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नवरात्र में इन 5 देवियों के मंदिरों में जरूर जाएं

हम आपको देवी दुर्गा के कुछ खास मंदिरों के बारे में आज बताने जा रहे हैं, जो न केवल धार्मिक महत्‍व रखते हैं बल्कि आपके लिए एक अच्‍छी ट्रैवल डेस्‍टीनेशन भी साबित हो सकते हैं। 

Anuradha Gupta

Updated:- 2018-10-05, 14:51 IST

हिंदु धर्म में चैत्र नवरात्र का बहुत महत्‍व है। खासतौर पर नॉर्थ, ईस्‍ट और वेस्‍ट भारत में चैत्र नवरात्र बहुत धूमधाम से मनाए जाते हैं। इन नवरात्र में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है। नौ दिन मनाए जाने वाले इस त्‍योहार में बहुत से भक्‍त देश में मौजूद अलग-अलग देवी मंदिरों के दर्शन करने जाते हैं। अगर इस बार आप भी नवरात्र पर मां दुर्गा के मंदिर में जा कर दर्शन करने का प्‍लान बना रही हैं, तो हम आपको देवी दुर्गा के कुछ खास मंदिरों के बारे में आज बताने जा रहे हैं, जो न केवल धार्मिक महत्‍व रखते हैं बल्कि आपके लिए एक अच्‍छी ट्रैवल डेस्‍टीनेशन भी साबित हो सकते हैं।

करणी माता मंदिर, बीकानेर

राजस्थान में मौजूद किले और मंदिर देश भर में मशहूर हैं। इन्‍हीं मंदिरों में एक मंदिर करणी माता का है। यह मंदिर कई कारणों फेमस है। दरअसल इस मंदिर को चूहे वाला मंदिर भी कहा जाता है क्‍यों कि यहां पर ढेरों काले चूहे हैं। इन चूहों का मंदिर में होना शुभ माना जाता है। इन चूहों को रोजाना मंदिर में दूध दही और लड्डू का प्रसाद चढ़ता है। यह मंदिर बीकानेर से लगभग 30 किलो मीटर दूर देशनोक में है। यहां के स्‍थानीय लोगों के मुताबिक मंदिर में 20 हजार चुहे रहते हैं। इतने सारे चूहे होने के बावजूद मंदिर में बिलकुल भी बदबू नहीं आती। इससे भी आश्‍चर्य की बात है कि यहां पर भक्‍तों को जो प्रसाद मिलता है उसे पहले चूहों को खिलाया जाता है। करणी माता बीकानेर राजघराने की कुलदेवी भी हैं। कहते है की उनके ही आशीर्वाद से बीकानेर और जोधपुर रियासत की स्थापना हुई थी। करणी माता के वर्तमान मंदिर का निर्माण बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह ने बीसवीं शताब्दी के शुरुआत में करवाया था।

वैष्‍णों देवी माता मंदिर, जम्‍मू

हिंदू धर्म में जितनी भी देवियों को पूजा जाता है उनमें से मां वैष्‍णों देवी का महत्‍व सबसे ज्‍यादा है। अपनी जीवन काल में हर कोई एक बार वैष्‍णों देवी मंदिर के दर्शन करना जरूर जाना चाहता है। कई लोग तो इस मंदिर में हर साल मां के दर्शन करने आते हैं मगर नवरात्र के समय इस मंदिर में भक्‍तों की भीड़ का नजारा ही कुछ और होता है। जम्‍मू स्थित इस मंदिर के साथ कई कहानियां जुड़ी हुई हैं उनमें से एक है कि एक भंडारे में मां कन्‍या बन कर गईं थी। वहां एक भैरवनाथ नाम का संत भी आया था। जिसके व्‍यवहार से सभी परेशान थे। कन्‍या ने भैरवनाथ को उसके व्‍यवहार को ठीक करने के लिए कहा तो उसे गुस्सा आ गया औश्र वो कन्या के पीछे भागा, कन्या बनीं मां वैष्णों पर्वत के गुफा में जाकर बैठ गईं जिसके कारण उस गुफा का नाम 'अर्धक्वांरी' पड़ा। आज भी यहां पर यह गुफा है और मंदिर तक पहुंचने के लिए इस गुफा से हो कर गुजरना पड़ता है। यह मंदिर जम्‍मू में 5300 की उंचाई पर त्रिकुटा पर्वत पर बना हुआ है। यहां पर भक्‍तों की सुविधा के लिए हैलीकॉप्‍टर, पालकी और घोड़े उपलब्‍ध कराए जाते हैं जिनकी मदद से मंदिर तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।

दक्षिणेश्‍वर माता का मंदिर, कोलकाता

देश भर में मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा होती रहती है। बंगाल की राजधानी कोलकाता में भी एक ऐसा ही मंदिर मौजूद है। यहां मां काली का सबसे बड़ा मंदिर दक्षिणेश्वर काली मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। कोलकाता के लोगों को मानना है कि कोलकाता माता काली का निवास स्‍थान है और उन्हीं के नाम पर इस जगह का नाम कोलकाता पड़ा हैं। यह काली मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। कहा जाता है कि इस स्थान पर माता सती के दाएं पैर की चार उंगलियां गिरी थी। यह मंदिर वर्ष 1847 में बनना शुरु हुआ था और वर्ष 1855 में इसका काम पूरा हुआ था। यहां के लोगों का यह भी मानना है कि इस मंदिर में गुरु रामकृष्ण परमहंस पुजारी थी और मां काली ने साक्षात् दर्शन दिए थे। मंदिर परिसर में परमहंस देव का भी एक कमरा बना है। जिसमें उनका पलंग तथा उनकेइस्‍तेमाल किए गए कई सामान उनकी याद में रखे हुए हैं।

दंतेश्‍वरी माता का मंदिर, जगदलपुर

देवी सती की 51 शक्तिपीठ में से एक जगदलपुर में भी है। यहां मां दंतेशवरी का मंदिर बना है। लोग मानते हैं यहां माता सती के दांत गिरे थे इसलिए इस स्‍थान पर दंतेश्‍वरी देवी की पूजा की जाती है। वैसे इस मंदिर की एक खासियत यह भी है कि यह सीमेंट या मिट्टी का नहीं बना बल्कि सागौन की लकड़ी से बना हुआ है। 136 साल पुराना यह मंदिर आज भी वैसा का वैसा ही है।

कामाख्‍या देवी मंदिर, गुवाहाटी

असम में मौजूद गुवाहाटी शहर जहां एक तरफ अपनी प्राकृतिक खूबसूरती की वजह से पहचाना जाता है वहीं इस शहर में मौजूद कामाख्‍या देवी का मंदिर भी काफी प्रसिद्ध है। यहां मां भगवती की योनि की पूजा होती है। माना जाता है जब भगवान विष्‍णु ने देवी शक्ति के शव को चक्र से काटा था तब इस स्‍थान पर उनकी योनी कट कर गिर गई थी तब से यहां एक योनी के रूप में बने कुंड की पूजा होती है। इतना ही नहीं यहां पर मां के पीरियड्स भी होते हैं और माना जाता है कि हर माह चार दिन के लिए माता जी का मंदिर बंद हो जाता है। क्‍योंकि पीरियड्स के दौरान उनके भी रक्‍तस्‍त्राव होता है। इस दौरान मां को लाल रंग का वस्‍त्र पहनाया जाता है। मान्‍यता है कि मां का यह वस्‍त्र जिसे मलता है उसके सारे कस्‍ट दूर हो जाते हैं।

Credits:

Editor: Anand Sarpate

Producer: Rohit Chavan

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