Why child Form of lord krishna called laddu gopal

श्रीकृष्ण के बाल रूप को ही क्यों बुलाते हैं लड्डू गोपाल?

भगवान श्रीकृष्ण को लड्डू गोपाल, कान्हा, मुरलीधर, श्याम, द्वारकाधीश आदि जैसे कई नामों से पुकारा जाता है।  अब ऐसे में भगवान कृष्ण का नाम लड्डू गोपाल कैसे पड़ा। इसके बारे में जानते हैं। 
Editorial
Updated:- 2024-07-02, 16:16 IST

(lord krishna called laddu gopal) भगवान श्रीकृष्ण, श्री हरि विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। भगवान कृष्ण का जन्म द्वापरयुग में मथुरा में हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण को प्रेम, आनंद और मुक्ति का प्रतीक माना जाता है। वे जीवन के सभी पहलुओं में मार्गदर्शन और प्रेरणा का स्रोत हैं। वहीं श्रीकृष्ण को मक्खन चोर, लड्डू गोपाल, मुरलीधर, मोहन, द्वारकाधीश, और जगन्नाथ सहित कई नामों से भक्त पुकारते हैं। अब ऐसे में सवाल है कि श्रीकृष्ण के बाल रूप को ही लड्डू गोपाल क्यों बुलाते हैं। आइए इस लेख में ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से जानते हैं। 

श्रीकृष्ण के बाल रूप को ही क्यों बुलाते हैं लड्डू गोपाल? 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, बचपन में भगवान श्रीकृष्ण मथुरा में अपनी शरारतों और मधुर मुरली वादन के लिए प्रसिद्ध थे। वे अक्सर गोपियों के घरों से मक्खन चुराते थे, जिसके लिए उन्हें मक्खन चोर कहा जाता था। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण को लड्डू बहुत पसंद थे। वे अक्सर गोपियों से लड्डू मांगते थे और उन्हें बड़े चाव से खाते थे। लड्डू गोपाल नाम भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप की मधुरता, मासूमियत, शरारत और भक्तों के प्रति प्रेम का प्रतीक है। उनकी मधुर मुस्कान और चंचल आंखें बच्चों की तरह ही मोहक होती थीं। 

भगवान श्रीकृष्ण का नाम कैसे पड़ा लड्डू गोपाल? 

laddu gopal in home

ऐसा कहा जाता है कि ब्रज भूमि में भगवान श्रीकृष्ण के एक परम भक्त कुम्भनदास थे। जिसका पुत्र रघुनंदन था। कुंभनदास श्रीकृष्ण की भक्ति में हमेशा लीन रहते थे और उन्हें छोड़कर कहीं नहीं जाते थे। एक समय की बात है, जब उन्हें वृंदावन से भागवत करने का न्योता आया। पहले कुंभनदास ने उन्हें मना कर दिया। फिर लोगों ने उनसे बहुत आग्रह किया। तब जाकर उन्होंने सबकी बात मानी। उन्होंने सोचा कि भगवान की सेवा की तैयारी करके ही जाएंगे और कथा करके वौपस लौट आएंगी। कुंभनदास ने भोग की सारी तैयारी करके अपने बेटे रघुनंदन को समझा दिया कि ठाकुर जी को भोग लगा देना और कथा के लिए चले गए। 

रघुनंदन ने भोजन की थाली ठाकुर जी के आगे रख दी और उनसे भोग लगाने का भी आग्रह किया। उसके बाद मन में ये छवि थी कि ठाकुर जी अपने हाथों से भोजन करेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बहुत देर बाद इंतजार करने के बाद भोजन की थाली ऐसे ही रखी रही, तो रघुनंदन रोने लगे और पुकारा कि ठाकुर जी आओ और भोग लगाओ। तब रघुनंदन की इस पुकार के बाद ठाकुर जी ने बालक का रूप धारण किया और वह भोजन करने बैठ गए। जब कुंभनदास ने घर आकर रघुनंदन से प्रसाद मांगा तो उसने कहा कि ठाकुर जी ने सारा भोजन खा लिया। कुंभनदास को लगा कि बच्चे को भूख लगी होगी। इसलिए वह सारा भोजन खा लिया। लेकिन ऐसा रोजाना होने लगा। तब कुंभनदास को शक हुआ। एक दिन उन्होंने लड्डू बनाकर थाली में रखा और फिर छिपकर देखने लगे कि रघुनंदन क्या करता है। 

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जब रघुनदन ने ठाकुर जी के आगे थाली रखी, तो ठाकुर जी ने बालक का रूप धारण किया और लड्डू खाने लगे। कुंभनदास ये सबकुछ छिपकर देख रहा था। जैसे ही ठाकुर के बाल स्वरूप को कुंभनदास ने देखा, वह भागता हुआ प्रभु के चरणों में गिर गया और विनती करने लगा। उस समय लड्डू गोपाल के एक हाथ में लड्डू था और दूसरे हाथ का लड्डू मुंह में जाने ही वाला था, लेकिन इतने में वे जड़ हो गए। उसके बाद बी उनको इस रूप की पूजा की जाती है और उन्हें लड्डू गोपाल के नाम से पुकारा जाने लगा। 

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