हर व्यक्ति जो काम कर रहा है उसमें सफलता की आशा रखता है। मगर सफलता केवल कर्म करने से नहीं बल्कि विचारों को शुद्ध करने से भी मिलती है। सफलता आपके कर्म और विचार पर ही आधारित होती है। आप मन में क्या सोच रहे हैं आपके कर्म में वह झलक अवश्य मिल जाएगी। अगर आप भी जीवन में सफलता की आशा रखते हैं, तो आज हम आपको भगवद गीता के कुछ ऐसे श्रेष्ठ विचारों के बारे में बताएंगे, जो आपके सोचने समझने की शक्ति को नई दिशा देंगे। आपको बता दें कि भगवद गीता में श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए ज्ञान का सार आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना महाभारत के समय था। खासतौर पर जब जीवन में उलझनें, असफलताएं और तनाव बढ़ जाएं, तब गीता के ये अनमोल वचन जख्म पर मलहम का काम करते हैं।
भगवद गीता में पॉजिटिव थिंकिंग पर कोट्स (Positive Thinking Bhagavad Gita Quotes)
1. "जिसने अपने मन पर विजय पा ली, उसके लिए मन सबसे अच्छा मित्र है; लेकिन जो ऐसा नहीं कर सका, उसके लिए मन सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है।"
“For one who has conquered his mind, a mind is best of friends, but for one who has failed to do so, a mind is the greatest enemy.”
(अध्याय 6, श्लोक 6)
2. "अपने कार्य में मन लगाओ, फल की कभी चिंता मत करो।"
“Set thy heart upon thy work, but never on its reward.”
(अध्याय 2, श्लोक 47)
3. "शांतचित्तता, नम्रता, मौन, आत्म-संयम और आत्मशुद्धि — ये मन के अनुशासन हैं।"
“Calmness, gentleness, silence, self-restraint, and purity: these are the disciplines of the mind.”
(अध्याय 17, श्लोक 16)
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भगवद गीता में कर्म पर कोट्स (Karma Bhagavad Gita Quotes)
1- "अपने कर्तव्य का पालन करो, क्योंकि कर्म करना अकर्मण्यता से बेहतर है।"
“Perform your obligatory duty because action is indeed better than inaction.”
(अध्याय 3, श्लोक 8)
2- "तुम्हें केवल कर्म करने का अधिकार है, उसके फलों पर नहीं।"
“You have a right to perform your prescribed duties, but you are not entitled to the fruits of your actions.”
(अध्याय 2, श्लोक 47)
3- "कर्म मुझसे नहीं चिपकते, क्योंकि मैं उनके फल की इच्छा नहीं करता। जो यह समझ लेते हैं, वे भी कर्म से मुक्त हो जाते हैं।"
“Actions do not cling to me because I am not attached to their results. Those who understand this and practice it live in freedom.”
(अध्याय 4, श्लोक 14)
4-"जो व्यक्ति सुख-दुख में विचलित नहीं होता, वही मोक्ष का अधिकारी होता है।"
“One who is not disturbed by happiness and distress and is steady in both is certainly eligible for liberation.”
(अध्याय 2, श्लोक 15)
भगवद गीता में किृष्ण पर कोट्स (Krishna Bhagavad Gita Quotes)
1. "तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल में नहीं।"
“You have the right to work but never to the fruit of work.”
(अध्याय 2, श्लोक 47)
2."अनुशासित मन आनंद लाता है।"
“A disciplined mind brings happiness.”
3. "जो केवल फल की इच्छा से प्रेरित होकर कार्य करता है, वह सदा चिंतित रहता है और दुखी होता है।"
“Those who are motivated only by desire for the fruits of action are miserable, for they are constantly anxious about the results of what they do.”
4. "अपने आत्मबल से स्वयं को रूपांतरित करो, कभी अपनी इच्छाओं के अधीन होकर गिरो मत।"
“Reshape yourself through the power of your will; never let yourself be degraded by self-will.”
(अध्याय 6, श्लोक 5)
5. "मूढ़ लोग केवल अपने लाभ के लिए कार्य करते हैं, लेकिन ज्ञानी व्यक्ति संसार के हित के लिए कार्य करते हैं।
“The ignorant work for their own profit, the wise work for the welfare of the world.”
(अध्याय 3, श्लोक 25)
भगवद गीता में एक्शन पर विचार (Quotes on Action in Hindi)
1-"अपने स्वधर्म का पालन दोषों के साथ भी करना श्रेष्ठ है, दूसरे के धर्म को उत्तम ढंग से निभाने की अपेक्षा।"
“It is better to live your own destiny imperfectly then to live an imitation of somebody else's life with perfection.”
(अध्याय 3, श्लोक 35)
2- "काम, क्रोध और लोभ — ये तीन नरक के द्वार हैं, जो आत्मा का नाश करते हैं। अतः इन्हें त्याग देना चाहिए।"
“There are three gates leading to the hell of self-destruction for the soul—lust, anger, and greed. Therefore, one should abandon all three.”
(अध्याय 16, श्लोक 21)
3- "जो 'मैं' और 'मेरा' की भावना से मुक्त है, वही पूर्ण शांति को प्राप्त करता है।"
“Free from all thoughts of 'I' and 'mine', a man finds absolute peace.”
(अध्याय 2, श्लोक 71)
4-"जो अच्छा कार्य करता है, उसका अंत कभी बुरा नहीं होता — न इस लोक में, न परलोक में।"
“No one who does good work will ever come to a bad end, either here or in the world to come”
(अध्याय 6, श्लोक 40)
5-"जो व्यक्ति कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखता है, वही वास्तव में ज्ञानी है।"
“One who sees inaction in action, and action in inaction, is intelligent among men.”
(अध्याय 4, श्लोक 18)
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