धार्मिक दृष्टि से फरवरी का महीना बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इस माह में कई व्रत और पर्व मनाए जाते हैं। इनमें द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी भी शामिल है। चतुर्थी तिथि पर महादेव के पुत्र भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने का विधान है। साथ ही श्रद्धा अनुसार लोगों में गर्म कपड़े और धन का दान भी किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि उपासना और दान करने से भक्त पर हमेशा गणपति बप्पा की कृपा बनी रहती है और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। ऐसे में आइए ज्योतिषाचार्य पंडित अरविंद त्रिपाठी से विस्तार से जानते हैं कि फरवरी में मनाई जाने वाली द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी कब मनाया जाएगा और पूजा का शुभ मुहूर्त और बप्पा की पूजा का महत्व क्या है।
फरवरी में द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी कब मनाई जाएगी?
पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 15 फरवरी को रात 11 बजकर 52 मिनट से शुरू होगी और 17 फरवरी को रात 02 बजकर 15 मिनट पर समाप्त होगी। इसलिए, 16 फरवरी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी मनाई जाएगी।
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है?
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त के बारे में विस्तार से जान लें। इन मुहूर्त में आप बप्पा की पूजा विधिवत रूप से कर सकते हैं।
- ब्रह्म मुहूर्त - सुबह 05 बजकर 16 मिनट से 06 बजकर 07 मिनट तक है।
- विजय मुहूर्त - दोपहर 02 बजकर 28 मिनट से 03 बजकर 12 मिनट तक है।
- गोधूलि मुहूर्त - शाम 06 बजकर 10 मिनट से 05 बजकर 35 मिनट तक है।
- अमृत काल- रात 09 बजकर 48 मिनट से 11 बजकर 36 मिनट तक है।
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द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन पूजा का महत्व क्या है?
द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का व्रत फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से व्यक्ति के सभी संकट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाले सभी प्रकार के संकट दूर होते हैं। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन पूजा करने से घर की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
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द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन करें मंत्रों का जाप
- वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विध्नम कुरुमेदेव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
- एकदंताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
- ऊं गं गणपतये नमः
- ऊं नमो हेरम्ब मद मोहित मम् संकटान निवारय-निवारय स्वाहा
- ऊं श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा
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Image Credit- HerZindagi
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