मां महज एक शब्द नहीं, बल्कि उनमें हमारी पूरी दुनिया बसती है। मां के लिए उनके बच्चे और बच्चों के लिए मां ही सबकुछ होती हैं, पर क्या जब मां पर ही अचानक कोई बड़ी मुसिबत आ जाए? बेटियों के लिए यह काफी मुश्किल समय होता है कि उनकी मां इस मोड़ पर आ जाएं, जहां उनके जीने की उम्मीद कम होती दिखाई देने लगे। कोई भी बेटी अपनी मां से कभी जुदा नहीं होना चाहती हैं। कुछ ऐसी ही हालत मेरी भी थी। मैं बिहार की निवासी अपराजिता प्रकाश हूं। आज मैं आपके साथ अपनी और अपनी मां की कहानी साझा कर रही हूं।
दरअसल, वह समय साल 2019 का था, जो मेरे लिए काफी डरावना था, जब मेरी मां को डॉक्टर ने ब्रेस्ट कैंसर का फोर्थ स्टेज बता दिया था। 6 नवंबर के उस खौफनाक दिन को मेरे परिवार वाले भी कभी नहीं भूल सकते हैं। डॉक्टर की स्टेटमेंट सुनते ही बहुत ही अजीब स्थिति थी ऐसा लगा जैसे पैरों तले जमीन खिसक गया हो। हम समझ ही नहीं पा रहे थे कि आगे अब क्या किया जाए, न तो इलाज के लिए उतने पैसे थे और न ही कोई साथ देने वाला, लेकिन मैं हार नहीं मानी मां को हमेशा हौसला देते रही और काफी मुसिबतों के बाद उन्हें सर्वाइवर से कैंसर वॉरियर बनने में मदद की।
जब डॉक्टर ने पहली बार कहा- मां को कैंसर है
मैं अपने पापा के साथ मां की ब्रेस्ट में सिस्ट का इलाज कराने निकली थी, पर वहां डॉक्टर ने कुछ बड़ा झटका दिया और जांच कराने को कहा। तभी से मां, पापा और भाई तीनों के मन में निगेटिविटी आने लगी, लेकिन मैं खुद को यकीन दिलाती रही कि नहीं ऐसा कुछ नहीं होगा। वहीं, जांच कराने के बाद डॉक्टर ने कहा- आपकी मां को ब्रेस्ट कैंसर है और वो भी चौथे स्टेज पर। इस स्टेटमेंट को सुनते ही अभी तक स्ट्रांग बनकर खड़ी मैं अंदर से कांप गई। घर वालों के सामने एक अजीब सी स्थिति थी। हम कुछ सोच नहीं पा रहे थे। समझ नहीं आ रहा था कि अब इलाज कैसे और कहां करवाया जाए। इलाज करा भी लें, तो क्या होगा, क्या मेरी मां पूरी तरह से ठीक हो पाएगी? ऐसे न जाने कितने सवाल दिमाग में चलने लगें। उस रात को हम में से कोई नहीं सोया था। सब बहुत परेशान थे।
घर वालों ने खो दिया था विश्वास, पर मैं नहीं मानी हार
कई जांच के बाद ये पता चला की ये बहुत तेजी से फेलने वाला ब्रेस्ट कैंसर है। इलाज बहुत मुश्किल था, क्योंकि मेरी मां मानसिक रूप से तैयार ही नहीं थी और न होना चाहती थी। मेरा भाई पूरी तरह से टूट गया था। यहां तक कि मां को खोने के डर से पापा भी इलाज करवाने के लिए तैयार नहीं थे। सबने सारे फैसले को मेरे ऊपर छोड़ दिया। सब ये मान चुके थे कि अब कुछ नहीं हो सकता है। ऐसी स्थिति में, मैं परेशान तो थी ही लेकिन मैंने खुद को मेंटली स्ट्रांग बनाया। अपने दिल को यह कह कर समझाना शुरू कर दिया कि मां ठीक होगी और सब ठीक हो जाएगा। हालांकि, इन सब के पीछे मेरे कुछ चुनिंदे दोस्त भी थे, जिन्होंने मेरा मनोबल बढ़ाया और यकीन दिलाया कि मेरी मां अभी ठीक हो सकती है। उनको जरूरत है तो सिर्फ अच्छे इलाज की।
बिहार से दिल्ली जाने का लिया फैसला
रिपोर्ट के बारे में जानने के बाद मां से मिलने कई रिश्तेदार भी घर पर आते और ये बोल जाते थे कि अब कुछ नहीं हो सकता है। ऐसे में हर दिन मेरे मां-पापा का मनोबल टूटने लगा। हर रोज मां-पापा को साइंस, बायोलॉजी, ऑन्कोलॉजी और कीमोथेरेपी का ज्ञान देती रहती थी, ताकि उनके अंदर के डर को निकाल कर फेंक सकूं। घर का आधार जो मां होती है, उसको खोने का डर और उनके बिना रहने का खौफ क्या होता है, ये उस वक्त काफी करीब से समझ आ गया था। तभी मैंने बिना पैसों की चिंता किए और दुखी भाई व हारे हुए पापा से भी लड़कर मां की इलाज के लिए दिल्ली जाने का फैसला किया। दिल्ली में इलाज के दौरान रात भर जाग कर मां की देखभाल करते देख डॉक्टर ने मुझसे कहा कि इस बीमारी का इलाज भी 9 महीने का है। जिस तरह आपकी मां 9 महीने आपको रखी हैं। उसी तरह अब आपको भी इनकी मां बनना है। 21 साल की उम्र में 42 साल की मां को मैंने संभाला। हर दिन खुद से भी एक लड़ाई लड़ती थी कि अब आगे क्या होगा।
फाइनेंशियल क्राइसिस का ऐसे किया समाधान
स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के बीच फाइनेंशियल प्रोब्लम भी आ गई। समझ नहीं आ रहा था कि अब आगे के इलाज के लिए पैसे कहां से आएंगे। रिश्तेदारों ने भी हाथ खड़े कर लिए थे। कोई फिक्स जॉब या सैलरी होल्डर भी नहीं थे कि हम लोन ले सकें। फिर, मैंने, पापा से कहा जो जमीन और घर मेरी शादी के लिए संजोए रखे हैं, उसे बेच दीजिए। उसी से मां का इलाज कराएंगे। हालांकि, उस घर से मेरा बहुत लगाव था, पर हालात ऐसे थे कि हमारे पास कोई विकल्प नहीं था। मेरे लिए उस वक्त मां से बड़ी कोई और चीज नहीं थी। उसे बेचकर उनका इलाज होता गया।
इलाज के बीच कोरोना ने भी दे दी दस्तक
मैं इलाज के लिए बीहार से दिल्ली आई थी। फिर कुछ दिन के अंतर पर हमें बीच-बीच में घर भी जाना होता था। इसी बीच साल 2020 में कोरोना महामारी ने भी देशभर में पैर पसार लिए थे। उसी समय कोरोना का हाई अलर्ट जारी हो गया। कुछ दिनों तक हम कुछ नहीं कर पा रहे थे। फिर जैसे ही आने-जाने की सुविधाएं शुरू हुईं। हम मां को लेकर दिल्ली गए, जहां डॉक्टर ने ये विश्वास दिलाया कि ऑपरेशन से कुछ नहीं होगा और वो जल्दी रिकवर भी कर जाएंगी। फिर इलाज शुरू हुआ और कमाल की बात तो ये है कि उनकी ऑपरेशन की तारीख मिली भी तो 23 जून की, जिस दिन मेरा जन्मदिन है। ऑपरेशन शुरू हुआ और हम सभी बहुत डरे हुए थे, लेकिन 8 घंटे की सर्जरी के बाद उनका ऑपरेशन सफल रहा, जिसमें उनकी बॉडी से ब्रेस्ट को हटा दिया गया था।
मेरे जन्मदिन का सबसे बड़ा तोहफा था वो दिन
सर्जरी के 4 घंटे बाद, मैं रोते हुए अपनी मां से मिलने आईसीयू में पहुंची, पर उस दिन वो बहुत खुश थी क्योंकि उनका ऑपरेशन सक्सेसफुल रहा था। मैं, उनकी इलाज के लिए सबसे यहां तक कि अपने पापा से भी लड़ी थी क्योंकि मेरा ये प्रण था कि ऑपरेशन या इलाज तो होकर ही रहेगा। वह पल था जब मेरा भाई और पापा मुझे गले से लगाकर सचमुच रो रहे थे। पापा ने मुझसे कहा कि तुम इस बच्चे की मां हो और इनका ठीक होना बस तुम्हारा ही देन है। पापा का ये कॉम्प्लीमेंट मुझे हमेशा याद रहता है। जब भी ये दिन याद करती हूं, तो आंखों में खुशी के आंशू के साथ गर्व भी महसूस होता है कि मेरी जिद के कारण आज मेरी मां ठीक है। मैं इलाज के लिए शुरू से ही अड़ी रहीऔर हुआ भी वही मां बिल्कुल ठीक है। आखिरकार, मैं अपनी मां के साथ अपने घर 31 दिसंबर 2020 को दिल्ली से बीहार लौट गई। फिर, 1 जनवरी 2021 को हमने उनका जन्मदिन अच्छे से सेलिब्रेट किया।
बीमारी से छुटकारा पाने के लिए मेंटली स्टेबल और स्ट्रांग रहना है जरूरी
मेरी मां कैंसर से लड़कर जीत हासिल कर चुकी है। मेरे ख्याल से उन्हें कैंसर सर्वाइवर कहाना उपयुक्त शब्द नहीं है, वो तो एक योद्धा हैं, जिन्होंने इतनी बड़ी जंग जीत ली। आप सबसे भी यही कहना चाहूंगी कि बीमारी चाहे कितनी भी बड़ी और भयावह हो आपको और आपके परिवार को अपने आप पर विश्वास और मेंटली स्ट्रांग होना बेहद जरूरी है, तभी आप किसी भी लड़ाई में जीत हासिल कर सकते हैं। इसी भरोसे के साथ मैं भी अपनी मां को कैंसर जैसी बीमारी को हराने में मदद की और आखिरकार हम जीत भी गए।
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Image credit- Aparajeeta Prakash
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