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जन्माष्टमी के दिन कृष्ण जन्म के समय आखिर क्यों काटा जाता है खीरा, जानें मान्यता

हिन्दू धर्म में जन्माष्टमी का दिन भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में पूरे उत्साह और श्रद्धा से मनाया जाता है। इस दिन की परंपराओं में एक खास है श्री कृष्ण जन्म के समय मध्य रात्रि को खीरा काटना। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, लेकिन बहुत कम लोग इसके पीछे की मान्यता और महत्व जानते हैं। आइए आपको बताते हैं इसके कारणों और कथाओं के बारे में। 
Editorial
Updated:- 2025-08-13, 14:11 IST

जन्माष्टमी का पावन पर्व हर साल भाद्रपद मास की अष्टमी तिथि को धूमधाम से मनाया जाता है। यह दिन भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में पूरे देश में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष जन्माष्टमी का शुभ अवसर 16 अगस्त 2025 को पड़ रहा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, रोहिणी नक्षत्र में अष्टमी तिथि के दौरान द्वापर युग में श्री विष्णु ने आठवें अवतार के रूप में मथुरा की कारागार में भगवान श्री कृष्ण के रूप में जन्म लिया था।

इस दिन मंदिरों में विशेष सजावट, झांकियां, भजन-कीर्तन और मध्यरात्रि में जन्माभिषेक का आयोजन किया जाता है। वहीं, कई स्थानों पर एक विशेष परंपरा भी निभाई जाती है भगवान कृष्ण के जन्म के समय खीरा काटना। ज्योतिष एक्सपर्ट अमिता रावल बताती है कि ऐसी मान्यता है कि खीरे के बिना कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा अधूरी मानी जाती है। खीरा काटने का यह रिवाज सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि इसके पीछे गहरे आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक अर्थ छिपे हुए हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह श्री कृष्ण के जन्म के समय जेल के द्वार खुलने और सभी बंधनों के समाप्त होने का प्रतीक है। आइए जानें, आखिर खीरे और जन्माष्टमी पर्व का क्या संबंध है।

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन क्या है खीरे का महत्व?

जन्माष्टमी के दिन जितना महत्व लड्डू गोपाल की पूजा में माखन मिश्री का है, उतना ही खीरे का भी है। ऐसी मान्यता है कि खीरे के बगैर बांके बिहारी की पूजा अधूरी है। जो कोई भी भगवान श्री कृष्ण को खीरा चढ़ाता है उससे कान्हा हमेशा प्रसन्न रहते हैं और उसकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। ऐसी मान्यता है कि पूजा में इस्तेमाल किया जाने वाला खीरे डंठल वाला होना चाहिए, तभी वह पूजा के लिए उपयुक्त हो सकता है। सदियों से ही कृष्ण जन्म के समय मध्यरात्रि को खीरा काटने की रस्म चली आ रही है।

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धार्मिक मान्यता के अनुसार, खीरे को मां देवकी की प्रसव पीड़ा से मुक्ति और कारागार के द्वार खुलने का प्रतीक माना जाता है। खीरे के भीतर मौजूद बीज गर्भ का प्रतीक होते हैं, जिन्हें काटकर बाहर निकालना भगवान के अवतरण का संकेत माना जाता है। इसी वजह से जन्माष्टमी की रात, ठीक 12 बजे यानी कृष्ण जन्म के समय पर, खीरा काटकर उसे लड्डू गोपाल को अर्पित किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस उपाय से घर में सुख-समृद्धि आती है और जीवन में हर बाधा दूर होती है।

 

 

 

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डंठल वाला खीरा क्यों होता है शुभ?

डंठल वाले खीरे से जुड़ी मान्यता है कि जब बच्चे का जन्म होता है, तो बच्चे को मां के गर्भ से अलग करने के लिए गर्भनाल या नाल फूल को काटा जाता है। ठीक उसी प्रकार डंठल वाले खीरे को भगवान श्री कृष्ण का गर्भनाल या नालफूल माना जाता है और खीरे को काटकर श्री कृष्ण को मां देवकी से अलग करने की रस्म के तौर पर मनाया जाता है। इस डंठल वाले खीरे को काटने की प्रक्रिया को नाल छेदन के नाम से जाना जाता है।

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जन्माष्टमी पर कैसे करें लड्डू गोपाल और खीरे की पूजा?

जन्माष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा में खीरे को शामिल करने से पहले इसे शुद्ध पानी से धो लें। अब इस खीरे को भगवान श्री कृष्ण के पास रखें और रात को ठीक 12 बजे कृष्ण जन्म के साथ ही इस खीरे को किसी सिक्के से काटें और 3 बार शंखनाद करते हुए भगवान को जन्म की बधाई दें। इस खीरे को बाद में प्रसाद के रूप में भी बांटा जाता है। 

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FAQ
जन्माष्टमी के लिए खीरा कैसे काटते हैं?
जन्माष्टमी के दिन खीरे को सीधा आधा काटना शुभ माना जाता है। 
लड्डू गोपाल को खीरे में क्यों रखा जाता है?
ऐसी मान्यता है कि खीरे से भगवान श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न होते हैं, इसलिए जन्म के समय खीरा काटने की रस्म सदियों से चली आ रही है। 
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