Krishna Janmashtami 2023: जन्माष्टमी का पर्व इस साल 7 सितंबर को मनाया जाएगा। हर साल भाद्र मास की अष्टमी तिथि को भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस दिन रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। इसलिए रोहिणी नक्षत्र में जब अष्टमी तिथि पड़ती है, तब भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। देशभर के मंदिरों और घरों में कृष्ण जन्म का उत्सव मनाया जाता है। इस दिन स्कूल और कॉलेज में भी कृष्ण जन्म का उत्सव रखा जाता है और रंग-बिरंगे फूलों से सजाया जाता है और उनकी लीलाओं को याद कर इस दिन को मनाया जाता है। ऐसे में बहुत से जगहों में भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव में खीरा काटने की रस्म भी होती है। मान्यता है कि खीरे के बिना भगवान की पूजा अधूरी है। ऐसे में चलिए जानें की खीरे और कृष्ण जन्माष्टमी का क्या संबंध है।
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन क्या है खीरे का महत्व?
जितना महत्व भगवान लड्डू गोपाल की पूजा में माखन मिश्री का है, उतना ही खीरे का भी है। मान्यता है कि खीरे के बगैर बांके बिहारी की पूजा अधूरी है। जो कोई भी भगवान श्री कृष्ण को खीरा चढ़ाता है उससे लड्डू गोपाल प्रसन्न होते हैं और उसकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। मान्यता है कि पूजा में इस्तेमाल की जाने वाली खीरे में डंठल होनी चाहिए और एक से दो पत्ते भी, तभी वह पूजा में इस्तेमाल करने के लिए सही खीरा है। इस खीरे को रात को 12.00 बजने के बाद शुभ मुहूर्त में काटा जाता है।
इस कारण से होता है खीरा शुभ
डंठल वाले इस खीरे से जुड़ी ये मान्यता है कि जब बच्चे का जन्म होता है, तो बच्चे को मां के गर्भ से अलग करने के लिए गर्भनाल या नाल फूल को काटा जाता है। ठीक उसी प्रकार डंठल वाले खीरे को भगवान श्री कृष्णका गर्भनाल या नालफूल माना जाता है और खीरे को काटकर श्री कृष्ण को मां देवकी से अलग करने की रस्म के तौर पर मनाया जाता है। इस डंठल वाले खीरे को काटने की प्रक्रिया को नाल छेदन के नाम से जाना जाता है।
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कैसे करें लड्डू गोपाल और खीरे की पूजा
भगवान श्री कृष्ण की पूजा में खीरे को शामिल करने से पहले खीरे को शुद्ध पानी से धो लें। अब इस खीरे को भगवान श्री कृष्ण (कृष्ण जी के प्रिय फूल) के पास रखें और रात के 12 बजे कृष्ण जन्म के साथ खीरे को किसी सिक्के से काटें और 3 बार शंखनाद करते हुए भगवान के जन्म की बधाई दें। बहुत से जगहों पर इस खीरे को प्रसाद के रूप में सभी में बांटा जाता है।
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