आप किसी बात को लेकर परेशान हैं, दिन रात उसी के बारे में सोच रही हैं, तो बेहतर है कि ना सोचें और किसी दूसरी चीज पर ध्यान लगाएं। वर्ना ओवरथिंकिंग हमारे फैसले और हमें कमजोर कर सकती है।
कुछ चीज़ें हमारे हाथ में नहीं होती है, जैसे ज़िंदगी किस करवट बैठेगी, ज़िंदगी की रवानगी क्या होगी हम नहीं जानते हैं। हां हम इतना कर सकते हैं कि उसे एक दिशा देने की कोशिश करें, अब वो कोशिश कामयाब होगी या नहीं ये हम तय नहीं कर सकते हैं। हम उम्मीद करें बेहतर की लेकिन बदतर या खराब होने के लिए तैयार भी रहें।
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