
सनातन धर्म में साल में चार बार नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है, जिसमें से दो गुप्त नवरात्रि और दो चैत्र एवं शारदीय नवरात्रि है। इन चारों ही नवरात्रि में देवी दुर्गा की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इस चैत्र नवरात्रि 9 अप्रैल से शुरू हो होने जा रही है। नवरात्रि के नव दिनों में दुर्गा माता की विशेष पूजा और उपासना की जाती है। बता दें कि हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार नीम के पेड़ में देवी दुर्गा वास करती हैं, ऐसे में चलिए जानते हैं नवरात्रि में इस पेड़ का महत्व और पूजा करने की विधि।

नवरात्रि के पर्व में दुर्गा माता की पूजा के लिए नीम की पत्तियों को शामिल करने से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं। इसके अलावा पूजा में हवन के लिए नीम की लकड़ियों को भी शामिल किया जाता है। मान्यता है कि हवन में नीम की लकड़ी को शामिल करने से वातावरण में शुद्धता आती है, नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। इसके अलावा शनि और केतु के बुरे प्रभावों से राहत मिल सकती है। इसके अलावा हवन सामग्री में नीम के सूखे पत्तों के इस्तेमाल से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
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नीम के पेड़ का हिंदू धर्म में हर रूप से महत्व है, पूजा पाठ के लिए हो या इसका उपयोग पूजा-पाठ के सामग्री के तौर पर किया जाता है, नीम का पेड़ हर रूप में महत्वपूर्ण है। बता दें कि नीम के पेड़ में साक्षात देवी दुर्गा का वास माना गया, इसके अलावा नीम के पेड़ में शीतला माता भी वास करती हैं। बता दें कि शीतला माता दुर्गा जी का स्वरूप हैं। शीतला माता को शुद्धता और रोग मुक्ति की देवी माना गया है। देशभर में शीतला अष्टमी या बसौड़ा का पर्व भी मनाया जाता है। उत्तर और मध्य भारत के अलावा साउथ इंडिया में नीम के पेड़ का विशेष महत्व है और जिस प्रकार भगवान शिव को बेलपत्र (बेलपत्र का महत्व ) चढ़ाया जाता है, उसी तरह दुर्गा माता को नीम के पत्ते चढ़ाएं जाते हैं।
नवरात्रि में नीम के पेड़ के पूजन का खास महत्व है (नीम के पेड़ का महत्व)। बता दें कि नवरात्रि के नौ दिनों तक दुर्गा माता विराजमान रहती हैं। इस लिए नवरात्रि के नव दिनों तक नीम के पेड़ की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। नीम के पेड़ में जल, पंचामृत अर्पित कर, फूल माला चढ़ाएं। चंदन और तिलक लगाकर धूप-दीप दिखाएं और भोग लगाकर 7,11,21 और 51 यथा शक्ति परिक्रमा कर प्रणाम करें।
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