ढोलक की तेज आवाज ससुराल के आंगन में गूंज रही थी, कोई नाच रहा था तो कोई गीत गा रहा था। वहीं आंगन की बीचोंबीच लंबे से घूंघट की आड़ में मैं बैठी इस माहौल का अंदर ही अंदर मजा ले रही थी।
दरअसल, शादी के बाद मुंहदिखाई की रस्म चल रही थी। महिलाएं आ रही थीं और मुझे गिफ्ट देकर मेरा चेहरा देख रही थीं। कोई मुझे चांद का टुकड़ा बोल रहा था, तो कोई मेरे गोरे रंग पर फिदा हो सासू मां को बोल रहा था 'बहू तो चुन कर लाई हो भाभी'।
तब ही एक अंटी आईं और उन्होंने मेरा चेहरा देख कर बोला 'अरे बहू की तो नाक ही नहीं छिदी है। मुझे पहले पता होता तो मैं नितिन बाबू से इसकी शादी नहीं होने देती।'
इतना सुनते ही मेरे तो तन बदन में आग लग गई। भला नाक न छिदवाने पर एक दूर दराज की रिश्तेदार मेरी शादी तुड़वाने की बात जो कर रही थी।
मुझसे रहा नहीं गया और मैं तपाक से बोल पड़ी, 'आंटी एक बार नितिन से भी तो पूछ लीजिए कि क्या वो मुझसे शादी किए बिना रह पाते।' मेरी बात ने आंटी के अहंकार को अंदर तक हिलाकर रख दिया। भला कल की आई बहू की मुंह से हाजिर जवाबी उन्हें कैसे बरदाश्त होती।
तुरंत बोल पड़ी 'बहुत तो बहुत मॉडर्न है, कब क्या बोलना है अभी इसका ज्ञान नहीं है।' आंटी के हाव-भाव तो मुझे पहले ही पसंद नहीं आए थे, तो उनका मुंह बंद कराने के लिए मैंने भी बिना किसी देरी के बोला 'मॉडर्न हूं मैनरलेस नहीं'।
जाहिर है, आंगन में बैठे एक भी शख्स को मेरे अल्फाज हजम नहीं हुए। यहां तक की मेरी सासू मां को भी एक बार के लिए लगा किस बहू हम तेज ले आए हैं। मगर शादी के महीने भर के अंदर ही मुझे इस बात का अंदाजा तो लग ही गया कि मेरी सास से ज्यादा मेरी लुक्स और बॉडी लैंग्वेज की चिंता घर की बाई से लेकर मोहल्ले की आंटी और दूर दराज की मौसी-बुआ को है।
ससुरल में कदम रखते ही मेरे ऊपर मैनरलेस होने का लेबल तो लगा ही दिया गया था, तो मैंने भी इसे पॉजिटिव लेते हुए लाइफ में आगे बढ़ना और इसी तरह से मेरी मॉडर्न लाइफ स्टाइल में दखल देने वालों को सटीक जवाब देना सही समझा।
इस किस्से के बाद तो मेरे स्लीवलेस ब्लाउज से लेकर बेडरूम में नाइटी पहनने तक पर कई चर्चे हुए, कई बार तो यह तक बोला गया 'बड़ों का तो लिहाज किया करो' मगर मेरे यह बात कभी समझ ही नहीं आई कि मेरे मनमाफिक कपड़े पहनने, खाना खाने और घूमने फिरने से बड़ों की इज्जत कैसे घट जाती है।
मेरे लगभग सभी शौक शादी के बाद बहू के लिहाज से बेतुके, बेढ़ंगे और बत्तमीजी वाले थे। मगर मैंने भी अपने सही साबित करने का कोई मौका कोई दलील नहीं छोड़ी। हां, इस बात का ध्यान हमेशा रखा कि तमीज के दायरे में रह कर ही मैं अपनी बात सामने वाले को समझा सकूं।
आज मेरी ससुराल वालों को यह समझ आ चुका है कि मैं मॉडर्न हूं मैनरलेस नहीं। अब तो मेरी सास भी मुझे मॉडर्न होने के नाम पर ताना मारने वालों को जवाब दे देती हैं और कह देती हैं 'मुझे मेरी बहू ऐसी ही पसंद है।'
मैं बस यही कहूंगी कि किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को समझने के लिए उसके पहनावे या रहन-सहन की जगह आपको उसके व्यवहार को समझना चाहिए।
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