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13 साल की उम्र में त्याग दिया घर, प्रेमानंद जी महाराज की प्रेरणादायक कहानी उन्हीं की जुबानी

जाने माने आध्यात्मिक गुरु प्रेमानंद जी महाराज ने 13 वर्ष की उम्र में घर त्यागकर भक्ति मार्ग अपनाया और कठिन तपस्या व सेवा भाव से अपना जीवन भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित किया। उनकी वाराणसी से वृंदावन तक की प्रेरणादायक यात्रा आज भी लाखों लोगों को आध्यात्मिक जीवन की प्रेरणा देती है। आइए जानें उनके जीवन की कुछ अहम बातें। 
Editorial
Updated:- 2025-08-11, 19:17 IST

प्रेमानंद जी महाराज का पूरा नाम श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण महाराज जी है। वो एक आदरणीय आध्यात्मिक गुरु हैं, जिनकी शिक्षाओं ने पूरे देश में लाखों लोगों को प्रेरित किया है। सोशल मीडिया पर उनके प्रेरणादायक वीडियो खूब तेजी से वायरल होते हैं। प्रेमानंद जी वृंदावन में रहते हैं और अपने पीले वस्त्रों के कारण लोग उन्हें प्रेमपूर्वक ‘पीले बाबा’ नाम से भी बुलाते हैं। कई स्वास्थ्य समस्याओं से जूझने के बावजूद महाराज जी अपना संपूर्ण जीवन लोगों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन देने में समर्पित कर रहे हैं। वृंदावन स्थित उनका आश्रम भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों से आने वाले भक्तों के लिए भी एक प्रमुख आध्यात्मिक केंद्र है। अगर हम उनकी धार्मिक यात्रा की बात करें तो प्रेमानंद जी महाराज काफी कम उम्र से ही आध्यात्म से जुड़ गए थे। 13 साल की उम्र से ही प्रेमानंद जी ईश्वरीय मार्ग से जुड़े हैं। उनकी अभी तक की यात्रा वास्तव में प्रेरणादायी है और इससे हम सभी को भी अध्यात्म से जुड़ने की प्रेरणा मिलती है जो भक्ति की राह पर जाने की प्रेरणा देती हैं। आइए आपको भी बताते हैं कि कैसे 13 साल की उम्र में ही घर को छोड़कर आध्यात्म की ओर जाने वाले प्रेमानंद जी महाराज का जीवन कैसा है और उन्हें इस मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा कैसे मिली।

प्रेमानंद जी महाराज का प्रारंभिक जीवन

13 साल की छोटी से उम्र से ही श्री प्रेमानंद जी महाराज का मन आध्यात्मिकता की ओर आकर्षित था। उनका जन्म एक धार्मिक ब्राह्मण परिवार में हुआ और बचपन से ही वो नियमित रूप से मंदिर जाते थे, धार्मिक ग्रंथों का पाठ करते थे और भक्ति में लीन रहते थे। जीवन के गहरे अर्थ पर चिंतन करते हुए उन्हें यह विश्वास हुआ कि उनका सच्चा सहारा केवल ईश्वर ही हैं। उनके दादा और पिता, दोनों ही संत थे, जिनसे प्रेरित होकर उन्होंने भी आध्यात्मिक मार्ग अपनाने का निश्चय किया।

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प्रेमानंद जी महाराज की शिक्षा

प्रेमानंद जी महाराज ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश में प्राप्त की, जहां उनकी गीता और श्री सुख सागर जैसे आध्यात्मिक ग्रंथों में गहरी रुचि विकसित हुई। 13 वर्ष की आयु में ही उन्होंने अपना जीवन अध्यात्म को समर्पित करने का संकल्प ले लिया। उन्होंने अपनी आध्यात्मिक खोज के लिए घर भी छोड़ दिया और भक्ति और ध्यान के माध्यम से मानव अस्तित्व के सार को समझने पर ध्यान केंद्रित किया।

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प्रेमानंद जी महाराज की आध्यात्मिक यात्रा

प्रेमानंद जी महाराज की आध्यात्मिक यात्रा 13 वर्ष की आयु में ही शुरू हो गई थी जब उन्होंने भक्ति मार्ग पर चलने के लिए घर छोड़ दिया था। उन्होंने तपस्वी जीवन अपनाया और वर्षों तक गंगा तट पर ध्यान किया। उन्होंने कई कठिन परिस्थितियों को सहन किया, व्रत उपवास किए और नदी के ठंडे जल में स्नान किया और इस दौरान ईश्वर की भक्ति में पूरी तरह से डूबे रहे। उनका समर्पण उन्हें अंततः वृंदावन ले गया, जहां उन्हें अपनी आध्यात्मिक पुकार का एहसास हुआ और वे अपने सद्गुरु देव के शिष्य बन गए।

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वाराणसी से वृंदावन की यात्रा

प्रेमानंद जी महाराज के जीवन में एक बड़ा मोड़ वाराणसी में एक माह तक चले गहन ध्यान के बाद आया। बाबा युगल किशोर जी नामक एक संत से प्रसाद पाकर उन्हें वृंदावन जाने की प्रेरणा मिली। उनके सहयोग से ही वो वृंदावन पहुंचे। उस समय उनके पास न तो धन था, न कोई परिचित, लेकिन फिर भी उन्होंने किसी तरह वृंदावन पहुंचकर श्री बांके बिहारी जी के दर्शन किए और उन्हें अलौकिक आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति हुई।

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कैसा है प्रेमानंद जी का जीवन 

अगर उनके वर्तमान जीवन की बात की जाए तो आज 60 वर्ष की उम्र में भी प्रेमानंद जी महाराज पूरी तरह से भगवान श्रीकृष्ण की सेवा और भक्ति में लीन हैं। किडनी की समस्या के बावजूद वो अपनी इच्छाशक्ति के बलबूते ही खुद को स्वस्थ महसूस करते हैं और अपने आध्यात्मिक कार्यों में पूर्ण रूप से सक्रिय रहते हैं। उनकी शिक्षाएं भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय हैं। देश-विदेश से भक्त उनके आश्रम में आकर उनका आशीर्वाद लेते हैं और जीवन के मार्गदर्शन की प्राप्ति करते हैं।

 

 

 

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धर्म मार्ग अपनाने के लिए प्रेमानंद जी महाराज ने कही ये बात

प्रेमानंद जी महाराज से एक भक्त ने पूछा कि आपको इतनी छोटी उम्र में परमात्मा को पाने का विचार कैसे आया। अपने एक यूट्यूब वीडियो में इस प्रश्न का जवाब देते हुए वो बोलते हैं कि उनके पूर्व जन्म का कोई संस्कार होगा क्योंकि हमको किसी ने सिखाया नहीं था। बस वो जब एकांत में आकर बैठते हैं तो बस अंदर एक जलन पैदा हो जाती कि माताजी मरेंगी, पिताजी मरेंगे तो कोई हमारा नहीं होगा। तो फिर है कौन? यह जो विचार आते थे, यह हमें अब आभास होता है कि पूर्व जन्म में भजन किया होगा तो अधूरा रह गया होगा। उसे पूरा करने के लिए बचपन से ही ब्राह्मण के घर में जन्म हुआ। उस जगह जन्म होने पर संसार से एक वैराग्य की ज्वाला जली जिसने 13 वर्ष की अवस्था में भगा दिया। बस एक लगता था अगर परमात्मा नहीं मिले तो जीवन का जन्म लेना बेकार है। अब जैसे है इस समय जैसे है अब सब नॉर्मल हो गया। जैसे अपना युद्ध विजय हो जाए तो राजा अपने सिंहासन पर बैठकर शांत आनंद लेता है। ऐसे सब काम शांति जोई जोई प्यारो करे सोई मोहि भावे। जैसे प्यारे चलावे जैसे प्यारे रखे जो प्यार करे बस ऐसे रह गया।

निष्कर्ष: प्रेमानंद जी महाराज का जीवन केवल एक साधु या गुरु की कहानी नहीं, बल्कि अटूट भक्ति, दृढ़ संकल्प और आत्मसमर्पण का प्रतीक भी है। 13 वर्ष की छोटी उम्र में घर छोड़कर उन्होंने जिस भक्ति मार्ग को अपनाया, वह आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुका है। कठिन तपस्या, चुनौतियों और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के बावजूद उनका ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास और सेवा भाव हमें यह सिखाता है कि सच्ची खुशी सांसारिक वस्तुओं में नहीं, बल्कि आत्मिक शांति और ईश्वरीय प्रेम में है।

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