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    बाढ़ में डूब गया पूरा गांव, दूर-दूर तक बस पानी दिख रहा था, लेकिन 3 दिन से एक महिला अकेले पेड़ की टहनी बैठी थी, पति बचाने आया लेकिन…

    Priya Singh

    एक औरत और चारों तरफ सिर्फ पानी। तेज बारिश और उफनती नदी ने पूरे गांव को समंदर में बदल दिया था। घर बह चुके थे, रास्ते डूब चुके थे और मोबाइल सिग्नल तक जवाब दे चुके थे। गांव में बस हर तरफ तेज सायरन बज रहे थे, जगे रहो, सतर्क रहो, जहां हो वहीं रहो.....अनाउंसमेंट में लोगों से निवेदन किया जा रहा था कि आप जहां हैं वहीं रहें, पानी में निकलना सेफ नहीं है, हम धीरे-धीरे सभी की मदद के लिए आ रहे हैं…लेकिन पानी में डूब रहे लोग आखिर कब तक किसी के इंतजार में बैठे रहते। पानी का स्तर धीरे धीरे बढ़ता जा रहा था और किसी की मदद का इंतजार करना सही नहीं था। लोग अपनी मदद खुद ही करने में जुटे थे। रेस्क्यू टीम ने गांव में लगभग सभी लोगों को बचा लिया था। घायल लोगों को अस्पताल भेज दिया गया था और रेस्क्यू टीम हर घर में जाकर लोगों की मदद के लिए चेकिंग कर रही थी।

    लेकिन एक परिवार था जहां अब तक कोई नहीं पहुंचा था। गांव में गिने चुने ही घर थे, लेकिन फिर भी किसी की नजर उस घर की तरफ नहीं पड़ी थी। यह पुष्पा का घर था, पुष्पा अपने बेटे के साथ अकेले घर में रहती थी। उसका पति महेश शहर में नौकरी के लिए रहता था। गांव में बाढ़ की खबर सुनकर महेश परेशान था और अपनी पत्नी को फोन कर रहा था, लेकिन नेटवर्क नहीं होने की वजह से उसकी पुष्पा से बात नहीं हो पा रही थी। उधर पुष्पा पानी में फंसी थी, एक ड्रम था जो उसका सहारा था। पुष्पा घर में अकेले एक ड्रम के ऊपर बैठी थी और ड्रम पानी में डूबता जा रहा था… उसका बेटा बल्लू बाढ़ आने से पहले पड़ोस की एक महिला के बच्चे के साथ खेल रहा था। उसे अपने बेटे के बारे में भी कुछ पता नहीं था।

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    धीरे-धीरे रात हो चली थी, रेस्क्यू टीम को लगने लगा था कि पूरा गांव खाली हो चुका है। उधर पुष्पा सुबह से बचाओ बचाओ कोई मदद करो, चिल्ला चिल्ला कर तक चुकी थी। लेकिन इतने शोर में किसी को भी पुष्पा की आवाज सुनाई नहीं दे रही थी। रात को 2 बज गए थे और अब सायरन की आवाज भी बंद हो गई। रेस्क्यू टीम भी अब वापस जाने की तैयारी में थी। तभी आधी रात में किसी के तेज तेज चिल्लाने और रोने की आवाज आई। ये पुष्पा का पति महेश रेस्क्यू टीम से झगड़ रहा था- कहां है मेरा बेटा बल्लू और मेरी पत्नी? रेस्क्यू टीम की अधिकारी महेश को समझा रहे थे कि रात काफी हो गई है। इसमें किसी को ढूंढना मुश्किल है, सुबह हम फिर से ऑपरेशन शुरू करेंगे। जिन लोगों को अस्पताल पहुंचाया गया है, एक बार आप वहां जाकर देख लीजिए। क्या पता आपकी पत्नी और बेटा वहीं हो। काफी समझाने के बाद महेश अस्पताल पहुंचा। हर कमरे में वह पागलों की तरह अपनी पत्नी और बेटे को ढूंढ रहा था। तभी उसे बल्लू नजर आया।

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    बल्लू अपने दोस्त के साथ बैठा अस्पताल में खेल रहा था। बेटे को सही सलामत देख महेश की आंखें भर आई थी, उसने फौरन उसे गले लगा लिया और पूछा बेटा मम्मी कहां है। बल्लू ने कहा , वो तो पता नहीं, पहले वो खाना बना रही थी और अचानक पानी तेज आया तो आंटी मुझे लेकर यहां आ गई। बेटे की बात सुनकर महेश काफी हैरान हो गया था। उधर पुष्पा पानी में एक ड्रम पर बैठी थी। पानी का स्तर बढ़ने लगा था और वह तैरना भी नहीं जानती थी। महेश भी यह बात अच्छे से जानता था कि उसकी पत्नी तैरना नहीं जानती थी, इसलिए वह अस्पताल में बस परेशान यहां वहां घूम रहा था।

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    पुष्पा भी ड्रम पर अकेले बैठकर बस मदद का इंतजार कर रही थी, उसे बहुत तेज भूख भी लग रही थी। पानी में उसे एक बिस्किट का पैकेट नजर आया, वह उसे लेने के लिए पानी में हाथ मार रही थी। तभी अचानक ड्रम हिलने लगा। ऐसा लग रहा था जैसे पानी में कुछ है जिसकी वजह से ड्रम हिल रहा है। पुष्पा ने अपने फोन का टॉर्च जलाया और यहां वहां नजर दौड़ाई। तभी उसे पानी में दो आंखे नजर आई, पुष्पा घबरा गई। ये मगरमच्छ था, पुष्पा को समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करे.. क्योंकि सुबह होते होते तो ड्रम पानी में डूब जाने वाला था। पुष्पा ने डंडे से मगरमच्छ को भागने की कोशिश की लेकिन वह बस उसके ड्रम के आस पास ही घूम रहा था।

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    पुष्पा को समझ आगया था कि वह ज्यादा देर तक ड्रम पर नहीं रह सकती, उसे अब कुछ और उपाय निकलना होगा। तभी उसकी नजर एक प्लास्टिक के प्लेट पर पड़ी। यह बड़ी सी प्लेट थी जो पानी में तैर रही थी। पुष्पा को लगा कि वो अगर वहां तक पहुंच गई तो। पानी से बाहर निकल सकती है।

    उसने ड्रम को धीरे धीरे हिलाना शुरू किया और प्लास्टिक की प्लेट तक लेकर जाने की कोशिश की। लेकिन मगरमच्छ ने उसका पीछा छोड़ा नहीं था। वह जहां तक जा रही थी , मगरमच्छ भी उसके पीछे चल रहा था धीरे धीरे पुष्पा प्लास्टिक की प्लेट तक पहुंच गई, जैसे ही उसने प्लास्टिक की चौड़ी प्लेट पर पैर रखा, तभी वह पानी में डूब गया, पुष्पा का अचानक बैलेंस बिगड़ गया और वह पानी में गिर गई। पानी में गिरते ही मगरमच्छ ने उसपर हमला कर दिया.. वह पानी में डूबने लगी थी और मगरमच्छ ने उसका हाथ पकड़ लिया था, तभी पानी का तेज बहाव उसकी तरफ आया और वह मगरमच्छ के साथ एक पेड़ के पास चली गई।

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    पेड़ के पास पहुंचते ही उसने टहनी को पकड़ लिया, और मगरमच्छ से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी थी। उसका हाथ खून से लथपथ था और वह बहुत ज्यादा थक गई थी...लेकिन जैसे तैसे आखिर पुष्पा ने अपना हाथ मगरमच्छ से छुड़ा ही लिया। पेड़ की टहनी पकड़कर वह ऊपर चढ़ गई और उसने चैन की सांस ली। पुष्पा दर्द से कहरा रही थी लेकिन कोई भी उसकी मदद के लिए वहां नहीं था। गांव में सन्नाटा था, और पुष्पा को हर तरफ बस पानी नजर आ रहा था। सुबह के 5 बज गए थे और एक बार फिर रेस्क्यू टीम वापस गांव में छान बिन के लिए आ रही थी। यह आखिरी बार था, उन्हें इस बार अगर कोई नहीं मिलेगा तो वह रेस्क्यू ऑपरेशन खत्म करने वाले थे।

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    उधर पुष्पा को फिर से सायरन की आवाज आने लगी थी। इस बार उम्मीद थी कि उसे बचा लिया जाएगा। वह टहनी पर बैठकर मदद के लिए हाथ हिला रही थी- बचाओ-बचाओ, मैं यहां हूं…रेस्क्यू टीम के साथ महेश भी नाव में बैठा था। धीरे धीरे पुष्पा को अनाउंसमेंट की आवाज तेज आ रही थी। उसे लग रहा था कि लोग उसकी तरफ आ रहे हैं। पुष्पा को तभी नाव दिखी। नाव उसके घर की तरफ जा रही थी और उसमें महेश भी था पुष्पा खुशी में महेश महेश चिल्लाने लगी। लेकिन पानी का शोर इतना ज्यादा था कि आवाज उन तक पहुंच नहीं पा रही थी।

    अभी नाव उसके घर तक पहुंची भी नहीं थी कि वापस मूड गई। पुष्पा ने देखा, उसे समझ नहीं आया क्योंकि रेस्क्यू टीम घर के करीब भी नहीं आई और आधे रास्ते में मूड गई। महेश भी उनके साथ था, कम से कम चेक तो करना चाहिए था। पुष्पा को ये बात हजम नहीं हो रही थी, तभी पुष्पा ने तेज तेज फिर से महेश महेश चिल्लाने शुरू किया। अचानक से महेश ने पीछे मुड़कर देखा, पुष्पा और महेश की नजरें मिल गई थी, महेश नाम पर रेस्क्यू टीम के साथ था, लेकिन महेश ने उसकी मदद नहीं की… महेश ने देखा कि उसकी पत्नी उसे बुला रही थी, लेकिन वह उसकी मदद किए बिना रेस्क्यू टीम के साथ निकल गया।

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    ये नजारा देख पुष्पा का दिल मानों टूट गया था, पति ने जानबूझकर उसे पानी में अकेले मरने के लिए छोड़ दिया था। पिछले 3 सालों से जो पति गांव नहीं आया था, आखिर वह वापस आया भी तो अपनी पत्नी की मदद किए बिना ही मूड गया। पुष्पा को अब किसी के आने की उम्मीद नहीं थी, वह बहुत देर तक अकेले बैठी पेड़ पर सोच रही थी, अब वह क्या करे, क्या उसे जीना चाहिए, जिसके लिए वो जी रही थी , वही उसे मरने के लिए अकेले छोड़ गया था। बहुत सोचने के बाद पुष्पा ने सोचा, पिछले 2 सालों से उसका पति वापस नहीं आया था, फिर भी वह अकेले खुश थी, तो वह अब कैसे मरने के बारे में सोच सकती है, वह जीकर दिखाएगी और इस बाढ़ से बचकर दिखाएगी।

    उसने तुरंत पानी से बाहर निकलने की नई नई तरकीब निकालने की कोशिश की। लेकिन टहनी पर बैठकर कुछ भी करना संभव नहीं हो पा रहा था, तभी उसके दिमाग में लकड़ी पर तैरकर किनारे तक पहुंचने का प्लान बनाया। वह भूखे प्यासे बस लकड़ी की मोटी टहनी को तोड़ने में लगी थी। एक मोती जड़ बिना किसी धारीदार हथियार से काटना आसान नहीं था। धीरे धीरे 2 दिन बीत गए थे, लेकिन पुष्पा कुछ भी नहीं कर पाई थी। तीसरे दिन शुभ लगभग 5 बजे उसे पानी में एक मोटी लकड़ी नजर आई। लकड़ी देखते ही जैसे पुष्पा की खुशी का ठिकाना नहीं था, उसने प्लान बनाया कि जैसे ही लकड़ी पेड़ की नीचे आएगी, वह ऊपर से कूद जाएगी और उसे पकड़ लेगी। प्लान के हिसाब से आखिर उसने लकड़ी पर छलांग मारी और उसे पकड़ लिया, अब लकड़ी पानी में तैर रही थी.. और उसे बस पानी में मगरमच्छ का डर था, इसलिए कैसे भी करके वह जल्दी जल्दी किनारे पर जाना चाहती थी।

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    वह हाथ से पानी को पीछे धकेल रही थी, ताकि लकड़ी आगे की तरफ बढ़ सके, धीरे धीरे उसने आधा सफर पूरा कर लिया था और वह किनारे पर पहुंचने ही वाली थी। तभी मगरमच्छ उसके पीछे आने लगे। वह चाहे कितनी भी कोशिश कर लेती, लेकिन वह तेज पानी में नहीं चल सकती थी, आखिर मगरमच्छ ने पुष्पा पर हमला कर दिया। सूरज निकल चुका था और वह पानी में तड़प रही थी, वह खुद को मगरमच्छ से बचाने की कोशिश का रही थी, तभी किनारे पर खड़े एक आदमी ने उसे डूबते हुए देखा। रेस्क्यू टीम भी किनारे पर ही खड़ी थी, वह फौरन पुष्पा को डूबता देख उसे बचाने निकल गई।

    जल्दी-जल्दी आखिर पुष्पा को पानी से बाहर निकाल दिया गया था, लेकिन वह बहुत बुरी तरह से घायल हो चुकी थी, उसे अस्पताल ले जाया जा रहा था, तभी एक अधिकारी ने पूछा , आप 3 दिन से कहां थी, पुष्पा ने कहा मैं एक पेड़ पर फंसी थी। उसने अपने घर का पता और पति के बारे में भी बताया। तब पुष्पा ने पूछा, आप लोग मेरे घर के पास आने से पहले ही मूड गए, मेरा पति भी आपके साथ था। अधिकारी ने कहा, आपके पति ने कहा कि मेरा घर डूब चुका है, पत्नी को तैरना नहीं आता, उसका बचने का कोई चांस नहीं, उसने ही हमें नाव मोड़ने को कहा था।

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    पुष्पा ने कहा- मेरा बेटा कहां है, मुझे मेरे बेटे से मिलना है, आप लोग मुझे मरता हुआ अकेले गांव में छोड़ आए थे… मैं आप लोगों पर भरोसा नहीं कर सकती। अधिकारियों ने कहा- दोनों अस्पताल में हैं। पुष्पा गुस्से में जल्दी-जल्दी अस्पताल पहुंची, वहां पति बेटे के साथ बैठा था, लेकिन वहां एक महिला भी उसके साथ थी। यह महिला शहर से आई थी और वह दोनों बेटे को साथ शहर लेकर जाने की बात कर रहे थे। पुष्पा कमरे के बाहर से सब सुन रही थी। यह सब सुनकर उसकी आंखे गुस्से में लाल हो गई थी। उसने गुस्से में दरवाजा खोला और फौरन बल्लू का हाथ पकड़ कर बाहर आ गई। हाथ पैर पर पट्टी बांधी थी लेकिन, पुष्पा को दर्द से कहराते हुए नहीं देखा जा सकता था।

    पुष्पा को जिंदा देख तो जैसे महेश के होश ही उड़ गए थे। उधर उसकी दूसरी पत्नी जो शहर से आई थी , वो भी उसे देख कर हैरान थी। महेश को लग रहा था कि उसका काम आसान हो गया है। दूसरी पत्नी से बच्चा नहीं हो रहा है तो पहली पत्नी के मरने के के बाद बल्लू हमारा होगा। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

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    महेश के पास हिम्मत नहीं थी कि वह किस मुंह से पुष्पा से बल्लू को मांगे। क्योंकि, उसने उसे वहां पेड़ पर अकेला मरने के लिए छोड़ दिया था। इसलिए वह चुप चाप अपनी दूसरी पत्नी के साथ अस्पताल से वापस शहर के लिए निकल गया। वहीं पुष्पा महेश को जाता देख रोए जा रही थी, क्योंकि केवल बल्लू ही अब उसका इकलौता सहारा था। जिस पति के इंतजार में वह दो सालों से बैठी थी, अब वह पति उसका नहीं था।

    यह कहानी पूरी तरह से कल्पना पर आधारित है और इसका वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं है। यह केवल कहानी के उद्देश्य से लिखी गई है। हमारा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। ऐसी ही कहानी को पढ़ने के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी के साथ।

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