बचपन से मेरी मां मेरी बेस्ट फ्रेंड की तरह थीं। कभी मेरी बड़ी बहन, तो कभी मेरे नखरे उठाने वाली दोस्त के रूप में मैंने मां को देखा। न जाने कितनी बार मुझे पापा से बचाया, लेकिन कभी मेरी गलतियों की छिपाया नहीं।
मां ने मुझे हमेशा अपनी गलतियों से सीख लेना सिखाया और आगे बढ़कर पीछे न मुड़ने की प्रेरणा दी। सच कहूं तो मां की सीख वास्तव में उस समय सबसे ज्यादा काम आई जब मैं खुद दो बच्चों की मां बनी। मां बनने के बाद एहसास हुआ कि कैसे मां ने अपनी फेवरेट साड़ी के खराब होने पर भी मुझे डांटने के बजाय गले से लगा लिया था, कैसे मेरी मां खुद कई बार बिना कुछ खाए-पिए हुए मुझे और मेरे भाई की फेवरेट डिश तैयार करती थी।
हां सच यही है कि मां की त्याग और तपस्या के सही मायने मुझे अपने बच्चों के जन्म के बाद ही पता चले और मेरी मां की पेरेंटिंग टिप्स अभी तक मेरे बच्चों की परवरिश में काम आ रही हैं।
आज मैं खुद मां से एक बेस्ट मां बन गई हूं, न सिर्फ बच्चों की नज़रों में बल्कि दुनिया के लिए भी क्योंकि मेरे बच्चे बुलंदियों को छू रहे हैं। आइए आज मैं आपको ऐसी ही कुछ पेरेंटिंग टिप्स बताऊं जो मेरी मां ने सिखाई थीं।
बचपन में जब मां वर्किंग थी और दिनभर के बाद थक कर घर आती थी तब मेरी और मेरे भाई की कुछ अलग ही डिमांड होती थीं जैसे मम्मी मुझे खाने में कुछ स्पेशल चाहिए, मेरा होमवर्क कंप्लीट करना है, अरे कल मुझे स्कूल में प्रेजेंटेशन देना है उसकी तैयारी करनी है।
हम शायद ये भूल ही जाते थे कि मां भी थक सकती है और आराम करना चाहिए। लेकिन मेरी मां ने हमें हमेशा ज्यादा से ज्यादा समय दिया। आप भले ही वर्किंग हैं और दिनभर के बाद घर क्यों न आती हों लेकिन बच्चों को समय जरूर दें। आप भले ही उनका होमवर्क पूरा न करा पाएं, लेकिन उनकी हर एक बात को धैर्य से जरूर सुनें।
आप भले ही अपने बच्चों की मां हैं लेकिन हमेशा उनकी दोस्त बनने की कोशिश करें क्योंकि खासतौर पर टीन एज में जब बच्चों के मन में बहुत सी जिज्ञासाएं होती हैं तब आप उनसे हर एक बात दोस्त की तरह शेयर करें।
मुझे याद है जब मैंने पहली बार मां से ये बात शेयर की थी कि मुझे रास्ते में आते-जाते एक लड़का परेशान करता है और मां ने एक दोस्त की तरह मेरा साथ देकर उस लड़के को भी समझाया था और मुझे भी कई सुझाव दिए थे। आज जब मेरे बेटे ने मुझे अपने कॉलेज के पहले क्रश के बारे में बताया तब मुझे लगा कि शायद मैं एक सफल मां बन गई हूं क्योंकि मैं बेटे की बेस्ट फ्रेंड की तरह हूं।
कमी हर एक व्यक्ति में होती है और कोई भी परफेक्ट नहीं है, लेकिन इस बात को मेरी मां ने मुझे बखूबी समझाया कि मुझमें कितनी भी कमियां क्यों न हों, लेकिन मैं फिर भी सबसे अलग हूं और मेरे भीतर लाखों खूबियां हैं।
मैंने भी मां की इस सीख को याद करते हुए अपने बच्चों की परवरिश में कभी भी उनकी कोई कमी नहीं निकाली। अगर मुझे बच्चों में कोई कमी दिखी भी तो मैंने उन्हें धैर्य से समझाया और उनकी गलतियों को सुधारने का सुझाव दिया।
आप भले ही बच्चों से कितनी भी नाराज क्यों न हों, लेकिन उनसे हमेशा कम्युनिकेशन बनाए रखें। बच्चों को आपकी अहमियत का एहसास तभी होता है जब आप उनसे हर एक तरह की बात करेंगी और उनकी बातें सुनेंगी। मेरी मां आज भी मुझसे जब भी मिलती हैं हम ढेर साड़ी बातें करते हैं और मेरे बच्चे भले ही अब बड़े हो गए हों , लेकिन समय निकालकर उनकी बातें जरूर सुनती हूं।
बच्चों की परवरिश का सही तरीका मैंने अपनी मां से सीखा, उन्होंने मुझे सिखाया कि हमेशा बच्चों के दोस्त बनकर रहना चाहिए और उन्हें ज्यादा से ज्यादा समय देना चाहिए।
Author Details: अंशू मिश्रा एक कान्वेंट स्कूल की टीचर हैं और दो बच्चों की मां हैं। घर और वर्कप्लेस की जिम्मेदारी काफी सालों से बखूबी निभा रही हैं।
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