अपने बच्चे के साथ कुछ इस तरह किया मैंने पहली बार सफर

लखनऊ से बेंगलुरु तक का मेरा सफर मुझे हमेशा याद रहेगा। इसलिए नहीं कि यह बहुत अच्छा था बल्कि यह मेरा पहला ऐसा सफर था जो मैंने अपने बेबी के साथ तय किया था। 

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मैं कृति यादव काफी समय से कहीं घूमने का प्लान कर रही थी लेकिन बेबी होने के बाद मुझे अपना ज्यादातर समय उसकी देखभाल में लगाना होता था और मेरे पति भी यह चाहते थे कि बच्चे की डिलीवरी के बाद मैं अपना और बेबी का ध्यान सही से रखूं। मैंने और मेरे पति ने मिलकर अपनी बेटी का नाम वियाना रखा। कुछ माह बाद मेरे पति को काम की वजह से बेंगलुरु जाना पड़ा। जब दो सप्ताह बीत गए तो उन्होंने मुझे बेंगलुरु आने को कहा। पहले तो मैंने यह सोचा कि बच्चे के साथ अकेले मैं कैसे ट्रेवल करूंगी और ऐसा पहली बार होगा जब मैं फ्लाइट से अपने बच्चे के साथ लखनऊ से किसी दूसरे शहर जाऊंगी।

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मैंने इस बारे में अपने माता-पिता से बात की तो पहले उन्होंने कहा कि वह भी साथ में चलेंगे लेकिन फिर मैंने उन्हें यह समझाया कि उन्हें बहुत अधिक चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि मैं अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभा सकती हूं और अकेले भी आराम से जा सकती हूं। इसके बाद मेरी पैकिंग शुरू हुई तब मेरे मन में कई सवाल भी चल रहे थे कि कहीं पहली बार बच्चे के साथ जाने में कोई परेशानी ना हो जाए या फिर एयरपोर्ट पर बहुत अधिक भीड़ में मेरी बच्ची घबरा कर रोने ना लगे और क्या अकेले मैं उसे सही से कैसे संभालूंगी? इन सभी सवालों को मन में दबाकर मैं अगले दिन अपनी नन्ही सी बेटी यानी वियाना के साथ घर से फ्लाइट लेने के लिए चौधरी चरण सिंह एयरपोर्ट पहुंच गई।

सबसे पहले मेरे सामान की स्कैनिंग हुई और इसके बाद सुरक्षा जांच भी हुई। सुरक्षा जांच में मेरा हैंडबैग भी चेक हुआ तब मेरी बच्ची वियाना थोड़ा घबरा गई क्योंकि वहां बहुत अधिक भीड़ थी पर मैंने उसका रोना चुप कराया और अपनी फ्लाइट के लिए निर्धारित गेट नंबर पर जाने लगी। उस समय वियाना को भी आसपास की चीजों को देखकर बहुत खुशी हो रही थी। आपको जानकर थोड़ा आश्चर्य होगा कि दो साल से कम उम्र के बच्चों का भी टिकट लगता है पर उन्हें कोई भी सीट प्लेन में नहीं मिलती है। जब फ्लाइट आ गई तो मैं अपने मन में साहस के साथ आगे बढ़ी और अपनी सीट पर जाकर आराम से बैठ गई।

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यह सफर लगभग तीन घंटे का था। मेरे पति भी बार-बार मेरा और वियाना का हालचाल लेने के लिए कॉल कर रहे थे। इसके बाद जब प्लेन ने उड़ान भरी तो वियाना जोर-जोर से रोने लगी। मैं भी घबरा गई पर मैंने उसे चुप कराने की कोशिश की और आखिर थोड़े वक्त के बाद वह शांत हो गई और विंडो सीट से बाहर के नजारे देखकर मंद-मंद मुस्कुराने लगी। इसके बाद प्लेन में हमें कोई भी असुविधा नहीं हुई और फिर हम तीन घंटे के बाद बेंगलुरु पहुंच गये जहां मेरे हसबैंड मुझे लेने आए हुए थे।

मैं भले ही पहले बहुत घबरा रही थी लेकिन आखिरकार बहुत आराम से मैंने बिना किसी डर के अपनी नन्ही सी जान वियाना के साथ सफर को पूरा किया और फिर हम बेंगलुरु पहुंच गए और यह सफर मेरे लिए हमेशा खास रहेगा क्योंकि मैंने और वियाना ने पहली बार एक साथ फ्लाइट से सफर को तय किया।

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