कोणार्क मंदिर से जुड़ी रोचक बातें, जानें


Smriti Kiran
31-05-2022, 11:02 IST
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    कोणार्क मंदिर' अपनी पौराणिकता और आस्था के लिए विश्व भर में मशहूर है। इस मंदिर के हर एक हिस्से पर देवी देवताओं, नृतकों, जीवन को दर्शाते हुए कई चित्र आदि पत्थर पर उकेरे गए हैं।

    इस मंदिर के कई ऐसे रहस्य हैं, जिनके बारे में जानने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। आइए जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी कुछ खास दिलचस्प बातें-

यूनेस्को, वैश्विक धरोहर

    ओडिशा राज्य में स्थित यह स्मारक प्राचीन वास्तुकला के विशिष्ट मॉडल के लिए यूनेस्को द्वारा प्रमाणित एक मशहूर वैश्विक धरोहर है।

भगवान सूर्य को समर्पित

    भगवान सूर्य को समर्पित इस संदिर में अभी भी रोज सूर्य देवता की अराधना व पूजा की जाती है।

कलात्मक भव्यता

    1255 ई. पू. में गंग वंश के राजा नृसिंहदेव द्वारा इस मंदिर का निर्माण कराया गया। 1200 कलाकारों ने मिलकर इसे 12 साल में तैयार कर पाए।

काला पगोडा

    कोणार्क मंदिर को पहले समुद्र के किनारे बनाया गया था, पर समुद्र के सिकुड़ जाने के बाद यह समुद्री तट से थोड़ा दूर हो गया। गहरे रंग के कारण इसे काला पगोडा भी कहा जाता है।

संरचना

    इस मंदिर का निर्माण सूर्य के रथ के रूप में की गई है। इस मंदिर में 12 जोड़े पहिए लगे हुए हैं, जिनकी विशाल रचना सैलानियों को अपनी तरफ आकर्षित करता है।

रथ में बने पहिये की खासियत

    कोणार्क मंदिर के रथ में बने पहिए, सूर्य घड़ी की मुद्रा में हैं, जिन्हें आज के घड़ियों के अनुसार बनाया गया है।

नाश की ओर निर्देशित करता हुआ

    इस मंदिर के प्रवेश द्वार में दो शेर बने हुए हैं, जो दो हाथियों को अपने निचे दबाये हुए हैं और उन हाथियों के नीचे मनुष्य की प्रतिमा दबी हुई है।

लालच व पैसे से होता है नाश

    यहां शेर को अहम् के रूप में और हाथी को पैसे के रूप में दर्शाया गया है। इससे साबित होता है कि पैसे की लालच और अहम् से मनुष्य का नाश होता है।

रचना के पीछे वैज्ञानिक नीति

    मंदिर के ऊपरी हिस्से में चुम्बकों को इस तरह स्थापित किया गया था कि मंदिर की प्रमुख प्रतिमा हवा में तेरता हुआ दिखाई देता था।

चुम्बक हटा दिया गया

    औपनिवेशिक समय में ब्रिटिश सरकार द्वारा इन चुम्बकों को यहां से हटा दिया गया, जिसकी वजह से मंदिर का संतुलन बिगड़ गया और यह ढहने लगा।

समुद्री तट पर बनाने की नीति

    समुद्र तट पर बने इस मंदिर में सुबह सूर्य की पहली किरण मंदिर के अंदर प्रवेश करती थी, जिससे प्रतिमा की चमक देखने लायक होती थी।

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