महाकुंभ का मेला अपने चरम पर था। हर तरफ आस्था की भीड़ उमड़ी हुई थी। उसी दिन पटना से एक महिला भी अपने बेटे के साथ महाकुंभ जाने का प्लान बनाती है। लेकिन उसे नहीं पता था कि संगम के पवित्र जल में स्नान करने का सपना उसकी जिंदगी में एक नई परीक्षा ले आयेगा। सरिता के लिए यह मेला किसी परीक्षा से कम नहीं था, क्योंकि उसके साथ मेला में कुछ ऐसा हुआ, जिसके बारे में वह सपने में भी नहीं सोच सकती थी।
सरिता अपने 5 साल के बेटे, श्याम, को लेकर प्रयागराज के महाकुंभ के लिए निकली थी। भीड़ इतनी ज्यादा थी कि वह अपने बच्चे को गोद में उठा कर चल रही थी। लेकिन उसके पास समान भी था, ऐसे में इतना वजन उठा कर चलना मुश्किल हो रहा था। मेला रेलवे स्टेशन से 4 किमी दूर था और वह बहुत ज्यादा थक गई थी। इसलिए उसने बच्चे को गोद से उतारा और हाथ पकड़कर पैदल चलने लग। लेकिन भीड़ में धक्का लगने की वजह से बार - बार उसका हाथ श्याम से छूट जा रहा था। इसलिए उसने बच्चे का हाथ अपने पल्लू से बांध रखा दिया, ताकि अगर हाथ छूट भी जाए तो वह कहीं खो न जाए। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।
4 घंटे चलने के बाद सरिता संगम स्थल पहुंच गई। शाही स्नान का दिन था, इसलिए पहले उसने अपने बच्चे को पानी से नहलाया फिर उसके कपड़े बदले। इसके बाद वह खुद नहाने के लिए जाने लगी। उसने अपने 5 साल के बेटे को सीढ़ियों के किनारे खड़ा क्या और अपना सामान उसके पास रख दिया। उसने श्याम से कहा कि मैं जल्दी से नहाकर आती हूं, तुम यहां से कहीं मत जाना। बच्चे ने भी मुंडी हिलाते हुए हां कहा, और वही बैठ गया।
नहाते समय संगम में भीड़ ज्यादा थी, सरिता की कुछ ही पलों के लिए नजर हटी और जब वह वापस लौटी, तो श्याम उसे वहां नहीं मिला। सरिता का सामान वहीं था, लेकिन श्याम नहीं दिख रहा था। वह टेंशन में आ गई और जोर जोर से श्याम श्याम चिल्लाने लगीं। तभी उसकी निगाहें मेले में एक दुकान के पास पड़ी, श्याम वहां खड़ा हुआ, दुकानदार से टॉफी मांग रहा था। वह फौरन उसके पास गई और उसे चिल्लाने लगी।
उसने उससे गुस्से में कहा- मैंने तुम्हें कहा था न कहीं नहीं जाना, फिर तुम क्यों सामान छोड़ कर आए। मां को गुस्सा होता देख बच्चा रोने लगा। मां, श्याम से बहुत ज्यादा नाराज थी, क्योंकि महाकुंभ मेला में कोई खोता है, तो जल्दी मिलता नहीं है। बच्चे को सामान के पास नहीं देखकर सरिता बहुत ज्यादा चिंता में आ गई थी।
बच्चे को गुस्सा करते हुए मां ने फिर से अपने साड़ी के पल्लू से उसका हाथ बांध दिया। उसे अब डर हो गया था कि कहीं बच्चा सच में न खो जाए। अगर ऐसा होगा, तो वह अकेले करोड़ों की भीड़ में उसे कहां ढूंढेगी। सरिता अकेले ही अपने बच्चे का पालन-पोषण करती थी। बच्चे के पास उसकी मां के अलावा और कोई नहीं थी।
धीरे-धीरे अब अंधेरा होने लगा था और अब वह इतनी रात को वापस अपने गांव नहीं जा सकती थीं। उसकी ट्रेन अगले दिन थी, इसलिए रात उसे मेले में ही गुजरना पड़ा। वह जानती थी कि मेला में उसे लेट होगा ही, इसलिए उसने ट्रेन अगले दिन की बुक की थी। वह अपने साथ कम्बल और चादर भी लेकर आई थी।
पहले सरिता ने एक जगह ढूंढी, जहां लोगों ने सोने के लिए तैयारी कर रहे थे। वह भी वहां अपने बच्चे के साथ चली गई और चादर बिछाने लगी। बच्चे ने भी अपने नन्हे हाथों से अपने मां की चादर बिछाने में मदद की। चादर बिछाने के बाद दोनों बैठे और पहले खाना खाने की तैयारी करने लगे। सरिता घर से खाना बनाकर लेकर आई थी। खाना खाने के बाद कुछ देर वह जगे रहे। रात के 10 बज गए थे और ठंड बहुत ज्यादा बढ़ने लगी थी। रात होने के बाद भी सरिता ने अपने बच्चे का हाथ पल्लू से बांध रखा था। उसने श्याम को सीने से लगाया और सो गई।
लेकिन जब सुबह सरिता की आंख खुली, तो श्याम वहां नहीं था। सरिता के पल्लू को गांठ अभी भी बंधी थी। सरिता जोर-जोर से चिल्लाने लगी और रोने लगी। वह यहां वहां घबरा का श्याम- श्याम बुलाकर उसे ढूंढ रही थी। उसने आसपास के लोगों से भी श्याम के बारे में पूछा, लेकिन किसी ने भी श्याम को नहीं देखा था। बच्चे के गायब होने से सरिता का हाल पागलों जैसा हो गया था। उसने पूरे मेले में बच्चे को खोजा, हर एक पंडाल और टेंट में वह श्याम को खोज रही थी। उसने पुलिस और अलग अलग अधिकारियों से भी बच्चे को खोजने की मदद की। लेकिन किसी को भी श्याम नहीं मिल रहा था। वह पुलिस चौकी भी गई और पुलिस में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई। पूरा एक दिन बीत चुका था, लेकिन श्याम को मेले में कहीं कोई सुराग नहीं मिला।
वह रोज रात उसी जगह पर बिताती थी, जहां वह अपने बच्चे के साथ सोई थी। उसे लगता था कि शायद रात में उसका बच्चा वहीं वापस आ जाएगा। वह बच्चे के मिलने की आस में रात को भी सोती भी नहीं थी। उसे उम्मीद थी कि बच्चा उसे वापस मिल जाएगा। इसलिए अपने गांव भी नहीं गई। वह हर रोज हर पल बस श्याम को ही मेले में ढूंढती रहती थी। दिन गुजरते गए। सरिता ने खाने-पीने की भी सुध छोड़ दी थी। न उसके जेब में पैसे थे और न वह किसी से मदद मांगती। लोगों के फेंके हुए खाने को खाती और हर रोज श्याम को खोजती।
सरिता को देखकर लोग अब पागल कहने लगे थे, कोई उसके बारे में पूछता, तो हर कोई यह कहता, इसका बच्चा कुछ दिन पहले मेले में खो गया था, तबसे से पागल हो गई है। लोगों की बातों को अनसुना कह कर सरिता दिनभर गंगा घाटों, मंदिरों और मेले के कोनों में अपने बेटे को खोजती रहती थी। उसके मन में हर बार एक ही सवाल उठता था, गोपाल कहां होगा? क्या के रहा होगा, क्या उसने खाना खाया होगा।
दिन गुजरते गए और एक बार फिर शाही स्नान का दिन आ गया था। बच्चे को गुम हुए पूरे 20 दिन हो गए थे। लेकिन सरिता ने अभी भी हार नहीं मानी थी। बिखरे बाल और गंदी फटी साड़ी में पिछले 20 दिनों से सरिता अपने बेटे को खोज रही थी।जब घाट पर सरिता फिर से श्याम को खोजने गई, तो उसी दुकान पर उसकी नजर पड़ी, जहां पिछली बार उसका बेटा टॉफी मांग रहा था।
तभी उसने एक बच्चे को देखा, यह बिल्कुल श्याम की तरह दिख रहा था। वह भाग कर उसके पास जाने लगी, तभी उसने देखा कि एक आदमी बच्चे का हाथ पकड़ कर उसे लेकर जा रहा है। सरिता श्याम श्याम चिल्लाने हुए मेले में भागने लगी। साड़ी में उसका पैर बार बार फंस जा रहा था और वह गिरते संभालते श्याम की तरफ भाग रही थी।
भागते-भागते वह श्याम तक पहुंच गई और उसने उसका हाथ पकड़ लिया। जैसे ही उसने उसका चेहरा अपनी तरफ घुमाया, वह जोर जोर से रोने लगी और उसे गले से लगा लिया। ये श्याम ही था, श्याम आखिर 20 दिन बाद सरिता को शाही स्नान के दिन ही मिल गया था। सरिता की खुशी का ठिकाना नहीं था। उसके आंसू रुक नहीं रहे थे।
श्याम भी अपनी मां को देखकर फूट फूट कर रो रहा था। 20 दिन बाद आखिर उसे भी मां मिल गई थी। मां और बेटे के इस मिलन को देखकर हर किसी की आंखें नम हो गई थी। जो दुकानदार उसे पागल कह रहे थे, वह भी उसके लिए पानी और खाना लेकर आ रहे थे। क्योंकि एक मां की पुकार आखिर भगवान ने सुन ली थी। तभी श्याम का हाथ पकड़कर एक आदमी खींचने लगा। यह वही आदमी था, जिसके साथ श्याम को सरिता ने देखा था। लंबी दाढ़ी, बड़े और बिखरे बाल, फटे हुए कपड़े और पैरों से लंगड़ाता हुआ आदमी, श्याम को अपने साथ लेकर जाने की जिद करने लगा। वह ढंग से बोल भी नहीं पा रहा था, लोग उसे पागल कह रहे थे। वह सरिता से श्याम का हाथ छुड़ा रहा था और बार बार कह रहा था , मेरा बेटा है।
तभी लोगों ने उस आदमी को श्याम से दूर किया। सरिता समझ गई कि आधी रात में श्याम को लेकर जाने वाला आदमी यही था। पुलिस भी श्याम को इसलिए खोज नहीं पा रही थी, क्योंकि श्याम ऐसे आदमी के साथ था। तभी लोगों ने बताया कि कई सालों पहले इस आदमी के बच्चे की मौत एक्सीडेंट में हो गई थी। बच्चे की मौत होने के बाद उसकी पत्नी ने भी उसे छोड़ दिया था। तब से ही यह पागल हो गया और गलियों में घूमता रहता है। यह किसी के भी बच्चे को देखकर अपना बच्चा बताता है। इसके पहले भी उस आदमी ने कई बच्चों को उठाने की कोशिश की है, लेकिन मां-बाप साथ होने की वजह से वह इसमें सफल नहीं हो पाता था। लेकिन इस बार उसे अच्छा मौका मिल गया। जब सरिता सो रही थी, तब उसने बच्चे को उठा लिया। बच्चा नींद में था, इसलिए उसे पता भी नहीं चला।
वह 20 दिनों से बच्चे को अपने पास रख रहा था। खुद भी वह भीग मांगकर और कचरे में से खाना खाता था और बच्चे को भी यही खाना वह खिला रहा था। बच्चे के हालात बहुत खराब थे। उसको हाथ-पैर में चोट आई हुई थी और कपड़े भी फट गए थे। बीस दिन से बच्चा एक ही कपड़े में घूम रहा था।
आदमी की ऐसी हालत को देखकर सरिता भी उसकी भावनाओं को समझ रही थी। उसने लोगों से कहा कि, उसे छोड़ दो और जाने दो। उसके हालत भी कुछ मेरे जैसे हैं। लोगों के छोड़ने के बाद आदमी डर से वहां से भाग गया। सरिता अब अपने बेटे श्याम के मिलने की खुशी में फिर से संगम में स्नान करने गई। स्नान के बाद वह अपने बेटे के साथ वापस अपने गांव लौट गई।
यह कहानी पूरी तरह से कल्पना पर आधारित है और इसका वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं है। यह केवल कहानी के उद्देश्य से लिखी गई है। हमारा उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है। ऐसी ही कहानी को पढ़ने के लिए जुड़े रहें हर जिंदगी के साथ।
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